Battle of Saragarhi । 126 साल पहले 21 सिखों ने लिया था 10000 अफगानों से लोहा, आखिरी दम तक लड़ा था युद्ध

सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए सिखों को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि ब्रिटेन में भी याद किया जाता है। भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट इसे रेजिमेंटल बैटल ऑनर्स डे के रूप में मनाती है। वहीं ब्रिटिश सेना इसे सारागढ़ी चौकी के 21 गैर-कमीशन अधिकारियों और पुरुषों द्वारा प्रदर्शित आत्म-बलिदान के बेहतरीन उदाहरण के रूप में याद करती है।
भारत के इतिहास में कई युद्ध लड़े गए हैं। इन्हीं में सारागढ़ी का युद्ध भी शामिल है, जो विश्व के 5 सबसे महान युद्धों में गिना जाता है। लेकिन क्यों? चलिए आपको बताते हैं। सारागढ़ी युद्ध आज से 126 साल पहले 12 सितम्बर 1897 को लड़ा गया था। इस युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना के महज 21 सिख जवानों ने 10000 अफगान कबाइलियों से लोहा लिया था। इन 21 सिख जवानों ने आखिरी दम तक दुश्मनों से लड़ाई लड़ी थी। इनके असमान्य जज्बे की वजह से सारागढ़ी युद्ध विश्व के 5 सबसे महान युद्धों में दर्ज है। आपको बता दें, सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए सिखों को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि ब्रिटेन में भी याद किया जाता है। भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट इसे रेजिमेंटल बैटल ऑनर्स डे के रूप में मनाती है। वहीं ब्रिटिश सेना इसे सारागढ़ी चौकी के 21 गैर-कमीशन अधिकारियों और पुरुषों द्वारा प्रदर्शित आत्म-बलिदान के बेहतरीन उदाहरण के रूप में याद करती है।
क्यों हुआ था सारागढ़ी का युद्ध?
इतिहासकारों के अनुसार, अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए 1897 में अंग्रेजों ने वहां हमले शुरू कर दिए थे। इन हमलों में अफगानिस्तान सीमा पर मौजूद गुलिस्तान का किला और लॉकहार्ट का किला ब्रिटिश सेना के कब्ज़े में आ गए थे। ओराक्जई जनजाति के अफगान इन दोनों किलो को फिर से अपने कब्जे में लेना चाहते हैं। इन दोनों किलों के पास सारागढ़ी चौकी मौजूद थी, जो गुलिस्तान और लॉकहार्ट किले के बीच संचार का जरिया थी। इस चौकी की सुरक्षा की जिम्मेदारी 36वी सिख रेजिमेंट के पास थी।
11 सितंबर को 9 बजे के आसपास लगभग 10,000 अफगानों ने सारागढ़ी पोस्ट पर हमला शुरू किया। दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देखकर सिपाही गुरमुख सिंह ने फोर्ट लॉकहार्ट में कर्नल हॉटन से मदद की मांग की। कर्नल ने सैनिकों से पोजिशन होल्ड रखने और तुरंत मदद नहीं भेज पाने की बात कही थी। यह जानकारी मिलने के बाद ब्रिटिश भारतीय सेना के हवलदार ईशर सिंह ने दुश्मन को रोकने के लिए आखिरी दम तक लड़ने का फैसला किया। युद्ध के दौरान अफगानों ने सिख सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए लुभाया, लेकिन कोई भी सैनिक इसके लिए तैयार नहीं हुआ। सब ने आखिरी दम तक युद्ध लड़ा और अफगानों के दोनों किलों पर कब्ज़ा करने के इरादे पर पानी फेर दिया।
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