कौन थे नेहरू के पूर्वज, एक मुगल राजा ने दी थी कश्मीर के एक शख्स को दिल्ली में हवेली, जानिए नेहरू परिवार की दास्तां

Jawaharlal Nehru

बंसीधर नेहरू पहले से ही कानून की पढ़ाई और काम का से जुड़े रहे। खेतड़ी से लौटने के बाद नंदलाल ने भी यही रास्ता चुना। दोनों भाई वकील बन चुके थे। मोतीलाल नेहरू को भी इलाहाबाद से मैट्रिक पास करके की परीक्षा के लिए आगरा जाना था।

1947 में जब देश को आजादी मिली तो पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री चुनाव होने तक महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे दिग्गजों का निधन हो चुका था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तो आजादी से पहले ही रहस्यमई तरीके से मौत हो गई थी। देश के पहले आम चुनाव 1952 में 497 सीटों पर हुए।

 यह वह दौर था जब कांग्रेस के पास नेहरु जैसा दमदार नेता था स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली एक प्रमुख पार्टी होने के नाते और देश की आजादी में योगदान चलते कांग्रेस की छवि बहुत अच्छी थी। देश के पहले आम चुनावों में 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने मतदान किया। 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक चले लोकतंत्र के इस महापर्व में लोगों ने जवाहरलाल नेहरू को देश की कमान सौंपी थी। इन चुनावों में कांग्रेस को 44.99 प्रतिशत मत मिले थे।

इन चुनावों के बाद देश की कमान लंबे वक्त वक्त तक कांग्रेस के हाथों में रही। 45% मत पाकर भले ही कांग्रेस पहले आम चुनावों में कामयाब हो गई हो लेकिन गैर कांग्रेसी को 33% वोट देने वाले लोग हो या निर्दलीयों पर अपना भरोसा जताने वाले कांग्रेस की कार्यशैली ऊपर हमेशा सवाल उठाते रहे। उन सवालों के निशाने पर सबसे ज्यादा कोई रहा वो पंडित जवाहरलाल नेहरू थे।  इन सवालों में सबसे ज्यादा चर्चा पंडित नेहरू के पारिवारिक इतिहास को लेकर होती है। लेकिन हमें राहुल गांधी, राजीव गांधी या इंदीरा गांधी परिवार के पारिवारिक इतिहास को समझने के लिए वक्त को करीब 300 साल पीछे ले जाना होगा।

एक कश्मीरी परिवार और मुगल राजा

बात साल 1710 की है। कश्मीर में तब राजनारायण कौल नाम के एक पढ़े-लिखे शख्स रहा करते थे उन्होंने तारीखी कश्मीर नाम की एक किताब भी लिखी। राजनारायण कौल संस्कृत के साथ-साथ फारसी के भी अच्छे खासे जानकार थे, उस समय यह बात दिल्ली के मुगल दरबार तक भी पहुंची। 1713 से 1719 तक दिल्ली में  फर्रूखसियर का राज था। उस समय भी राज दरबारों में पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी लोग हुआ करते थे। जब फर्रूखसियर कश्मीर गए तो उन्हें राज नारायण कौल के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने राज नारायण कौल को दिल्ली आकर बसने को कहा।

यह परिवार दिल्ली आया तो राजा ने इस परिवार को एक छोटी सी जागीर और दिल्ली में नहर के ठीक किनारे एक हवेली दी। इसी नहर के किनारे रहने की वजह से कौल परिवार की पहचान नहर से नेहरू हो गई। ज्यादातर इतिहासकार इस तर्क से सहमत नजर आते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में नेहरू उपनाम के पीछे यही कहानी बताई है। लेकिन कुछ इतिहासकार ऐसे भी हैं जो इस तर्क से सहमत नजर नहीं आते।

