डेबिट कार्ड फ्रॉड ने ''टेक्नोलॉजी'' पर उठाये सवाल!

किसी व्यक्ति का आर्थिक स्टेटस हो, उसका सामाजिक स्टेटस हो या फिर कोई अन्य जानकारी हो अगर ''हैकर्स'' गैरकानूनी रूप से उसे चुरा लें, तो हम समझ सकते हैं कि कितनी बड़ी मुसीबत में कोई व्यक्ति फंस सकता है।

हमारी दुनिया दिन पर दिन टेक्नोलॉजी पर निर्भर होती जा रही है और टेक्नॉलॉजी के विश्वसनीय होने के साथ साथ, अगर उस में समयानुसार अपडेट ना हो या फिर उसमें सुरक्षा संबंधी सेंधमारी संभव हो तो आज के समय में करोड़ों या अरबों लोगों की जिंदगी निस्संदेह रूप से खतरे में पड़ सकती है। किसी व्यक्ति का आर्थिक स्टेटस हो, उसका सामाजिक स्टेटस हो या फिर कोई अन्य जानकारी हो अगर 'हैकर्स' गैरकानूनी रूप से उसे चुरा लें, तो हम समझ सकते हैं कि कितनी बड़ी मुसीबत में कोई व्यक्ति फंस सकता है। 

2009 में एक खबर आई थी कि भारत के कॉल सेंटरों में अपराधियों के गिरोह पैसे लेकर ब्रिटेन के क्रेडिट कार्ड होल्डर्स की जानकारियां धड़ल्ले से बेच रहे हैं। बड़ा हंगामा मचा था उस पर, कई जगह खबर छपी। ऐसे ही 2008 में भी क्रेडिट कार्ड घोटाला हुआ था जिसमें कुल मिलाकर 609 लाख पाउंड के घपले की बात कही गई थी। फिर 2012 में मार्च के महीने में एक करोड़ क्रेडिट कार्ड खातों में सेंध की बात सामने आयी थी, जिसे लेकर क्रेडिट कार्ड कंपनी मास्टर कार्ड और वीजा ने विस्तृत जांच की थी। इन तमाम मामलों को देखते हुए जानकारों के मुताबिक सर्वर्स में मौजूद उपभोक्ताओं की जानकारी अगर गलत हाथों में पड़ जाती है, तो हैकर इसकी मदद से नकली कार्ड बनाकर उसका इस्तेमाल इंटरनेट के जरिए खरीदारी में कर सकते हैं, और अब तो ऑनलाइन पेमेंट चलन में आ गया है. जाहिर तौर पर मामला सिर्फ इस बार का ही नहीं है, बल्कि इस संबंध में पहले भी प्लास्टिक मनी को सेफ बनाने की कोशिशें जरूर हुई हैं, किंतु हाल फिलहाल 32 लाख डेबिट कार्ड्स में सेंधमारी का जो मामला सामने आया है, उससे यही प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं बड़ी चूक हुई है। आखिर मामला एक या दो कार्ड्स का तो है नहीं कि उसे हल्का या किसी एम्प्लोयी की गलती मानकर इग्नोर कर दिया जाए, बल्कि सीधे तौर पर उपलब्ध टेक्नोलॉजी और उसके अपडेट पर सवाल उठा रहा है यह बड़ा मामला! ऐसा ही मामला 2014 में भी आया जब इंटरनेट पर आप कुछ खरीदते थे, ट्रेन के लिए हवाई यात्रा के लिए टिकट आरक्षित कराते थे, तब डेबिट कार्ड की जानकारी विभिन्न साइट पर डालते थे। 

इसी से जुड़ा एक मामला सामने आया था कि एक बड़ी ट्रैवल वेबसाइट के 21 लाख लोगों की क्रेडिट कार्ड की जानकारी उनके सीवीवी नंबर सहित आसानी से निकाल ली गई थी। हालाँकि, इस मामले को सही कर दिया गया था, पर समझा जा सकता है कि प्लास्टिक मनी और उसकी सुरक्षा पर सवाल उठाए जा सकते हैं। और फिर हैकर्स तो इसी फिराक़ में रहते हैं कि किस तरह से क्रेडिट / डेबिट कार्ड की जानकारी उनके हाथ लगे और लोगों के अकाउंट से वह पैसे निकाल सकें। जाहिर तौर पर यह मामला बेहद गंभीर हो गया है, बेहद उलझ गया है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को कैशलेस इकोनॉमी बनने की ओर एक बड़ा कदम उठाया था। मई में 'मन की बात' के दौरान कैशलेस पेमेंट को बढ़ावा देने की बात हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही थी और तब उनका कहना था कि इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, साथ ही पैसे के फ्लो पर निगरानी भी रखी जा सकेगी। पर हाल ही में जो 32 लाख डेबिट कार्ड की सुरक्षा में सेंध लगने की जो अनहोनी सामने आई है, उससे सरकार की इस स्कीम को भी कहीं ना कहीं एक बड़ा झटका लगा है। जाहिर तौर पर प्लास्टिक मनी की सुरक्षा का 'ए टू जेड' आकलन करने की आवश्यकता आन पड़ी है। यह घोटाला इतना बड़ा है कि 19 बैंकों ने फ्रॉड के जरिए पैसा निकालने की बात अब तक मान ली है। बैंकों के अनुसार भारत के एटीएम कार्ड का इस्तेमाल चीन एवं अमेरिका जैसे देशों में किया गया है जबकि उनके ग्राहक भारत में ही मौजूद रहे हैं।

नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई-NPCI) ने करोड़ रूपये से ज्यादा के घोटाले की आशंका जताई है, जो निश्चित रूप से आगे भी बढ़ सकती है। प्लास्टिक मनी का चलन किस कदर बढ़ता जा रहा है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि गूगल के एक अनुमान के मुताबिक 2020 तक भारत में डिजिटल पेमेंट उद्योग में तकरीबन 10 गुना बढ़ोतरी हो सकती है और तब यह तकरीबन 5 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी। 

समझा जा सकता है कि इस घोटाले से न केवल ग्राहक, बल्कि बड़े बड़े बैंक परेशान हो उठे हैं और अपने ग्राहकों को पिन चेंज करने का लगातार मेसेज भेज रहे हैं। भारत के सबसे बड़े सरकारी बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने ग्राहकों को एटीएम पिन बदलने के साथ साथ एसबीआई के ही एटीएम मशीन का इस्तेमाल करने के निर्देश भेजे हैं। हालाँकि, एसबीआई ने जिन डेबिट कार्ड को ब्लॉक किया है उन्हें 2 हफ्ते के अंदर रिप्लेस करने पर भी काम कर रही है, पर इस मामले में उपजी आशंका कही ज्यादा बड़ी है। पूरे मामले में सरकार भी एक्टिव है और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस सन्दर्भ में कहा है कि वह रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं और सभी की कोशिश यही है कि नुकसान कम से कम हो। आर्थिक मामलों के सेक्रेटरी शक्तिकांत दास ने कहा है कि रिजर्व बैंक और बैंकों से मांगी गई रिपोर्ट के आधार पर सरकार आगे कार्रवाई करेगी। देखना दिलचस्प होगा कि सरकार वाकई इस मामले में दूरदर्शिता का रूख अपनाती है अथवा असल मामले को छिपाकर किसी 'बलि के बकरे' पर ठीकरा फोड़ा जाता है। वैसे भी, 32 लाख डेबिट कार्ड के डाटा चोरी का मामला फाइनेंसियल स्टेबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल यानि एफएसडीसी की अगली बैठक में सबसे अहम मुद्दों में शामिल रहने वाला है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले की फोरेंसिक जांच चल रही है और शायद इसी के बाद तथ्य सामने आ पायेगा कि पूरे मामले की जड़ में आखिर था क्या? 

हालांकि इस बीच ग्राहकों की सुरक्षा के लिए आपको एहतियातन कुछ कदम जरूर उठाने चाहिए जैसे हर महीने या फिर ज्यादा से ज्यादा 3 महीने के भीतर एटीएम पिन बदल लेना चाहिए। ऐसे ही फोन या मोबाइल पर किसी को भी एटीएम पिन की जानकारी न दें। इसके साथ-साथ जहां तक मुमकिन हो, आप अपने ही बैंक एटीएम का इस्तेमाल करें, तो डेबिट कार्ड के इस्तेमाल को लेकर बैंक से आने वाले सन्देश, ईमेल अलर्ट पर पूरा ध्यान रखें और कहीं भी कुछ संदिग्ध लगे तो अपने बैंक से तुरंत संपर्क करें। इसी तरह, होटल-रेस्तरां, पेट्रोल पंप या किसी भी दुकान पर अगर आप कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप अपने सामने उसकी सामने ही उसे स्वाइप करें ताकि उसे क्लोनिंग से बचाया जा सके। अकाउंट स्टेटमेंट पर नियमित नजर रखना, नेट बैंकिंग का पासवर्ड नियमित बदलते रहना भी आपके कार्ड को सुरक्षित रखने में आपकी मदद कर सकता है।

आरबीआई के जुलाई में जारी आंकड़े बताते हैं कि 56 सरकारी, निजी और विदेशी बैंकों ने देश में करीब 70 करोड़ डेबिट कार्ड जारी किए हैं और आधे परसेंट से भी कम कार्ड को लेकर खतरा पैदा हुआ है, लेकिन बावजूद इसके संख्या के लिहाज से 32 लाख संख्या बहुत बड़ी संख्या है और अगर इन पर खतरा आ गया है तो जो मेथड्स इन पर अपनाए गए हैं, हैकर्स द्वारा या दूसरे गैरकानूनी लोगों द्वारा, निश्चित तौर पर वह आगे भी ट्राई किए जा सकते हैं तो जाहिर तौर पर हमें सावधानी बरतने की आवश्यकता है। देखा जाए तो इस मामले में ग्राहकों को सावधानी रखनी चाहिए तो बैंकों और कार्ड कंपनियों को इस मामले में जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और दोषियों के खिलाफ सरकार को अनिवार्य रूप से कार्रवाई भी करनी चाहिए। शायद इन तरीकों से ही सही, आने वाले दिनों में प्लास्टिक मनी और टेक्नोलॉजी पर लोगों का भरोसा मजबूत हो और फिर सहूलियत की दिशा में हम निर्बाध रूप से आगे भी बढ़ सकें!

- मिथिलेश कुमार सिंह

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