जानें क्यों मनाया जाता है अप्रैल फूल डे, पढ़ें पूरा इतिहास

April Fools Day
सुखी भारती । Apr 1 2021 12:40PM

अप्रैल फूल डे की शुरुआत कैसे हुई इसे लेकर कई तरह के मत हैं लेकिन सबसे प्रचलित मत के अनुसार सन् 1582 में, ग्रैगरी नामक एक पादरी ने सदियों से चले आ रहे जूलियन कलेन्डर को बदलने का फरमान जारी किया था।

1 अप्रैल यानि अप्रैल फूल डे। यह दिन दुनिया के कई देशों में 'मूर्ख दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को All Fools Day कहकर भी सम्बोधित किया जाता है। हालांकि किसी को झूठ बोलकर उल्लू बनाना या उसका मजाक बनाना बुरी बात मानी जाती है। लेकिन जब यह सिर्फ मनोरंजन के लिए किया जाता है तो पिफर एक खास दिन बन जाता है। अप्रैल फूल्स डे पर लोग एक दूसरे से मीठी शरारतें, मजाक एवं चुहल करते नज़र आते हैं। अप्रैल फूल डे की शुरुआत कैसे हुई इसे लेकर कई तरह के मत हैं लेकिन सबसे प्रचलित मत के अनुसार सन् 1582 में, ग्रैगरी नामक एक पादरी ने सदियों से चले आ रहे जूलियन कलेन्डर को बदलने का फरमान जारी किया था। इससे पहले पूरी दुनिया में भारत वर्ष के अनुसार कैलेंडर को माना जाता था। जिसके अनुसार चैत्र मास को ही नए साल का आरंभ माना जाता था। इससे पहले पुराने जूलियन कैलेन्डर के हिसाब से यूरोप में नया साल 1 अप्रैल को मनाया जाता था। परंतु इस नए ग्रैगोरियन कैलेन्डर के अनुसार यह अवसर 1 जनवरी को बदल दिया गया। क्योंकि उन दिनों देश दुनिया में संचार−व्यवस्था के आज जैसे तेज तरार और पुख्ता प्रबंध नहीं थे, तो दूर दराज़ बसे प्रान्तों और देशों को इस किए गए नए बदलाव की भनक तक न पड़ी। 

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दूसरा कारण यह था कि कुछ ऐसे भी परंपरा प्रेमी थे, जिन्होंने ने इस परिवर्तन को खारिज कर दिया और इसे मानने से इनकार कर दिया। इसलिए ये दोनों प्रकार के लोग पुराने कैलेन्डर के हिसाब से 1 अप्रैल को ही नव वर्ष मनाते रहे। नए कैलेन्डर को मानने वालों में इन लोगों के परंपरावादी व्यवहार को लेकर कुछ खुजली सी उत्पन्न हुई। कहते हैं कि उन्होंने इन्हें सनकी लोग मानकर 1 अप्रैल को इन पर हल्के−फुल्के मजाक, उल्लू बनाना एवं छोटे मोटे दाँव पेंच फेंकने शुरु कर दिए। ये ऐसी छोटी−मोटी मनोरंजन से भरपूर टि्रक्स हुआ करती थीं, जिनके द्वारा वे इन लोगों को असत्य व काल्पनिक बातों को सत्य मानने पर मजबूर कर देते थे। इन्हें मूर्ख बनाकर ठहाके लगाते थे। और इन्हें सम्बोधन देते थे−'अप्रैल फूल!' फूल यानि मूर्ख! धीरे−धीरे सोलहवीं शताब्दी के इस घटनाक्रम ने एक रीत का ही रूप ले लिया। सारे यूरोप और एशियाई देशों, जैसे भारत में भी इसकी पदचाप साफ सुनाई देने लग गई। पहली अप्रैल को 'अप्रैल फूल्स डे' के रूप में मनाई जाने लगी। इस दिन लोग अपने मित्र−सम्बन्धी और अपने प्यारों के साथ मीठी चुहलबाज़ी कर, उन्हें फूल भाव मूर्ख बनाते हैं।

इस दिन व्यक्तिगत ही नहीं अपितु इतिहास के अंदर कई ऐसी घटनाएँ और शानदार मज़ाक भी हैं जिनके द्वारा हज़ारों लाखों लोगों को इकट्ठे मूर्ख बनाया गया। सन् 1957 में, बीबीसी न्यूज के 'पैनोरॉमा' नामक एक शो में इस दिन यह न्यूज़ प्रसारित की गई कि स्विस किसानों के खेतों में Spaghetti भाव नूडल्स उगने लग पड़े हैं। इस पर उन्होंने बाकायदा एक वीडियो भी दिखाया। जिसके अंदर किसानों को पेड़ों से नूडल्स के लम्बे−लम्बे मोटे रेशे खींच−खींचकर तोड़ते हुए दिखाया गया था। फिर क्या था, यह वीडियो देखते ही लाखों ही लोगों के फोन बीबीसी के चैनल के आपिफस में बजने लगे। कई लोग बीबीसी के आपिफस तक पहुँच गए। क्योंकि वह यह जानना चाहते थे कि आखिर किसान अपने बगीचों में नूडल्स कैसे उगा सकते हैं। जवाब में बीबीसी चैनल वालों ने उन्हें ठेंगा दिखाते हुए कहा−अप्रैल फूल!

और सन् 1976 ने बी.बी.सी रेडियो ने पुनः फिर जनता को अप्रैल फूल बनाते हुए एक गल्प सूचना रेडियो पर संचारित की, कि सवेरे 9.45 बजे प्लूटो ग्रह जूपिटर की आड़ में गुज़रेगा। इसलिए कुछ समय के लिए पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण में कमी आ जाएगी। सैंकड़ों ही सनिकयों ने इस मज़ाकिया खबर को काफी तूल दिया। कइयों ने तो यहाँ तक दावा कर दिया कि वे 9.45 बजे धरती से ऊपर उठकर हवा में तैरने लगे थे। इसके लिए उन्होंने बाकायदा बी.बी.सी रेडियो को फोन करके यह सूचना दी। तो यह तो रही हँसी मजाक की बातें। परंतु इसके अलावा भी इस दिन के साथ कई महत्वपूर्ण घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। जैसे−

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1 अप्रैल 1936 को भारत देश के अंदर उड़ीसा राज्य की स्थापना हुई जो इससे पहले कलिंगा या उत्कल के नाम से जाना जाता था। 

1 अप्रैल 1973 को चीतों की घट रही संख्या को मद्देनज़र रखते हुए टाइगर बचाओ अभियान चलाया गया। 

1 अप्रैल 1979 को ईरान मुस्लिम देश घोषित हुआ था।

1 अप्रैल 1997 को मार्टिना हिंगिस टैनिस की दुनिया में सब से कम उम्र की नंबर वन महिला खिलाड़ी बनी। 

1 अप्रैल 2008 को भारतीय मूल के अमरीकी वैज्ञानिक ने नया इमेजिंग सिस्टम तैयार किया। 

तो आएँ इस रोचक जानकारी के साथ हँसे−खिलखिलाएँ, मुस्कराएँ और खुश हो जाएँ क्योंकि आज के माहौल में अगर सबसे ज्यादा कुछ महँगा है तो वह सिर्पफ हँसी खुशी के ही दो पल हैं। 

- सुखी भारती

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