ओजोन परत के संरक्षण के लिए मनाया जाता है वर्ल्ड ओजोन डे

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ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है। ओजोन परत आमतौर धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। ओज़ोन ऑक्सीजन के एक परमाणु से नहीं बल्कि तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो कि वातावरण में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है।

धरती पर ओजोन परत के महत्व और पर्यावरण पर पड़ने वाले उसके असर के बारे में जानकारी के लिए 16 सितम्बर को वर्ल्ड ओजोन डे मनाया जाता है। तो आइए हम आपको वर्ल्ड ओजोन डे के बारे में बताते हैं। 


ओजोन परत के बारे में जानकारी 

ओजोन परत की खोज फ्रांस के दो वैज्ञानिकों फैबरी चालर्स और होनरी बुसोन ने की थी। ओजोन परत गैस की एक ऐसी परत है जो पराबैंगनी किरणों से हमें बचाती है। यह परत हमारे लिए एक फिल्टर की तरह काम करती है जिसे मनुष्य तथा धरती पर मौजूद अन्य जीव की पैराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से बचाती है। 

वर्ल्ड ओजोन डे की हिस्ट्री 

वर्ल्ड ओजोन डे वर्ष 1994 में 16 सिंतम्बर को पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मनाया गया था। 16 सितम्बर के दिन 1987 में ओजोन परत की रक्षा के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया गया था। 

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पहली बार मना वर्ल्ड ओजोन डे 

वर्ल्ड ओजोन डे पहली बार साल 1995 में मनाया गया था। वर्ल्ड ओजोन डे धरती पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा ओजोन परत के महत्व के कारण मनाया जाता है। वर्ल्ड ओजोन डे मनाने का मकसद ओजोन परत का संरक्षण है।


ओजोन क्या है 

ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है। ओजोन परत आमतौर धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। ओज़ोन ऑक्सीजन के एक परमाणु से नहीं बल्कि तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो कि वातावरण में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। यह गैस निचले वातावरण में पृथ्वी के पास रहने पर प्रदूषण को बढ़ावा देती है और इंसानो के लिए नुकसानदेह होती है। लेकिन वायुमंडल के ऊपरी सतह पर इसकी स्थिति आवश्यक है। यह गैस कुदरती तौर पर बनती है। जब सूर्य की किरणें वायुमंडल की ऊपरी सतह पर ऑक्सीजन से टकराती हैं तो उच्च ऊर्जा विकिरण से इसका कुछ भाग ओज़ोन में बदल जाता है। इसके अलावा विद्युत विकास क्रिया, आकाशीय विद्युत, बादल एवं मोटरों के विद्युत स्पार्क से भी ऑक्सीजन ओज़ोन में परिवर्तित हो जाती है।


अल्ट्रावायलट किरणों से नुकसान 

अल्ट्रावायलट किरणों में बहुत ऊर्जा होती है जो ओजोन परत को पतला कर रही है। अल्ट्रावायलट किरणे बढ़ने पर धरती पर चर्म रोगों की मात्रा बढ़ती है। इसके अलावा लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। यही नहीं मनुष्यों में मोतियाबिंद की परेशानी बढ़ने के साथ जैव विविधता घटती है और मछलियों तथा अन्य प्राणियों से संख्या भी कम हो जाती है। 

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ओजोन क्षय का पर्यावरण पर असर 

ओजोन क्षरण से मानवों के साथ पर्यावरण पर भी असर पड़ता है। जहां ओजोन क्षय के कारण मनुष्य जल्दी बूढ़े होते है और शरीर पर झुर्रियां पड़ती है। साथ ही पत्तियों के आकार छोटे जाते हैं, अंकुरण का समय बढ़ जाता है और मक्का, चावल, गेहूं, सोयाबीन जैसे फसलों का उत्पादन कम हो जाता है। पैराबैंगनी किरणें सूक्ष्म जीवों को प्रभावित करते हैं जिसका असर खाद्य श्रृंखला पर पड़ता है। इससे कपड़े को भी नुकसान पहुंचता है, उनके रंग जल्दी उड़ जाते हैं। प्लास्टिक के फर्नीचर और पाइप जल्दी ही खराब हो जाते हैं। 

ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ 

धरती पर ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों में सी.एफ.सी. गैस प्रमुख है। यह गैस घरों में इस्तेमाल होने वाले रेफ्रिजरेटर और एसी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है। साथ ही हैलोन्स और कार्बन टेट्राक्लोराइड भी ओजोन परत के लिए हानिकारक होते हैं। 

प्रज्ञा पाण्डेय

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