श्रीकृष्ण में बसती थी माता यशोदा की जान, सारा ब्रज देखता रह जाता था

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शुभा दुबे । Aug 30 2018 3:50PM

माता यशोदा को पौराणिक ग्रंथों में नंद की पत्नी कहा गया है। भागवत पुराण में यह कहा गया है देवकी के पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ।

माता यशोदा को पौराणिक ग्रंथों में नंद की पत्नी कहा गया है। भागवत पुराण में यह कहा गया है देवकी के पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ। कंस से रक्षा करने के लिए जब वासुदेव जन्म के बाद आधी रात में ही उन्हें यशोदा के घर गोकुल में छोड़ आए तो उनका पालन पोषण यशोदा ने किया। भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में बालक कृष्ण की लीलाओं के अनेक वर्णन मिलते हैं। जिनमें यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन, माखनचोरी और उसके आरोप में ओखल से बाँध देने की घटनाओं का सूरदास ने सजीव वर्णन किया है। यशोदा ने बलराम के पालन पोषण की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जो रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे। उनकी एक पुत्री का भी वर्णन मिलता है जिसका नाम एकांगा था।

भगवान श्रीकृष्ण का लालन पालन करने वाली यशोदाजी को हिंदू पौराणिक ग्रंथों में विशेष स्थान प्राप्त है। यशोदा के घर श्रीकृष्ण के आने के बारे में पुराणों में ही एक प्रसंग यह मिलता है कि वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की− 'देव! जब हम पृथ्वी पर जन्म लें तो भगवान श्रीकृष्ण में हमारी अविचल भक्ति हों।' ब्रह्माजी ने तथास्तु कहकर उन्हें वर दिया। इसी वर के प्रभाव से ब्रजमण्डल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से धरा का जन्म यशोदा के रूप में हुआ और उनका विवाह नन्दजी से हुआ। नन्दजी पूर्व जन्म के द्रोण नामक वसु थे।

यशोदा और श्रीकृष्ण की पहले भेंट के बारे में बताया जाता है कि जब यशोदाजी प्रसव पीड़ा सह रही थीं तो अचानक ही सूतिकागृह अभिनव प्रकाश से भर गया। सर्वप्रथम रोहिणी माता की आंखें खुलीं। वे जान गयीं कि यशोदा ने पुत्र को जन्म दिया है। विलम्ब होते देख रोहिणीजी दासियों से बोल उठीं− अरी! तुम सब क्या देखती ही रहोगी? कोई दौड़कर नन्दजी को सूचना दे दो। फिर क्या था, दूसरे ही क्षण सूतिकागार आनन्द और कोलाहल में डूब गया। एक नन्दजी को सूचना देने के लिए दौड़ी। एक दाई को बुलाने के लिए गयी। एक शहनाई वाले के यहां गयी। चारों ओर आनन्द का माहौल हो गया। सम्पूर्ण ब्रज ही मानो प्रेमानंद में डूब गया।

कंस को जब अपने संहारक के रूप में श्रीकृष्ण के जन्म लेने और उनके गोकुल में मौजूद होने के बारे में पता चला तो उन्होंने बालक श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपनी बहन पूतना को भेजा जोकि अपने स्तनों में विष लगाकर गोपी वेश में यशोदा नंदन श्रीकृष्ण को मारने के लिए आयी। वह श्रीकृष्ण को स्तनपान कराने लगी पर श्रीकृष्ण दूध के साथ उसके प्राणों को भी पी गये। शरीर छोड़ते समय श्रीकृष्ण को लेकर पूतना मथुरा की ओर दौड़ी। यह सब देख यशोदाजी व्याकुल हो उठीं। उनके जीवन में चेतना का संचार तब हुआ, जब गोप सुंदरियों ने श्रीकृष्ण को लाकर उनकी गोद में डाल दिया।

यशोदानंदन श्रीकृष्ण जैसे जैसे बढ़ने लगे। मैया का आनन्द भी उसी क्रम में बढ़ रहा था। जननी का प्यार पाकर श्रीकृष्ण 81 दिनों के हो गये। मैया एक दिन अपने सलोने श्रीकृष्ण को नीचे पालने में सुला आयी थीं तभी कंस के द्वारा भेजा गया उत्कच नामक दैत्य आया और शकट में प्रविष्ट हो गया। वह शकट को गिराकर श्रीकृष्ण को पीस डालना चाहता था। इसके पूर्व ही श्रीकृष्ण ने शकट को उलट दिया और शकटासुर का अंत हो गया।

भगवान श्रीकृष्ण ने माखन लीला, उखल बंधन, कालिय उद्धार, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख प्रदान किया। इस प्रकार ग्यारह वर्ष छह महीने तक माता यशोदा का महल श्रीकृष्ण की किलकारियों से गूंजता रहा। आखिर श्रीकृष्ण को मथुरापुरी ले जाने के लिए अक्रूर आ ही गये। अक्रूर ने आकर यशोदाजी के हृदय पर मानो अत्यंत क्रूर वज्र का प्रहार किया। पूरी रात नन्दजी श्रीयशोदा को समझाते रहे, पर किसी भी कीमत पर वे अपने प्राणप्रिय पुत्र को कंस की रंगशाला में भेजने के लिए तैयार नहीं हो रही थीं। आखिर योगमाया ने अपनी माया का प्रभाव फैलाया। श्रीकृष्ण चले गये तो यशोदा विक्षिप्त−सी हो गयीं। उनका हृदय तब शीतल हुआ, जब वे कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से मिलीं।

-शुभा दुबे

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