वामन जयंती व्रत से मिलते हैं मनोवांछित फल

vaman-jayanti-2019

वामन जयंती के दिन मंदिरों में विशेष रूप से पूजा की जाती है। विभिन्न स्थानों पर भागवत का पाठ कर वामन भगवान की लीला का गान किया जाता है। इसके अलावा वामन जयंती के दिन चावल तथा दही जैसे वस्तुओं का सेवन करना अच्छा माना जाता है।

भादो महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी मनाया जाता है। इस दिन विष्णु भगवान के अन्य रूप वामन ने अवतार लिया था इसलिए इसे वामन जयंती के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए हम आपको वामन जयंती के महिमा के बारे में बताते हैं। 


वामन जयंती का महत्व 

हिन्दू धर्म में वामन जयंती का खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के दिन अगर श्रावण नक्षत्र हो तो इसका महत्व बढ़ जाता है। इस दिन भक्त स्नान कर वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा को की मंत्रोच्चार से पूजा करने पर सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि वामन भगवान ने जैसे राजा बलि के कष्ट दूर किए थे वैसे ही वह भक्तों के कष्टों का भी निवारण करते हैं।

इसे भी पढ़ें: इस मंदिर में स्वयं भगवान राम ने की थी गणेशजी की स्थापना

वामन जयंती की पूजा विधि

वामन जयंती के दिन मंदिरों में विशेष रूप से पूजा की जाती है। विभिन्न स्थानों पर भागवत का पाठ कर वामन भगवान की लीला का गान किया जाता है। इसके अलावा वामन जयंती के दिन चावल तथा दही जैसे वस्तुओं का सेवन करना अच्छा माना जाता है। इस दिन व्रत कर भक्त शाम को वामन भगवान की आरती कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। समस्त परिवार के साथ इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। 

व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा 

वामन अवतार को विष्णु भगवान का प्रमुख अवतार माना जाता है। श्रीमदभागवत पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है। कथन के अनुसार एक बाद देवता तथा दानवों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवता दानवों से पराजित होने लगे। दानव अमरावती पर आक्रमण करने लगे तभी इन्द्र विष्णु के पास जाकर सहायता के लिए याचना करने लगे। तब विष्णु भगवान ने सहायता का वचन दिया और कहा कि वह वामन रूप धारण कर माता अदिति के गर्भ से जन्म लेंगे। दानवों के राजा बलि द्वारा देवताओं की हार से कश्यप जी ने अदिति को पुत्र प्राप्ति के लिए पयोव्रत का अनुष्ठान करने को कहा जाता है। तब भादो महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन भगवान अदिति के गर्भ से अवतार लेते हैं और ब्राह्मण का रूप लेते हैं। 

इसे भी पढ़ें: ढेला चौथ के दिन चंद्र दर्शन से लगता है मिथ्या कलंक

वामन अवतार और राजा बलि 

महर्षि कश्यप दूसरे कई ऋषियों के साथ मिलकर वामन भगवान का उपनयन संस्कार करते हैं। इस संस्कार में वामन बटुक को पुलह नामक के महर्षि ने यज्ञोपवीत संस्कार कराया। आंगिरस ने वस्त्र, अगस्त्य ने मृगचर्म, सूर्य ने छत्र, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, मरीचि ने पलाश दण्ड, भृगु ने खड़ाऊं, अदिति ने कोपीन, कुबेर ने भिक्षा पात्र तथा सरस्वती ने रुद्राक्ष माला दिए उसके बाद वामन भगवान पिता की आज्ञा लेकर राजा बलि के पास गए। उस समय राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते थे।

वामन भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि से भीख मांगने पहुंचें। उस समय वामन अवतार ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने वामन के इस मांग पर सहमति व्यक्त की। इस पर वामन भगवान ने एक पैर से स्वर्ग था दूसरे पैर से पूरी पृथ्वी नाम ली। इसके बाद वह तीसरा पैर रखने के लिए राजा बलि से पूछे। इस पर राजा बलि भगवान का पैर रखने के लिए अपना सर दे देते हैं। राजा बलि के सिर पर पैर रखते हैं ही बलि परलोक चले जाते हैं। विष्णु भगवना प्रसन्न होकर राजा बलि को पाताल  लोक का राजा बना देते हैं। इस तरह देवताओं को स्वर्ग वापस मिल जाता है और वह प्रसन्नता पूर्वक रहने लगते हैं। 

प्रज्ञा पाण्डेय

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़