पर्यटकों को खूब लुभाती है उदयपुर की बागोर हवेली

प्रीटी । May 29 2017 2:48PM

उदयपुर की ढाई सौ साल पुरानी बागोर की हवेली पर्यटकों को खूब लुभाती है। इस हवेली में ऐसे अनेक कक्ष अलग−अलग रंगों में रंगे हैं जिनका उपयोग मौसम के अनुकूल हुआ करता था।

हर मौसम के लिए अलग−अलग रंग में रंगे कक्षों की साफ सफाई एवं मरम्मत से उदयपुर की ढाई सौ साल पुरानी बागोर की हवेली पर्यटकों को खूब लुभाती है। इस हवेली में ऐसे अनेक कक्ष अलग−अलग रंगों में रंगे हैं जिनका उपयोग मौसम के अनुकूल हुआ करता था। इन कक्षों में सुसज्जित वस्त्रों का इस्तेमाल भी उसी के अनुरूप होता था जैसे फागुन माह में फगुनियां एवं श्रावण में लहरियां इत्यादि। इस हवेली में राजा रजवाडे के जमाने के शतरंज, चौपड़, सांप सीढ़ी और गंजीफे आज भी मौजूद हैं जिसका उपयोग राजपरिवार की महिलाएं खेल, व्यायाम तथा मनोरंजन के लिए किया करती थीं। इस हवेली में स्वर्ण तथा अन्य बेशकीमती अलंकारों को रखने के लिए अलग तहखाना बना हुआ था।

ऐतिहासिक बागोर की हवेली में वास्तुकला एवं भित्तिचित्रों को इस तरह से संजोया गया है कि यहां आने वाले देशी, विदेशी पर्यटक इसे देखना नहीं भूलते। खासकर इस ऐतिहासिक हवेली को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय बनाए जाने से यहां की रौनक नए सिरे से बढ़ गई है। इस हवेली का निर्माण वर्ष 1751 से 1781 के बीच मेवाड शासक के तत्कालीन प्रधानमंत्री अमर चन्द्र बडवा की देखरेख में हुआ था। ऐतिहासिक पिछौला झील के किनारे निर्मित इस हवेली में 138 कक्ष, बरामदे एवं झरोखे हैं। इस हवेली के द्वारों पर कांच एवं प्राकृतिक रंगों से चित्रों का संकलन आज भी मनोहारी है। इस हवेली में स्नानघरों की व्यवस्था थी जहां मिट्टी, पीतल, तांबा और कांस्य की कुंडियों में दुग्ध, चंदन और मिश्री का पानी रखा होता था और राज परिवार के लोग पीढ़ी पर बैठकर स्नान किया करते थे।

मेवाड के इतिहास के अनुसार महाराणा शक्ति सिंह ने बागोर की इस हवेली में निवास के दौरान ही त्रिपौलिया पर महल का निर्माण कराया था, जिसका 1878 में विधिवत मुर्हूत हुआ था लेकिन इसके बाद से ही बागोर की हवेली की रौनक कम होने लगी। इतिहास के अनुसार वर्ष 1880 में महाराणा सज्जन सिंह ने बागोर की हवेली का वास्तविक स्वामी अपने पिता महाराणा शक्ति सिंह को घोषित कर दिया, लेकिन ऐसा क्यों किया गया और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी इसका उल्लेख नहीं किया गया है। बाद में वर्षों तक उत्तराधिकारी के अभाव में यह उपेक्षित रहा। इतिहास के अनुसार वर्ष 1930 से 1955 के बीच महाराणा भूपाल सिंह ने इस हवेली का नए सिरे से जीर्णोद्धार कराकर इसे राज्य की तीसरी श्रेणी का विश्राम गृह घोषित कर दिया। मेवाड रियासत के राजस्थान में विलय के बाद यह हवेली लोक निर्माण विभाग के अधिकार में चली गई।

वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सांस्कृतिक विकास के लिए देश में सांस्कृतिक विकास केन्द्रों की स्थापना की और इसी क्रम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय इस हवेली में बनाया गया। इसके बाद केन्द्र के सौजन्य से इस ऐतिहासिक हवेली की साफ−सफाई एवं नए सिरे से रंग रोगन किया गया। केन्द्र के अधिकारियों ने बताया कि साफ−सफाई के दौरान हवेली के जनाना महल में दो सौ वर्ष पुराने मेवाड शैली के भित्तिचित्र मिले हैं। जो यहां के राजा रजवाड़े के जमाने के रहन सहन एवं ठाट बाट को प्रदर्शित करता है। उन्होंने बताया कि इस हवेली को व्यवस्थित करने में करीब पांच वर्ष लगे। इसके बाद से यहां पर्यटकों की भीड़ जुटने लगी है।

स्थानीय लोगों के मुताबिक आजादी से पूर्व राजा महाराजाओं के जमाने में यह हवेली अति सुरक्षित क्षेत्र में आती थी और इस इलाके में आम लोगों का प्रवेश पूर्णतः वर्जित था। स्थानीय निवासियों के मुताबिक उनके पूर्वज ऐसा कहा करते थे कि बागोर की हवेली पर्याप्त जल क्षेत्र एवं सुरक्षा की दृष्टि से बनाई गई थी। इसलिए पिछौला झील के किनारे हवेली बनाई गई थी। इस हवेली में राज परिवार को छोड़कर किसी को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। वैसे अनुमानों के मुताबिक पिछले इस हवेली के प्रति देशी−विदेशी पर्यटकों का आकर्षण बढ़ा है।

प्रीटी

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