क्यों मनाया जाता है मुहर्रम? इस्लाम धर्म में इस दिन का क्या महत्व है?

मुहर्रम के बारे में बताया जाता है कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का फल 30 रोजों के बराबर मिलता है। यह रोजे अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत महत्व है।
मुहर्रम इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए खास दिन है। यह दिन अन्याय और असत्य को स्वीकार न कर जीवन में सदैव सत्य आचरण को अपनाने का संदेश देता है। इससे यह भी प्रेरणा मिलती है कि समाज में अच्छाई को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करनी चाहिए। मुहर्रम मुस्लिम कैलेंडर का पहला माह होता है। इस महीने को इस्लाम धर्म के चार पवित्र महीनों में शामिल किया जाता है। खुदा के दूत हजरत मुहम्मद ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। अल्लाह के महीने में मनाया जाने वाला मुहर्रम माह के पहले दिन से शुरू होकर दसवें दिन तक चलता है।
मुहर्रम के मनाए जाने की शुरुआत इराक में स्थित कर्बला की एक घटना के बाद हुई। यह घटना सत्य के लिए प्राणों की बलि देने की बहुत बड़ी मिसाल है। मुस्लिम धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि हिजरा के 61 साल बाद हजरत अली (चौथे खलीफा) के निधन से उनके उत्तराधिकार को लेकर विवाद हो गया। इस दौरान नए मनोनीत खलीफा के गलत आचरण का हजरत इमाम हुसैन ने विरोध किया। उस समय के खलीफा यजीद की सेना ने हजरत इमाम हुसैन के कदम पर नाराजगी जताते हुए अपनी सेना को भेज कर हुसैन, उनके परिवार के सदस्यों और अनुयायियों को बंधक बनवा लिया। बंधक बनाए रखने के समय उन सभी को यातना दी गई। यातना से कई लोगों की मृत्यु हो गई। अंत में हजरत इमाम हुसैन का भी सिर कलम कर दिया गया। तब से ही उनकी याद में मुहर्रम का पर्व मनाया जाता है।
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इमाम हुसैन और उनकी शहादत के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन, जो कि बीमारी के कारण युद्ध में भाग नहीं ले सके थे, वही बचे थे। हुसैन और उनके साथियों को मौत के घाट उतरवाने वाले यजीद का नाम आज दुनिया से ख़त्म हो चुका है। कोई भी मुसलमान और इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाला शख्स अपने बेटे का नाम यजीद नहीं रखता। जबकि अपने बच्चों का नाम हज़रत हुसैन और उनके शहीद साथियों के नाम पर रखने वाले अरबों मुसलमान हैं।
मुहर्रम के बारे में बताया जाता है कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का फल 30 रोजों के बराबर मिलता है। यह रोजे अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत महत्व है। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानि मुहर्रम में रखे जाते हैं। जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं। उल्लेखनीय है कि इस्लामी यानी हिजरी सन का पहला महीना मुहर्रम है।
- शुभा दुबे
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