Gyan Ganga: भगवान कृष्ण ने कैसे किया असुर अघासुर का उद्धार?

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आरएन तिवारी । Oct 21 2022 4:45PM

भगवान श्री कृष्ण ने असुर अघासुर भी बकासुर के समान चीरकर फेंक देंगे। अपने को डरने की जरूरत नहीं। इस प्रकार कहते हुए सभी ग्वाल-बाल ताली बजाते हुए और ज़ोर से शोर मचाते हुए अघासुर के मुँह में घुसते चले गए।

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 

प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। मित्रों ! पिछले अंक में हम सबने पूतना के पूर्व जन्म और भगवान कृष्ण की माखन चोरी की कथा का श्रवण किया। 

आइए ! अब आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं--- 

अघासुर का उद्धार

अब भगवान श्रीकृष्ण धीरे-धीरे बड़े होने लगे हैं। अपनी मित्र-मंडली के साथ नित्य नई-नई लीलाएँ कर रहे हैं। एक दिन प्रभु ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन के मनोहारी अरण्य में आँख मिचौली खेल रहे थे। व्रजवासियों ! तुम छिप जाओ हम ढूढ़ेंगे। ठीक है लाला ! व्रजवासी छिपने का स्थान देख रहे थे, तब तक अघासुर नाम का असुर विशाल सर्प का रूप धारण करके वहाँ आ गया। उससे श्रीकृष्ण और ग्वाल-बालों की सुखमई क्रीडा देखी न गई। उसके हृदय में जलन होने लगी। वह इतना भयानक था कि अमृत पान करके अमर हो चुके देवता भी अपने जीवन की रक्षा करने के लिए चिंतित रहते थे। अघासुर, पूतना और बकासुर का छोटा भाई था। कंस ने बकासुर और पूतना के वध का बदला लेने के लिए उसे भेजा था। 

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दृष्ट्वार्भकानकृष्ण्मुखानघासुर: कंसानुशिष्ट: स बकीबकानुज: । 

अयं तु मे सोदरनाश कृत्तयो: द्वयोर्ममैनं सबलं हनिष्ये॥  

   

उसने नीचे का होठ धरती से सटाया और ऊपर का होठ आसमान तक फैलाकर प्राणायाम चढ़ाकर मुँह फाड़कर बैठ गया। न हिले न डुले बिलकुल पत्थर की प्रतिमा हो गया। व्रजवासी देखकर बोले- अरे भैया ! इतने दिन हो गए वृन्दावन में ऐसी विचित्र गुफा तो पहली बार देखी। दूसरे ने कहा- अरे गुफा तो ऐसी दिख रही है मानो कोई अजगर हो। कारीगर ने कितनी सजीव गुफा बनाई है। इस गुफा में बड़े-बड़े वैरागी संत महात्मा बैठे होंगे। चलो एक बार देख तो आयें, उनके दर्शन भी कर आएंगे। कैसे-कैसे महात्मा हैं। अब जैसे ही व्रजवासी उसकी जिह्वा पर कदम रखकर अंदर प्रवेश किए। एक ने कहा- यार ! कितनी मुलायम सड़क है, लगता है किसी ने गद्दा बिछा रखा है। ऐसी सड़क तो कभी देखी ही नहीं। चलो और अंदर चलें जब दरवाजे पर इतनी सुंदर है तो भीतर कितनी सुंदर होगी। व्रजवासी और आगे बढ़े। अघासुर के जबड़े को देखकर एक ने पूछा- अरे ! ये इतने बड़े बड़े खूँटे क्यों दिख रहे हैं? दूसरे ने कहा-- अरे मूर्ख ! साधु महात्मा अपने अपने डंड-कमंडल और लंगोट टाँगते होंगे। अब और आगे बढ़े। इतने में जो अघासुर सांस रोके बैठा था उसकी सांस धीरे-धीरे निकलने लगी। गरम-गरम दुर्गंध से भरी हवा जब बाहर निकली तो व्रजवासी कहने लगे हे भगवान ! ये गरम-गरम हवा कहाँ से आ रही है। एक ने कहा- तुम्हें पता नहीं बड़े बड़े महात्मा समाधि में बैठे - बैठे एक साथ प्राणायाम चढ़ाते होंगे और एक बार सांस खींचकर छोडते होंगे। एक ने कहा समाधि में महात्मा लोगों को अपने शरीर की सुधि नहीं रहती, हो सकता है कोई जीव-जन्तु हड़बड़ा कर मर गया हो उसी की दुर्गंध होगी। चलो अपन लोग साफ-सफाई भी कर आएंगे और महाराज जी के दर्शन भी हो जाएंगे। ये व्रजवासी आपस में शंका भी कर लेते हैं और समाधान भी कर लेते हैं। एक ने कहा भैया मुझे तो डर लग रहा है अगर ये कोई असुर हो तो ? सुनकर सभी ग्वाले एक स्वर में बोले- अरे क्यों घबरा रहे हो? अपना कन्हैया भी तो पीछे ही है। 

