मोक्ष के लिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में करें स्नान

जगदीश यादव । Jan 14 2017 12:57PM

मान्यता है कि गंगासागर का पुण्य स्नान अगर विशेष रूप से मकर संक्रांति के दिन किया जाए तो उसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है और पुण्यार्थी को इस स्नान का विशेष पुण्य मिलता है।

अंग्रेजों ने भी इस देश को साधु-संतों का देश कहा है। भारत की धरती ही एक मात्र जगह है जहां आस्था सिर चढ़कर बोलती है। यहां डूबते सूर्य को भी अर्घ्य प्रदान किया जाता है। पश्चिम बंगाल की जिस पावन भूमि में गंगा व सागर का संगम होता है उसे गंगासागर कहते हैं। जिसे सागरद्वीप भी कहा जाता है। गंगासागर मेला देश में आयोजित होने वाले तमाम बड़े मेलों में से एक है। इसकी ख्याति यहां वर्ष में एक बार लगने वाले मेले के तौर पर कम बल्कि मोक्षनगरी के तौर पर ही है जहां दुनिया भर से श्रद्धालु एक डुबकी में मोक्ष की कामना लेकर आते हैं। भगवान विष्णु के अवतारों में एक कपिल मुनि का यहां आश्रम है जो अब भव्यता के साथ संस्कार-निर्माण की ओर है। लगभग तीन वर्ष से मंदिर के संस्कार का काम चल रहा था जो कि लगभग समापन की ओर ही है। यह मेला विक्रम संवत के अनुसार प्रतिवर्ष पौष माह के अन्तिम दिन लगता है। जिसे हम मकर संक्रांति का दिन कहते हैं।

बर्फ से ढंके हिमालय से आरम्भ होकर गंगा नदी धरती पर नीचे उतरती है और कलकल करती मां गंगा हरिद्वार से मैदानी स्थानों पर पहुँचती है। जो कि क्रमशः आगे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश के बनारस, प्रयाग से प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। यहीं पवित्र पावनी गंगा सागर से मिल जाती है। इस जगह को गंगासागर यानी 'सागर द्वीप' कहा जाता है।

यह क्षेत्र दक्षिण चौबीस परगना जिले में है और यहां जिला प्रशासन के द्वारा गंगासागर मेले का आयोजन किया जाता है। प्रतिवर्ष इस मेले में लगभग दस लाख श्रद्धालु पुण्यस्नान के लिये आते हैं। वैसे जिले के डीएम पी.बी. सलीम और कपिलमुनि मंदिर के महंत ज्ञानदास के उत्तराधिकारी ने हमें बताया कि इस वर्ष मकर संक्रांति पर कम से कम 20 लाख श्रद्धालु पुण्यस्नान कर सकते हैं।

यह स्थान हिन्दुओं के एक विशेष पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थ यात्राओं के समान है। शायद इसलिये ही कहा जाता है कि "हर तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार।" लेकिन अब सागर तीर्थयात्रा काफी सुगम हो गई जिससे कहा जा सकता है- गंगासागर तीर्थ यात्रा अब बार-बार। मान्यता है कि गंगासागर का पुण्य स्नान अगर विशेष रूप से मकर संक्रांति के दिन किया जाए तो उसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है और पुण्यार्थी को इस स्नान का विशेष पुण्य मिलता है। कारण मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिसका वैज्ञानिक आधर भी है।

गंगासागर में देश विदेश से तीर्थयात्रियों के साथ ही साधु-संन्यासी भी आते हैं और संगम में स्नान कर ये लोग सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। कपिल मुनि के साथ ही विशेष रूप से यहां सूर्य देव की पूजा की जाती है। तिल और चावल तथा तेल का इस त्यौहार पर विशेष महत्व है जिसका दान किया जाता है। यहां साधु समाज की एक अलग दुनिया ही बस जाती है और नगा से लेकर बाल व महिला संन्यसियों के संसार व माहौल को देख कुंभ मेले का भान होता है।  

गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु जहां समुन्द्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं वहीं गउदान भी करते हैं। कहते हैं कि भवसागर को पार करने के लिये गउ की पूंछ का ही सहारा आत्मा को लेना पड़ता है तभी मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि यहां पंडे भाड़े की गाय लेकर उसे श्रद्धालु को बेचते हैं और फिर उसी गउ को वापस दान में लेते हैं। इसके उपरांत ही बाबा कपिल मुनि के दर्शन व पूजा- अर्चना की जाती है। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है।

इसे जनश्रुति कहें या फिर मान्यता, कहते हैं कि जो युवतियाँ यहाँ पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को इच्छित वधु प्राप्त होती है। अनुष्ठान आदि के पश्चात् सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथी की मूर्तियाँ स्थापित हैं।

तमाम ग्रंथों सह पुराणों में मां गंगा के धरती पर अवतरण की जानकारी मिलती है। भगवान श्री राम के कुल के राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ कर घोड़ा छोड़ा। अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा का जिम्मा उन्होंने अपने 60 हज़ार पुत्रों को दिया। देवराज इंद्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। घोड़े को खोजते हुए जब राजकुमार वहाँ पर पहुँचे तो कपिल मुनि को भला-बुरा कहने लगे और घोड़ा चोर समझा। मुनि को राजपुत्रों के इस क्रिया कलाप पर क्रोध आ गया और सभी 60 हज़ार सगर पुत्र मुनि की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गये। ऐसे में सगर के पुत्र अंशुमान ने मुनि से क्षमा-याचना की तथा राजकुमारों की मुक्ति का उपाय पूछा। मुनि ने कहा- स्वर्ग से मां गंगा को धरती पर लाना होगा और गंगा की जलधारा के स्पर्श से भष्मिभूत 60 हज़ार सगर पुत्रों का उद्धार होगा। राजपुत्र अंशुमान को तप में सफलता नहीं मिली। फिर उन्हीं के कुल के भगीरथ ने तप करके स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर उतारा। भगीरथ जैसे-जैसे जिस रास्ते से होकर गुजरे मां गंगा की अविरल धारा भी गुजरी। चूंकि राजपुत्रों को ऋषि के श्राप से मुक्त करना था अतएव भगीरथ के साथ गंगा सागरद्वीप में आईं। कपिल आश्रम क्षेत्र में आयीं गंगा का स्पर्श जैसे ही सगर के साठ हजार मृत पुत्रों की राख से हुआ सभी राजकुमार मोक्ष को प्राप्त हुए। कहते हैं कि राजपुत्रों को मकर संक्रांति के दिन ही मुक्ति मिली थी।

जगदीश यादव

(लेखक अभय बंग पत्रिका के सम्पादक व पं. बंगाल भाजपा ओबीसी मोर्चा के मीडिया प्रभारी हैं)

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