Chai Par Sameeksha: Bihar में सीट बँटवारे की उठापटक ने दोनों गठबंधनों की एकता का सच उजागर कर दिया

प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि बिहार में जो भी छोटे दल है, वह पूरा का पूरा प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं। उनके राजनीतिक इतिहास को भी देखें तो यह लगातार प्रेशर पॉलिटिक्स करते रहते हैं। इसके साथ ही इन छोटे दलों को यह भी पता है कि भाजपा केंद्र के सत्ता में है।
प्रभासाक्षी के साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह हमने बिहार चुनाव को लेकर जारी उठापटक पर चर्चा की। दोनों ही गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर असमंजस की स्थिति देखने को मिली। सोमवार तक देखा जाए तो एनडीए ने जहां अपने गठबंधन में सीटों को लेकर तालमेल बिठा लिया है। वहीं महागठबंधन में फिलहाल स्थिति अभी भी ऊपर नीचे दिखाई दे रही है। इन सभी सवालों को लेकर हमने प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे से बात की।
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज दुबे ने कहा कि एनडीए की बात करें तो भले ही एनडीए में सीटों का बंटवारा हो गया लेकिन एनडीए में शामिल घटक दलों का सत्तास्वार्थ साफ तौर पर देखने को मिला। आपको बता दे की एनडीए के तमाम दल यह जरूर कहते रहे कि उनका विश्वास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है। लेकिन सीट बंटवारे को लेकर भाजपा पर तमाम दबाव बनाने की कोशिश की गई। वहीं, महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर भी चल रही उठापटक पर नीरज दुबे ने बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि विपक्ष की ओर से बार-बार संविधान और लोकतंत्र बचाने की बात की जा रही है। लेकिन सीट बंटवारे को लेकर ही ये दल आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं। कांग्रेस और राजद में बातचीत नहीं बन पा रही है। वहीं मुकेश साहनी भी आंखें दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार बिहार में लेफ्ट भी अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में है।
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प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि बिहार में जो भी छोटे दल है, वह पूरा का पूरा प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं। उनके राजनीतिक इतिहास को भी देखें तो यह लगातार प्रेशर पॉलिटिक्स करते रहते हैं। इसके साथ ही इन छोटे दलों को यह भी पता है कि भाजपा केंद्र के सत्ता में है। ऐसे में अगर सीट बंटवारे में बात नहीं बन पाती है तो कुछ दूसरा ऑफर ले लिया जाए जैसे बड़े मंत्रालय का या बड़े विभाग का। तो यह पूरा का पूरा दबाव बनाने की कोशिश दिखाई दे रही है। वहीं, नीरज दुबे ने कहा कि बिहार में कांग्रेस राजद के सहारे जीवित है। कांग्रेस ने हमेशा आरजेडी पर ज्यादा से ज्यादा सीटें देने का दबाव बनाया है। इसका नुकसान आरजेडी को उठाना पड़ता है। हालांकि कांग्रेस अभी भी अपना अड़िक रवैया अपनाए हुए हैं जो कि गठबंधन के लिए ठीक नहीं है।
प्रभासाक्षी के संपादक नीरज दुबे ने यह भी कहा कि बिहार में इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। ना सिर्फ दो गठबंधनों के बीच की लड़ाई है। बल्कि प्रशांत किशोर की पार्टी भी चुनाव लड़ रही है। साथ ही साथ एआईएमआईएम ने भी अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर ली है। तेज प्रताप यादव जो अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। तो बिहार में असल मुद्दों को लेकर जो लड़ाई होनी चाहिए उस पर कोई भी राजनेता या दल बात नहीं कर रहे हैं। सिर्फ बातचीत जो हो रही है वह कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा, किसको कहां से सीट मिलेगा और साथ ही साथ किसको कौन से सीट मिलेगी जहां से उसके जीतने की संभावनाएं ज्यादा है। बिहार के मुद्दे और बिहार की स्थिति फिलहाल किसी भी राजनीतिक दलों की ओर से चर्चा में नहीं लाया जा रहा है।
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