शीतलाष्टमी पर व्रत और पूजन कर माँ को करें प्रसन्न, सदैव रहेंगे स्वस्थ

शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाना यानी बसौड़ा तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में अर्पित करते हैं और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में इसे वितरित करते हैं।
शीतलाष्टमी का पर्व समूचे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही शीतला माता के मंदिरों में भक्तों का तांता लग जाता है माता के पूजन के लिए। स्कंद पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि शीतला माता की पूजा करने से चर्म रोग पास नहीं फटकते। शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू तथा नीम के पत्ते धारण किये हुए हैं और इनका वाहन गर्दभ है। स्कंद पुराण में शीतला माता की पूजा अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है-
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वन्देहं शीतलांदेवीं रासभस्थां दिगम्बराम।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
शीतलाष्टमी के दिन व्रत करने और विधि विधान से पूजन करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं। शीतला माता की कृपा हो जाये तो व्रत करने वाले और उसके पूरे परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गन्धयुक्त फोड़े-फुंसी, नेत्रों के समस्त रोग, फुंसियों के चिन्ह तथा अन्य दोष दूर हो जाते हैं।
पूजन विधि
शीतला माता का पूजन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाना यानी बसौड़ा तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में अर्पित करते हैं और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में इसे वितरित करते हैं। उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्योहार बसौड़ा नाम से भी प्रचलित है। मान्यता है, इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाना चाहिए। यह ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं। इस व्रत में रसोई की दीवार पर हाथ की पांच अंगुली घी से लगाई जाती है। इस पर रोली और चावल लगाकर देवी माता के गीत गाये जाते हैं। इसके साथ, शीतला स्तोत्र तथा कहानी सुनी जाती है। रात में जोत जलाई जाती है। इस दिन एक थाली में बासी भोजन रखकर परिवार के सारे सदस्यों का हाथ लगवा कर शीतला माता के मंदिर में चढ़ाते हैं। इनकी उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।
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कथा
एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसाद स्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। बस केवल एक बुढ़िया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढ़िया ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने मा से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।
श्री शीतला माता जी की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता | जय
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता, ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता | जय
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता, वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता | जय
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा, सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता | जय
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता, करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता | जय
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता, भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता | जय
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता, सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता | जय
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता, कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता | जय
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता, ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता | जय
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता, उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता | जय
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता, भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता। जय
-शुभा दुबे
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