थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बन्दूक उठाके, दस-दस को एक ने मारा... जो शहीद

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रेनू तिवारी । Jul 24 2019 7:02PM

मेजर पद्मपनी आचार्य ने अपनी टीम के साथ मिल कर योजना बनाई और आगे बढ़े... लागातार दुश्मनों की बम और गोलियों की बरसात हो रही थी। फूंक-फूंक कर कदम रखती मेजर की टीम दुश्मन के कब्जे वाले क्षेत्र में आ चुके थे।

मेजर पद्मपनी आचार्य भारतीय सेना में अधिकारी थे। उन्हें 28 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान अपने कार्यों के लिए मरणोपरांत भारतीय सैन्य सम्मान, महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर पद्मपनी आचार्य को अपनी सेना टुकड़ी के साथ दुश्मन के कब्जे वाली अहम चौकी को आजाद कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह जगह बेहद खतरनाक थी क्योंकि यहां दुश्मनों ने जमीन में माइंस बिछा रखे थे ताकि कोई भी भारतीय सैनिक दुश्मन कब्जे वाले एरिया में एंट्री करते ही माइंस के विस्फोट में मारा जाए।

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इस चाल को मात देने के लिए मेजर पद्मपनी आचार्य ने अपनी टीम के साथ मिल कर योजना बनाई और आगे बढ़े... लागातार दुश्मनों की बम और गोलियों की बरसात हो रही थी। फूंक-फूंक कर कदम रखती मेजर की टीम दुश्मन के कब्जे वाले क्षेत्र में आ चुके थे। यहां दुश्मनों के पास अत्याधुनिक हथियारों थे। वह लगातार फायर कर रहे थे मेजर को कई गोलियां लग चुकी थी लेकिन वह दुश्मन को तबाह करने की ठान चुकी थी। उन्होंने आगे बढ़कर फायरिंग की और अपनी टीम के साथ मिलकर दुश्मनों को खदेड़ दिया। उनके अत्याधुनिक हथियार को बर्बाद कर दिया। इसके बाद मेजर पद्मपाणि ने दम तोड़ दिया और हमेशा के लिए अमर हो गये।

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मेजर आचार्य मूल रूप से ओडिशा से थे और हैदराबाद, तेलंगाना के निवासी थे। आचार्य, चारुलाथा से शादी कर रहे थे। आचार्य के पिता, जगन्नाथ आचार्य 1965 और 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत्त विंग कमांडर थे। वे वर्तमान में हैदराबाद में रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं के साथ काम कर रहे हैं। 

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