''अयम तथा चेद बकवद विनष्यति।'' भगवान श्री कृष्ण इसको भी बकासुर के समान चीरकर फेंक देंगे। अपने को डरने की जरूरत नहीं। इस प्रकार कहते हुए सभी ग्वाल-बाल ताली बजाते हुए और ज़ोर से शोर मचाते हुए अघासुर के मुँह में घुसते चले गए। अब भगवान ने देखा- अरे ! ये सब के सब व्रजवासी खेल-खेल में इस भयानक अजगर अघासुर के मुंह में चले गए। भगवान ने दूर से ही आवाज लगाई अरे ! ग्वाल-बालों ! रुको-रुको, ये कोई गुफा नहीं है लेकिन वो सब इतना शोर मचा रहे थे कि भगवान की बात सुन नहीं पाए। अब क्या करे भगवान ने विचार किया, इन्हे बचाने के लिए अब तो हमे ही जाना पड़ेगा। 

मित्रों ! ये प्रभु की प्रतिज्ञा है, वे अपने भक्त का पतन नहीं होने देते। व्रजवासियों से भूल तो हो गई, वे अंदर तो चले गए किन्तु उनको पूरा विश्वास है कि मेरा कन्हैया मेरे साथ है। इसी विश्वास पर भगवान उनकी रक्षा करते हैं। 

“अभयम सर्व भूतेभ्यो ददाम्येतत व्रतम मम्” 

एक बार भी यदि किसी ने कह दिया प्रभु “तवास्मि” मैं तुम्हारा हूँ फिर मैं  

“सर्व भूतेभ्यो अभयम ददामि।“ सभी से अभय कर देता हूँ। 

“एतत मम व्रतम्” 

अध्यात्म रामायण और वाल्मीकि रामायण में भगवान की इस प्रकार की प्रतिज्ञाएं हैं। भागवत के एकादश स्कन्ध में भगवान उद्धव से कहते हैं- ऐसे तो मेरा भक्त विषयों में भटकता है इंद्रियाँ बड़ी बलवती हैं। कदाचित इंद्रियों के वशीभूत होकर विषयों में  भटक जाए विकारों का दास बन जाए तब भी मै अपने भक्त को संभाल लेता हूँ। पाप के बाप का भी पेट फाड़कर निकाल लाता हूँ। अपने भक्त का पतन नहीं होने देता। ये अघासुर क्या है, पाप का पुंज ही तो है, पाप का बाप ही तो है। इस जगत में इन्सान कितनी भी सावधानी से चले फिर भी जन्म जन्मांतरों के अभ्यास स्वरूप विषयों के प्रति आसक्त हो ही जाता है। इसलिए कभी-कभी बड़े-बड़े विद्वान पंडित ज्ञानी यहाँ तक कि साधु-महात्मा भी भोग-विलास की चका चौंध में फिसल जाते हैं। इसलिए भगवान कहते हैं कि जो मेरा आश्रय लेकर चलता है उसे मैं भटकने नहीं देता। वह मेरे भरोसे पर है, मै किसी का भरोसा नहीं तोड़ता और जो अपने भरोसे पर चलता है वह कदाचित भटक सकता है। भगवान अपने किसी भी भक्त का विश्वास नहीं तोड़ते।

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दृष्टांत:- एक बार एक गाँव में दुर्भिक्ष पड़ा। दूर-दूर तक कहीं वर्षा नहीं। त्राहि-त्राहि मची थी। एक दिन सभी गाँव वालों ने प्रात:काल मंदिर में प्रार्थना करने की सोची । 

साथ में एक पाँच वर्ष का बालक भी छाता लेकर चल दिया। सबने मना किया, कुछ लोगों ने उसकी हँसी भी उड़ाई किन्तु वह भगवान के विश्वास में अडिग था। उसको अपनी प्रार्थना पर पूरा भरोसा था। प्रार्थना पूर्ण होते ही घनघोर घटा छा गई और मेघ बरसने लगे। यह है पूर्ण विश्वास। लोगों ने उसके छाते में सिर छिपाया। 

शेष अगले प्रसंग में ---------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

- आरएन तिवारी

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