मेरे हाथ की चूड़ी, मांग का सिंदूर क्या अब तय करेगा कि मैं अपने पति से प्यार करती हूं? जी नहीं!

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रेनू तिवारी । Jun 30 2020 5:01PM

हाथ में भर-भर के चूड़ी पहनू... बाल खोल कर पूरी मांग में लाल रंग का सिंदूर लगाऊ... माधे पर बड़ी सी बिंदी, नाक में नथनी और पैर से पूरे घर में घूंघरू की आवाज खनकाउं... क्या यही मेरे प्यार की निशानी है?

हाथ में भर-भर के चूड़ी पहनू... बाल खोल कर पूरी मांग में लाल रंग का सिंदूर लगाऊं... माधे पर बड़ी सी बिंदी, नाक में नथनी और पैर से पूरे घर में घूंघरू की आवाज खनकाउं... क्या यही मेरे प्यार की निशानी है? 24 घंटे गले में मंगलसूत्र पहनू और पति के पास भी न जाउं, लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखूं लेकिन कलेश कर-कर के उसकी जान खाऊं... क्या यहीं होगा मेरा मेरे पति के लिए प्यार? 

चूड़ी , बिंदी, सिंदूर नहीं लगाया तो पति दे देगा तलाक 

गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने लड़कियों को जज करते हुए एक बहुत ही अजीब फैसला सुनाया हैं, जिससे हम लड़कियां बिलकुल भी सहमत नहीं हैं। गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने ‘सिंदूर’ लगाने और ‘चूड़ी’ पहनने से इनकार करने पर एक व्यक्ति को अपनी पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दे दी। अदालत ने इस आधार पर तलाक को मंजूरी दी कि एक हिंदू महिला द्वारा इन रीति-रिवाजों को मानने से इनकार करने का मतलब है कि वह शादी स्वीकार करने से इनकार कर रही है।

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महिलाओं की स्वतंत्रता से डरता है पुरुष प्रधान समाज 

अब आप ही बताईये कि यह बात कहा तक जायज है। जहां एक तरह पूरी दुनिया में सरकार महिला सशक्तिकरण का ढिढ़ोंरा पीट रही हैं वहीं कोर्ट महिलाओं को चूड़ी-सिंदूर से उपर ही नहीं उठने देना चाहता। क्या महिला केवल पति की निशानियों को ढोने के लिए बनीं हैं? पति शादी की कौन सी निशानी पहन कर घूमता हैं। समाज का ये कैसा दोगलापन है जो एक तरफ ये तो कहता है कि महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए लेकिन दूसरी तरफ महिलाओं की स्वतंत्रता से इतना डरता है। उनको डर है कि अगर ये स्वतंत्र हो गयीं तो वो नवाबी किस पर झाड़ेंगे। अपनी नाकामियों की भड़ास किसपर निकालेंगे। इसलिए ये पुरुष प्रधान समाज महिलाओं की स्वतंत्रता से डरता हैं। 

सारे नियम औरतों के लिए ही क्यों बनाए गये हैं? 

हिन्दू धर्म में अगर चूड़ी, पायल, नथनी, मंगलसूत्र पहना पत्नी का धर्म माना गया है तो पति सात फेरे लेते वक्त जो सात जन्म तक साथ निभाने वाली कसम खाता है उसे कैसे भूल जाता हैं।  पत्नी की मामूली गलती, दहेज कम, वैचारिक मतभेद आदि होने पर पहले ही जन्म में तलाक की अर्जी क्यों डाल देता है। तब कोई कोर्ट पति को सजा क्यों नहीं देती? उससे सवाल क्यों नहीं किया जाता कि  हिन्दू धर्म की मान्यताओं और कसमों को कैसे नहीं माना। दुनिया की सारी बंदिशे, सारे नियम कानून, हर ग्रंथ के रीति-रिवाज के पाखंड सब कुछ आखिर औरतों पर ही क्यों लागू होते है। और कभी औरते अपनी चीजों के लिए मुंह खोलती हैं तो उसे मॉर्डन, परपंरा को न मानने वाली लड़की, वैश्या, गिरी हुई औरत, फेमिनिस्ट आदि कहा जाता हैं। आखिर इतना दोगलापन क्यों? 

