Gyan Ganga: भगवान शंकर की कौन-सी बात सुनकर नंदी बाबा के आंखों में अश्रु आ गये थे

Nandi Baba
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सुखी भारती । Apr 10 2025 1:22PM

भगवान शंकर अपने स्नेही शिष्य के मनोभावों को पढ़कर उन्हें अपने समीप बुलाते हैं। वे नंदी के सीस पर हाथ फेरते हुए कहते हैं-हे प्रिय नंदी! तुम नहीं जानते कि तुम कितने महान हो। तुम्हारा मेरे प्रति समर्पण व प्रेम ही वह आधार है, कि मैं भी तुम्हारे प्रति पूर्ण समर्पित हूं।

भगवान शंकर के पावन श्रृंगार की गाथा किसी विरले भाग्यशाली को ही प्राप्त होती है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, कि भोलेनाथ का श्रृंगार अब तक पूर्ण हुआ माना जा रहा था। बस एक सुंदर घोड़ी की विवस्था की जानी बाकी थी। क्योंकि संसार में सभी दूल्हे जब अपनी बारात लेकर निकलते हैं, तो घोड़ी पर ही सवार होकर निकलते हैं। किंतु दूर-दूर तक भी किसी ने घोड़ी की विवस्था नहीं की थी। यह देख एक शिवगण ने भोलेनाथ से प्रार्थना की, कि क्या वे पैदल ही हिमाचल की ओर प्रस्थान करने की इच्छा रखते हैं? क्योंकि घोड़ी तो हम ले ही नहीं पाये। आप बताईये क्या आदेश है?

तब भगवान शंकर बोले-अरे वाह! यह क्या बात कर रहे हो प्रिय गण? जब हम विवाह करने ही बैठे हैं, तो विवाह तो विवाह की ही भाँति करेंगे न? हम भला पैदल बहु बिहाने क्यों चलेंगे?

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यह सुन शिवगण ने घोड़ी उपलब्ध न होने की असमर्थता जताई। तब भगवान शंकर मुस्करा कर बोले-हे प्रिय गण! हमारी सवारी तो कब से हमारे साथ है। वह भला आपकी दृष्टि से कहाँ औझल हो गई थी? वह देखो हमारा परम प्रिय नंदी बैल। हमने आज तक कोई अन्य सवारी की है भला? जिस नंदी ने आज तक हमें अपनी पीठ पर सवार किया, क्या आज विवाह के शुभ अवसर पर हम उन्हें त्याग देंगे? हमारी तो प्रतिष्ठा ही हमारे नंदी से है।

यह सुन कर नंदी की आँखों में अश्रु आ गये। उन्हें लगा, कि भगवान शंकर से बड़ा उपकारकर्ता इस संपूर्ण सृष्टि में नहीं है। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ जी हैं। उनकी गति का संसार में कोई सानी नहीं है। अगर वे भगवान विष्णु के वाहन बने, तो उनमें गुण हैं, जिस कारण वे इस सम्मान के अधिकारी भी हैं। किंतु मुझ में क्या गुण है? मैं न तो तीव्र गति से दौड़ सकता हुँ, और न ही गरुड़ जी की भाँति उड़ सकता हुँ। मेरी देह भी भारी है। एक बार जहाँ बैठ गया, फिर वहाँ से उठने का मेरा मन ही नहीं होता। मैं भले ही अधिकतर शाँत रहता हुँ, किंतु जब भी मैं क्रोधित होता हुँ, तो प्रचंड विध्वँस करता हुँ। किंतु तब भी भगवान शंकर मुझ पर अपार स्नेह पता नहीं क्यों रखते हैं?

भगवान शंकर अपने स्नेही शिष्य के मनोभावों को पढ़कर उन्हें अपने समीप बुलाते हैं। वे नंदी के सीस पर हाथ फेरते हुए कहते हैं-हे प्रिय नंदी! तुम नहीं जानते कि तुम कितने महान हो। तुम्हारा मेरे प्रति समर्पण व प्रेम ही वह आधार है, कि मैं भी तुम्हारे प्रति पूर्ण समर्पित हूं। तुम्हारा त्याग मेरे लिए प्राण त्यागने जैसा है। तुम्हारे चारों चरण धर्म के चार चरण हैं। जो कहा जाता है, कि धरती बैल के सींगों पर टिकी है। तो इसका यही अर्थ तो है, कि आपके चरण सत्य, तप, दया और पवित्रता ही वे आधार हैं, जिनके सिर पर यह धरा का अस्तित्व बचा हुआ है। मैं तुम्हें अपनी सवारी बनाकर संसार को बताना चाहता हुँ, कि जब भी आप अपने जीवन ने सबसे महान संबंध का आरम्भ करने जायें, तो बैल पर सवार होकर, अर्थात धर्म के चारों गुणों पर सवार होकर ही जायें। फिर निश्चित ही आपको आदि शक्ति का संग होगा।

आप साक्षात धर्म हो नंदी देवता। हालाँकि संपूर्ण जगत के लोग मेरे मंदिर में मुझे माथा टेकने आयेंगे। किंतु मैं वरदान देता हुँ, कि मेरे द्वार पर तुम सदा मेरी ओर मुख करके बैठे रहोगे। जो भी कोई तुम्हारे कानों में अपनी बात कहेगा, वह सीधे मैं सुनुँगा। तात्विक दृष्टि से कहुँ, तो जो कोई भी धर्म के माध्यम से मुझ तक बात पहुँचाना चाहेगा, मैं वह बात तत्काल प्रभाव से सुनुँगा। यही मेरा प्रण है।

यह सुनकर नंदी बाबा के नेत्रें में अश्रु आ गये। भगवान शंकर ने भी उन्हें अपनी बाहों में भर लिया, और भोलेनाथ नंदी पर सवार होकर ही बारात पर निकले।

क्रमशः 

- सुखी भारती

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