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला की जीवनी लिखने वाले लेखक मोहम्मद यूसुफ टैंग इस बात से सहमत नहीं है। नेहरू की इस कहानी को कश्मीर से ही जोड़ कर देखते हैं। प्रसिद्ध किताब कश्मीरनामा के लेखक अशोक कुमार पांडे भी कश्मीरनामा में युसूफ टैंग के हवाले से लिखते हैं मुगल बादशाह फर्रूखसियर कभी कश्मीर गया ही नहीं, इसलिए पंडित नेहरू का यह दावा की बादशाह की नजर ब्राम्हण कौल पर पड़ी उनके आमंत्रण पर वह दिल्ली आए यह सही नहीं लगता। युसूफ टैंग ने भी कहा है कि उस दौर के इतिहासकारों में राज नारायण कौल का जिक्र नहीं मिलता।

अपनी किताब कश्मीरनामा में लेखक यूसुफ टैंग के हवाले से  अशोक कुमार पांडे ये भी लिखते हैं कि युसूफ टैंग का यह भी मानना था कि नेहरू उपनाम कश्मीर की ही पैदाइश है। जहां उत्तर भारत में अपना नाम बड़ी ई से बनते हैं कश्मीर में ये उपनाम बड़े ऊ से बनते हैं। कश्मीर में नहर के लिए कुल या नाद का इस्तेमाल होता है, इसीलिए नेहरू उपनाम का रिश्ता नहर से मालूम नहीं पड़ता। टैंग का यह भी मानना है कि नेहरू परिवार श्रीनगर एयरपोर्ट के पास के नौर या फिर त्राल के पास नुहर गांव का रहने वाले थे। शायद यहीं उनका उपनाम नेहरू बन गया।

नेहरू परिवार

बी आर नंदा की किताब द नेहरूज, मोतीलाल एंड जवाहरलाल में इस परिवार के इतिहास के बारे में विस्तृत रूप में लिखा गया है। किताब के अनुसार राज नारायण कौल के 2 पोते थे। इन दोनों के नाम मौसा राम कौल और साहब राम कौल थे। मोसाराम की बेटे थे लक्ष्मी नारायण कौल नेहरू। इनको मुगल दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना वकील बनाया। इनके बेटे का नाम था गंगाधर नेहरू जोकि 1857 की क्रांति से पहले दिल्ली के कोतवाल थे।

हंसराज रहबर अपनी किताब में लिखते हैं कि जब 1857 की क्रांति के समय दिल्ली में मार काट मची तो लोग दिल्ली छोड़ कर भाग गए थे। इसी समय नेहरू परिवार भी दिल्ली से आगरा चला गया था। कहते हैं कि आगरा जाते समय ही कुछ अंग्रेज सिपाहियों ने नेहरू परिवार को घेर लिया था। पर मोतीलाल नेहरू के दोनों भाइयों बंसीधर और नंदलाल की अंग्रेजी शिक्षा और ईस्ट इंडिया कंपनी से पारिवारिक नजदीकी के कारण जान बच गई।

1861 में जन्मे मोतीलाल नेहरू। बंशीधर ने आगरा में नौकरी की, वे जज के फैसले को लिखने का कार्य करते थे। वहीं दूसरे भाई नंदलाल ने कुछ वक्त तक शिक्षक का काम किया और फिर खेतड़ी महाराजा के सचिव बन गए। इसके बाद खेतड़ी महाराजा फतेह सिंह ने उन्हें अपना दीवान नियुक्त किया। फतेह सिंह की मृत्यु के बाद उनकी नौकरी चली गई। और वापस आकर वह फिर से वकालत की पढ़ाई करने लगे।

 बंसीधर नेहरू पहले से ही कानून की पढ़ाई और काम का से जुड़े रहे। खेतड़ी से लौटने के बाद नंदलाल ने भी यही रास्ता चुना। दोनों भाई वकील बन चुके थे। मोतीलाल नेहरू को भी इलाहाबाद से मैट्रिक पास करके की परीक्षा के लिए आगरा जाना था। लेकिन मोतीलाल परीक्षा छोड़ ताजमहल देखने चले गए। मोतीलाल नेहरू का दूसरी पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह भी कानून की पढ़ाई करने लगे। मोतीलाल ने पहले कानपुर और फिर इलाहाबाद में वकालत की शुरुआत की। इसी बीच 14 नवंबर 1289 को जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ। इसके बाद के नेहरू परिवार की कहानी लोग बहुत अच्छे से जानते हैं।

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