पुराने समय में तो औरत को हक ही नहीं था अपने जीवनसाथी में कोई गुण ढूंढ़ने का, जिससे परिवार ने बांध दिया पूरी उम्र उसके साथ ही गुजार दी। अब जमाना बदल गया है। हम लड़कियां भी अपने पति से कुछ उम्मीदें रख सकती हैं। आजकल की लड़कियों की भी अपने पर्टनर से ज्यादा नहीं बस कुछ इस तरह की उम्मीदें हैं।

बेस्ट पति के ये 10 गुन

1- हमारी हर बात न सुने बल्कि सही बात सुनें।

2- हमें गिफ्ट और सरप्राइज नहीं चाहिए, बस उसका थोड़ा वक्त चाहिए। 

3- खुद के काम को सम्मान करें और पत्नी के काम को भी इज्जत दें।  

4- फेसबुक पर दिखावे से ज्यादा असल जिंदगी में प्यार करें।

5- अगर कुछ दिन पत्नी अपने घर रहना चाहती हैं तो पति उसके आने-जाने में कलेश न करें।

6- घूमने की प्लानिंग करते वक्त पत्नी की फेवरेट लोकेशन भी पूछ ले। 

7-अपने साथी के साथ भरोसेमंद होना शादी का एक महत्वपूर्ण आधार है। इस लिए भरोसा करें।

8- पत्नी ही घर आकर खाना बनाएगी इस बात पर बिलकुल भरोसा न करें।

9- छोटी-मोटी गलतियों को नजर-अंदार करना आता हो।

10- हमें मर्यादा पुरुषोत्तम  श्री राम नहीं हमें तो एक नॉर्मल प्यार करने वाला इंसान चाहिए।

बस यहीं है आज की लड़कियों की अपने पति को लेकर डिमांड। हमें चूड़ी, सिंदूर लगा कर पति को प्यार नहीं करना हैं बल्कि पति हमारी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा हो,  उसे ऐसे प्यार करना है। हमारे अंदर पति के लिए परवाह और इज्जत होनी चाहिए न कि मंगलसूत्र पहने का उपरी दिखावा। औरतों को सजना सवरना पसंद होता हैं,  लेकिन जिसे नहीं पसंद है उस पर सजने-सवरने का कोई दबाव भी नहीं होना चाहिए।

गुवाहाटी उच्च न्यायालय का ये है अजीब फैसला 

गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने ‘सिंदूर’ लगाने और ‘चूड़ी’ पहनने से इनकार करने पर एक व्यक्ति को अपनी पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दे दी। अदालत ने इस आधार पर तलाक को मंजूरी दी कि एक हिंदू महिला द्वारा इन रीति-रिवाजों को मानने से इनकार करने का मतलब है कि वह शादी स्वीकार करने से इनकार कर रही है। पति की याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश अजय लाम्बा और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की एक खंड पीठ ने एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसने इस आधार पर पति को तलाक की अनुमति नहीं दी थी कि पत्नी ने उसके साथ कोई क्रूरता नहीं की। व्यक्ति ने पारिवारिक अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने 19 जून को दिए अपने फैसले में कहा, ‘‘चूड़ी पहनने और सिंदूर लगाने से इनकार करना उसे (पत्नी को) अविवाहित दिखाएगा या फिर यह दर्शाएगा कि वह वादी के (पति) साथ इस शादी को स्वीकार नहीं करती है। प्रतिवादी का यह रवैया इस ओर इशारा करता है कि वह वादी (पति) के साथ दाम्पत्य जीवन को स्वीकार नहीं करती है।’’ इस जोड़े की शादी 17 फरवरी, 2012 में हुई थी, लेकिन इसके शीघ्र बाद ही दोनों के बीच झगड़े शुरू हो गए थे, क्योंकि महिला अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ नहीं रहना चाहती थी। परिणामस्वरूप दोनों 30 जून, 2013 से ही अलग रह रहे थे।

पीठ ने कहा कि महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन यह आरोप निराधार साबित हुआ। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘पति या उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ निराधार आपराधिक मामले दर्ज कराने की इन गतिविधियों को उच्चतम न्यायालय ने क्रूरता करार दिया है।’’ न्यायाधीशों ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज किया कि महिला ने अपने पति को उसकी बूढ़ी मां के प्रति दायित्वों के निर्वाह से रोका। आदेश में कहा, ‘‘इस तरह के सबूत क्रूरता को साबित करने के लिए पर्याप्त है।

 

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