बैकुंठ चतुर्दशी व्रत से खुलते हैं स्वर्ग के द्वार

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बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु तथा शंकर भगवान की पूजा का विधान है। विष्णु भगवान की षोडशोपचार पूजा की जाती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातः उठकर स्नान कर पूजा आरम्भ करें।

आज बैकुंठ चतुर्दशी है। हिन्दू धर्म में बैंकुठ चतुर्दशी का खास महत्व है। इस पवित्र दिन विष्णु तथा महेश दोनों की पूजा होती है जो भक्तों हेतु विशेष फलदायी होता है। तो आइए हम आपको बैंकुठ चतुर्दशी की महिमा के बारे में बताते हैं।

जाने बैकुंठ चतुर्दशी के बारे में

कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। बैकुठ चतुर्दशी बहुत खास होती है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु तथा शंकर भगवान दोनों की पूजा का होती है। इस वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी 10 नवंबर रविवार को पड़ रही है। बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विशेष प्रकार से की जाती है। बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा सुबह या शाम को नहीं बल्कि मध्य रात्री यानी निशिथ काल में होती है। ऐसा माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विष्णु जी और शंकर भगवान की पूजा करने से न केवल पापों का नाश होता है बल्कि पुण्य फल की भी प्राप्ति होती है।

बैकुंठ चतुर्दशी पर ऐसे करें पूजा

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु तथा शंकर भगवान की पूजा का विधान है। विष्णु भगवान की षोडशोपचार पूजा की जाती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातः उठकर स्नान कर पूजा आरम्भ करें। पूजा में श्वेत कमल, चंदन, केसर गाय का दूध, चंदन का इत्र, दही, मिश्री और शहद से अभिषेक करना चाहिए। साथ ही भगवान को सूखे मेवे,  गुलाल, कुमकुम सुगंधित फूल, और मौसमी फल का प्रसाद चढ़ाएं। प्रसाद चढ़ाने के उपरांत श्रीसुक्त, श्रीमदभागवतगीता और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। विष्णुजी के बीजमंत्र का 108 बार जाप करें। विष्णु भगवान की इस विधि से पूजा करने पापों से मुक्ति मिलने के साथ पुण्यों भी बढ़ते हैं । बैकुंठ चतुर्दशी व्रत से सुख-समृद्धि बढ़ता है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। ध्यान दे कर पूजा में मखाने की खीर का भोग जरूर लगाएं।

बैकुंठ चतुर्दशी पर शंकर भगवान की पूजा का भी विशेष महत्व है। सबसे पहले शिवलिंग पर गाय के दूध, दही आदि से अभिषेक करें। उसके बाद महादेव को फूल, बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, भांग, श्वेत मिठाई, और मौसमी फल चढ़ाएं। प्रसाद चढ़ाने के बाद रुद्राष्टक, शिवमहिम्नस्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र आदि से उपासना करें। इस दिन निशिथ काल में पूजा करना खासतौर से फायदेमंद होता है। 'ओम ह्रीं ओम हरिणाक्षाय नम: शिवाय' का जाप करने से हरि तथा हर यानी विष्णु जी तथा शंकर भगवान की भक्त पर कृपा बरसती है। इसके अलावा बैकुंठ चतुर्दशी को हरी-हर के साथ सप्तऋषि की आराधना भी की जाती है इससे कई प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है। साथ ही इस पवित्र दिन को पितृों का किसी पवित्र नदी के किनारे तर्पण करने से पूर्वजों का आर्शीवाद भी मिलता है।

बैकुंठ चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त

बैकुंठ चतुर्दशी है- 10 नवंबर दिन- रविवार

बैकुंठ चतुर्दशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त

वैकुण्ठ चतुर्दशी निशिथ काल - रात 11 बजकर 39 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक

वैकुण्ठ चतुर्दशी शुरू हो रही है - 10 नवंबर को शाम 4 बजकर 33 मिनट से

वैकुण्ठ चतुर्दशी खत्म हो रही है - 11 नवंबर 2019 को शाम 6 बजकर 2 मिनट तक

बैकुंठ चतुर्दशी से जुड़ी कथा

एक बार नारद जी पृथ्वी लोक घूम कर बैकुंठ लोग विष्णु जी के पास पहुंचें। विष्णु जी ने उन्हें आपने पास बिठा कर आने का कारण पूछा। इस तरह के सवाल पर नारद जी बोले कि प्रभु आपके भक्त जो आपकी प्रार्थना करते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है लेकिन सामान्य लोग को मोक्ष नहीं मिलता है। इस पर विष्णु जी ने कहा कि जो स्त्री-पुरुष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करेंगे उन्हें सहज से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सहज भाव से भक्त करने वाले बैकुंठ धाम पहुंचते हैं।

प्रज्ञा पाण्डेय

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