परशुराम जयंती का महत्व और भगवान परशुराम की शौर्य गाथा

Parashurama Jayanti Date and Time for Pujan
शुभा दुबे । Apr 16 2018 5:33PM

ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु भगवान परशुराम की जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु भगवान परशुराम की जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता। खासकर ब्राह्मणों के लिए इस दिन का कितना महत्व है इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि कुछ राज्यों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश भी होता है।

कौन हैं भगवान परशुराम

भगवान परशुराम की जयंती देशभर में धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान परशुराम ऋषि ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम रेणुका था। हविष्य के प्रभाव से ब्राह्म्ण पुत्र होते हुए भी ये क्षात्रकर्मा हो गये थे। ये भगवान शंकर के परम भक्त हैं। भगवान शंकर जी ने ही परशुराम जी को एक अमोघ अस्त्र− परशु प्रदान किया था। इनका वास्तविक नाम राम था, किंतु हाथ में परशु धारण करने से ये परशुराम नाम से विख्यात हुए। ये अपने पिता के अनन्य भक्त थे, पिता की आज्ञा से इन्होंने अपनी माता का सिर काट डाला था, लेकिन पुनः पिता के आशीर्वाद से माता की स्थिति यथावत हो गई।

क्यों गये थे परशुरामजी तीर्थ यात्रा पर?

इनके पिता श्रीजमदग्नि जी के आश्रम में एक कामधेनु गौ थी, जिसकी अलौकिक ऐश्वर्य शक्ति को देखकर कार्तवीर्यार्जुन उसे प्राप्त करने के लिए दुराग्रह करने लगा था। अंत में उसने गौ को हासिल करने के लिए बल का प्रयोग किया और उसे माहिष्मती ले आया। किंतु जब परशुराम जी को यह बात विदित हुई तो उन्होंने कार्तवीर्यार्जुन तथा उसकी सारी सेना का विनाश कर डाला। जिस पर पिता श्रीजमदग्नि ने परशुराम जी के इस चक्रवर्ती सम्राट के वध को ब्रह्म हत्या के समान बताते हुए उन्हें तीर्थ सेवन की आज्ञा दी। वे तीर्थ यात्रा पर चले गये, वापस आने पर माता−पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया।

संपूर्ण पृथ्वी दान कर दी

दूसरी ओर सहस्त्रार्जुन के वध से उसके पुत्रों के मन में प्रतिशोध की आग जल रही थी। एक दिन अवसर पाकर उन्होंने छद्म वेष में आश्रम आकर जमदग्नि का सिर काट डाला और उसे लेकर भाग निकले। जब परशुराम जी को यह समाचार ज्ञात हुआ तो वे अत्यन्त क्रोधावेश में आग बबूला हो उठे और पृथ्वी को क्षत्रिय हीन कर देने की प्रतिज्ञा कर ली तथा 21 बार घूम−घूमकर पृथ्वी को निःक्षत्रिय कर दिया। फिर पिता के सिर को धड़ से जोड़कर कुरुक्षेत्र में अन्त्येष्टि संस्कार किया। पितृगणों ने इन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हीं की आज्ञा से इन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी प्रजापति कश्यपजी को दान में दे दी और महेन्द्राचल पर तपस्या करने चले गये।

गणेशजी का एक दंत नष्ट किया

सीता स्वयंवर में श्रीराम द्वारा शिव−धनुष भंग किये जाने पर वह महेन्द्राचल से शीघ्रतापूर्वक जनकपुर पहुंचे, किंतु इनका तेज श्रीराम में प्रविष्ट हो गया और ये अपना वैष्णव धनु उन्हें देकर पुनः तपस्या के लिए महेन्द्राचल वापस लौट गये। मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम के क्रोध का सामना गणेश जी को भी करना पड़ा था। दरअसल उन्होंने परशुराम जी को शिव दर्शन से रोक दिया था। क्रोधित परशुराम जी ने उन पर परशु से प्रहार किया तो उनका एक दांत नष्ट हो गया। इसी के बाद से गणेश जी एकदंत कहलाये।

भक्तों का करते हैं कल्याण

भगवान परशुराम चिरजीवी हैं। ये अपने साधकों−उपासकों तथा अधिकारी महापुरुषों को दर्शन देते हैं। इनकी साधना−उपासना से भक्तों का कल्याण होता है। पौराणिक मान्यता है कि वे आज भी मन्दराचल पर्वत पर तपस्यारत हैं। ऋषि संतान परशुराम ने अपनी प्रभुता व श्रेष्ठवीरता की आर्य संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी। शैव दर्शन में उनका अद्भुत उल्लेख है जो सभी शैव सम्प्रदाय के साधकों में स्तुत्य व परम स्मरणीय है। देश में अनेक स्थानों पर भगवान जमदग्नि जी के तपस्या स्थल एवं आश्रम हैं, माता रेणुका जी के अनेक क्षत्र हैं, प्रायः रेणुका माता के मंदिर में अथवा स्वतंत्र रूप से परशुराम जी के अनेक मंदिर भारत भर में हैं, जहां उनकी शांत, मनोरम तथा उग्र रूप मूर्ति के दर्शन होते हैं।

-शुभा दुबे

All the updates here:

अन्य न्यूज़