पिता के सपने को पूरा कर रही हैं ओलिंपिक में भाग लेने वाली अंशु मलिक!

anshu malik

कुश्ती शुरू करने के सात साल के अंदर ओलंपिक कोटा हासिल कर अंशु ने पिता के सपने को पूरा किया है।अंशु सात बरस पहले जब 12 साल की थीतक उसने अपनी दादी को कहा था कि वह पहलवान बनना चाहती हैऔर छोटे भाई शुभम की तरह वह भी यहां के निदानी खेल स्कूल में इसका प्रशिक्षण लेना चाहती है।

जींद (हरियाणा)। भारतीय महिला पहलवान अंशु मलिक (57 किग्रा) ने कुश्ती शुरु करने के महज सात साल के अंदर ओलंपिक कोटा हासिल कर अपने पिता धर्मवीर के उस सपने को पूरा किया है जिस करने में वह खुद नाकाम रहे थे। अंशु सात बरस पहले जब 12 साल की थी तक उसने अपनी दादी को कहा था कि वह पहलवान बनना चाहती है और छोटे भाई शुभम की तरह वह भी यहां के निदानी खेल स्कूल में इसका प्रशिक्षण लेना चाहती है। धर्मवीर को इसके बाद छह महीने में पता चल गया कि उनकी छोरी (बेटी) किसी भी छोरे (लड़के) से कम नहीं है। वह उनसे बेहतर है। धर्मवीर पहले अपने बेटे को पहलवान बनाना चाहते थे जो अंशु से चार साल छोटा है लेकिन उन्हें जल्दी ही पता चल गया अंशु की काबिलियत किसी से कम नहीं है। धर्मवीर ने कहा, ‘‘ महज छह महीने के प्रशिक्षण के बाद, उसने उन लड़कियों को हराना शुरू कर दिया, जो वहां तीन-चार साल से अभ्यास कर रही थीं। फिर मैंने अपना ध्यान अपने बेटे से ज्यादा अपनी बेटी पर लगाया। उसमें अच्छे करने की ललक थी।’’

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निदानी गांव में खाट पर बैठी अंशु अपने पिता से तरीफ सुन कर मुस्कुराते हुए कहा कि उसे आज भी वह दिन याद है। इस 19 साल की पहलवान ने कहा, ‘‘हां मैं उन्हें पटखनी दे देती थी। अखाड़ों (दंगल) ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है क्योंकि मेरे पिता, चाचा, दादा, भाई सभी कुश्ती से जुड़े रहे है।’’ उनके पिता ने एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया था लेकिन चोट के कारण उनका करियर परवान नहीं चढ़ा। उनके चाचा पवन कुमार ‘हरियाणा केसरी’ थे। अंशु से जब उनकी शुरूआती दिनों में निदानी खेल स्कूल के प्रशिक्षण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘ जो पापा ने बताया है वही सही है जी।’’ प्रशिक्षण शुरू करने के चार साल के अंदर अंशु राज्य और राष्ट्रीय खिताब जीतने में सफल रही। उन्होंने 2016 में एशियाई कैडेट चैंपियनशिप में रजत और फिर विश्व कैडेट चैंपियनशिप में कांस्य जीता।

अंतरराष्ट्रीय स्तर की जूनियर प्रतियोगिताओं में ज्यादा अनुभव न होने के बाद भी उसने सीनियर सर्किट में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी है। उसने अब तक केवल छह सीनियर टूर्नामेंटों में भाग लिया है औरपांच में पदक जीते हैं। इस दौरान वह 57 किग्रा में एशियाई चैंपियन भी बन गई। सीनियर स्तर पर जनवरी 2020 में अपना पहला टूर्नामेंट खेलने के बाद भी वहउन चार भारतीय महिला पहलवान में है जो ओलंपिक टिकट हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं शर्माती नहीं हूं। मैं मैट (अखाड़े) के बाहर भी खुल कर रहती हूं।’’ अंशु पहलवानी के साथ पढ़ाई में भी अव्वल रही हैं। उन्होंने कहा वह शुरू से ही हर चीज में शीर्ष पर रहना चाहती है। अंशु ने कहा, ‘‘मैं हमेशा से वो पदक जीतना चाहती थी, पोडियम (शीर्ष स्थान) का अहसास लेना चाहती हूं। स्कूल में भी, मैं पहले स्थान पर आना चाहती थी।’’ उसने गर्व के साथ बताया कि सीनियर माध्यमिक स्तर (12वीं कक्षा) में उसे 82 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए है। धर्मवीर से जब अंशु को कम समय में मिली सफलता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘ वह रोजाना सुबह 4:30 बजे उठती हैं।

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वह चाहे कितनी भी थकी हुई हो प्रशिक्षण के लिए कभी भी मना नहीं करती।हम केवल उसका समर्थन करते हैं, वह खुद दृढ़संकल्प है। यही अंतर है।’’ अंशु ने इस पर खुद को सकारात्मक सोच वाली खिलाड़ी बताते हुए कहा, ‘‘ मैं मानसिक रूप से बहुत मजबूत हूं। अगर कोई मेरे बारे में नकारात्मक टिप्पणी करता है या मुझसे कहता है कि मैं मजबूत प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाऊंगी तो भी मैं परेशान नहीं होती। यह मुझे प्रभावित नहीं करता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ इसके साथ ही मेरे आस पास सकारात्मक लोग रहते है। हर कोई मुझमें यह विश्वास जगाता है कि मैं सब कुछ करने के योग्य हूं। मेरे आसपास कोई नकारात्मक सोच वाला नहीं है।’’ अंशु को लगता है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं ने उन्हें सिखाया है कि कड़ी मेहनत के साथ चतुराई भी जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘‘हम अक्सर मैट के बाहर बहुत काम करते हैं। लेकिन तकनीक, मैट-ट्रेनिंग, रिकवरी, डाइट और मसाज पर काम करना बहुत महत्वपूर्ण है। अच्छे विदेशी पहलवान तकनीक पर बहुत अधिक काम करते हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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