आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन नगरी है कुशीनगर
उत्तर प्रदेश में पयर्टन की दृष्टि से वैसे तो कई जिले प्रमुख हैं लेकिन अपने अत्यंत प्राचीन इतिहास के साथ कुशीनगर का अलग ही महत्व है। हिमालय की तराई वाले क्षेत्र में स्थित कुशीनगर का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन व गौरवशाली है।
उत्तर प्रदेश में पयर्टन की दृष्टि से वैसे तो कई जिले प्रमुख हैं लेकिन अपने अत्यंत प्राचीन इतिहास के साथ कुशीनगर का अलग ही महत्व है। हिमालय की तराई वाले क्षेत्र में स्थित कुशीनगर का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन व गौरवशाली है। वर्ष 1876 ई0 में अंग्रेज पुरातत्वविद ए. कनिंघम ने कुशीनगर की खोज की थी। उस समय खुदाई में छठी शताब्दी की बनी भगवान बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा मिली थी इसके अलावा रामाभार स्तूप और और माथाकुंवर मंदिर भी खोजे गए थे। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि यह स्थान त्रेता युग में भी आबाद था और यहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे कुशावती के नाम से जाना गया। छठी शताब्दी की शुरूआत में यहां भगवान बुद्ध का आगमन हुआ था। कुशीनगर में ही उन्होंने अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था।
उत्तर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर भी इसी जिले के तुर्कपट्टी में स्थित है। भगवान सूर्य की प्रतिमा यहां खुदाई के दौरान ही मिली थी जो गुप्तकालीन मानी जाती है। यहाँ के दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी इस प्रकार है-
वाटथई मंदिर
यह विस्तृत प्रांगण वाला मंदिर विशेष तौर पर थाई-बौद्ध स्थापत्य शैली में बनाया गया है। इसका निर्माण 1994 में बौद्धों द्वारा दी गई दानराशि से किया गया। इस मंदिर के प्रांगण में की गई बागबानी बहुत ही मनोरम है।
निर्वाण स्तूप
यह विशाल स्तूप ईंट व रोड़ी से बनाया गया था। 2.74 मीटर ऊंचे इस स्तूप की खोज का श्रेय कार्लाइल को जाता है। इस स्थान से तांबे का एक पात्र मिला है। इस पर प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखा है कि इसमें महात्मा बुद्ध के अवशेष रखे गए थे।
महापरिनिर्वाण मंदिर
कुशीनगर का प्रमुख आकर्षण महापरिनिर्वाण मंदिर है। जिसमें महात्मा बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी अद्भुत प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा 1876 में उत्खनन के दौरान प्राप्त हुई थी। चुनार के बलुआ पाषाण को काट कर बनी यह प्रतिमा बुद्ध की अंतिम अवस्था को प्रकट करती है। वे दाईं करवट से लेटे हुए हैं। प्रतिमा के नीचे खुदे अभिलेख से पता चलता है कि यह प्रतिमा 5वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि यह तीन कोणों से देखने पर अलग-अलग भाव प्रकट करती है।
माथाकुआर तीर्थ
यह तीर्थ निर्वाण स्तूप से लगभग 400 गज की दूरी पर स्थित है। यहां बोधि वृक्ष के नीचे उत्खनन से महात्मा बुद्ध की एक प्रतिमा मिली थी जो भूमि स्पर्श मुद्रा में है। मूर्ति के तल में खुदे अभिलेख से पता चलता है कि वह 10वीं अथवा 11वीं शताब्दी की है। इस तीर्थ के समीप ही एक बौद्ध मठ के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
रामाभार स्तूप
महापरिनिर्वाण मंदिर से लगभग 1.5 कि0मी0 की दूरी पर स्थित यह विशाल स्तूप लगभग 15 मीटर ऊंचा है। मान्यता है कि यह स्तूप उसी स्थान पर बना है, जहां महात्मा बुद्ध को दफनाया गया था। प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में इस स्थान का नामोल्लेख मुक्त बंधन चैत्य के नाम से हुआ है। इसे तत्कालीन मल्ल शासकों द्वारा बनवाया गया था।
चीनी मंदिर
भगवान बुद्ध की मूर्ति इस चीनी मंदिर का विशेष आकर्षण है। इसका निर्माण चीन ने करवाया था।
जापानी मंदिर
यहां भगवान बुद्ध की सुदंर अष्टधातु की प्रतिमा है, जिसे जापान से लाया गया था। यह प्रतिमा बहुत की आकर्षक है।
सरकारी बुद्ध संग्रहालय
इस संग्रहालय में कुशीनगर में खुदाई से प्राप्त अनेक अनमोल वस्तुओं को संग्रहित किया गया है। यहां आप आसपास के उत्खनन से मिली अनेक सुंदर मूर्तियों का संग्रह देख सकते हैं। यह संग्रहालय प्रतिदन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। सोमवार को साप्ताहिक अवकाश होता है। भारतीय-जापानी-श्रीलंकाई मंदिर, बर्मी मंदिर, बिरला हिंदू बुद्धा मंदिर, क्रीन मंदिर, राम-जानकी मंदिर व मेडीटेशन पार्क यहां के अन्य प्रमुख आकर्षणों में से हैं।
- प्रीटी
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