Ratneshwar Mahadev: टावर ऑफ पीसा से भी ज्यादा झुका है बनारस का रत्नेश्वर महादेव मंदिर, जानिए क्या है वजह

Ratneshwar Mahadev
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भारत के सबसे पुराने शहर वाराणसी में वैसे तो कई मंदिर हैं। जिनका अपना धार्मिक महत्व है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वाराणसी में एक तिरछा मंदिर है। जिसे रत्नेश्वर मंदिर के नाम से जाता है। इस मंदिर के झुकने के पीछे की कहानी काफी रोचक है।

भारत का सबसे पुराना शहर वाराणसी अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए बेहद फेमस है। बता दें कि वाराणसी में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। वैसे तो बनारस या वाराणसी में कई फेमस और पुराने मंदिर हैं। जिनका अपना महत्व व इतिहास है। लेकिन यहां के रत्नेश्वर मंदिर जैसा और कोई मंदिर मौजूद नहीं है। बता दें कि इस मंदिर की खासियत है कि यह कई सालों से तिरछा खड़ा हुआ है। इस मंदिर को देखकर इटली के पीसा टॉवर की याद आना स्वाभाविक है।

हालांकि इस मंदिर के बारे में काफी कम लोग जानते हैं। लेकिन यह ऐसा मंदिर है, जो पीसा से भी ज्यादा झुका हुआ और लंबा है। बता दें कि पीसा टॉवर करीब 4 डिग्री तक झुका हुआ है। लेकिन वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के पास स्थित रत्नेश्वर मंदिर करीब 9 डिग्री झुका है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह मंदिर 74 मीटर ऊंचा है। जो पीसा टॉवर से 20 मीटर अधिक है। रत्नेश्वर मंदिर सदियों पुराना ऐतिहासिक मंदिर है।

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वाराणसी के मणिकर्णिका और सिंधिया घाट के बीच स्थित रत्नेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। बता दें कि इसको वाराणसी का झुका मंदिर, मातृ-रिन महादेव और काशी करवात के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर साल के अधिकतर समय में नदी में डूबा रहता है। कई बार पानी का स्तर इस मंदिर के शिखर तक भी पहुंच जाता है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी के मध्य में करवाया गया था।

जानिए क्यों झुका है यह मंदिर

यह मंदिर अन्य मंदिरों से अलग क्यों है, इसके पीछे भी एक कहानी है। बताया जाता है कि यह मंदिर राजा मानसिंह के एक सेवक ने अपनी माता रत्नाबाई के लिए बनवाया था। इस मंदिर को बनवाने के बाद उस सेवन ने बड़े गर्व से घोषणा की। सेवक ने कहा कि उसने अपनी मां का कर्ज उतार दिया है। कहा जाता है कि व्यक्ति के मुंह से जैसे ही यह शब्द निकले, वैसे ही मंदिर पीछे की ओर झुकने लगा। जिसका अर्थ यह निकाला गया कि मां के कर्ज को कभी चुकाया नहीं जा सकता है। वर्ष के ज्यादातर समय इस मंदिर का गर्भगृह गंगा के जल के नीचे रहता है।

मंदिर की वास्तुकला 

वहीं अगर इस मंदिर के वास्तुकला के बारे में बात करें तो शास्त्रीय शैली में इस मंदिर का निर्माण किया गया है। वहीं नगर शिखर और फामसान मंडप के साथ इसका निर्माण हुआ है। बता दें कि दुर्लभ संयोजन के साथ मंदिर को पवित्र नदी गंगा के निचले स्तर पर बनाया गया है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि गंगा नदी का जल स्तर मंदिर के शिखर तक पहुंच जाता है। जिससे यह साफ पता चलता है कि जिसने भी इस मंदिर का निर्माण किया है, उसे बता था कि इस मंदिर का अधिकतर हिस्सा पानी के अंदर रहेगा। लेकिन आज भी यह मंदिर अपने स्थान पर मजबूती के साथ खड़ा है। 

क्या श्रापित है मंदिर?

इस मंदिर में मानसून के दौरान कोई भी अनुष्ठान नहीं किया जाता। वहीं बारिश के मौसम में यहां पर किसी तरह की कोई पूजा-अर्चना भी नहीं की जाती है। इसके अलावा मंदिर की घंटियों के भी कोई बजते हुए नहीं सुनता है। कुछ लोगों का मानना है कि यह एक शापित मंदिर है। इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने व अनुष्ठान आदि करने से बुरा होने की संभावना है।

पहले सीधा था मंदिर

अगर आप इस मंदिर की पुरानी तस्वीरें देखेंगे तो पाएंगे कि पहले यह मंदिर अन्य मंदिरों की तरह सीधा था। लेकिन वर्तमान में यह तिरछा खड़ा है। यह भी बताया जाता है कि एक बार घाट के ढह जाने से यह मंदिर झुक गया था। तब से लेकर आज तक यह मंदिर तिरछा है। वहीं बड़ी संख्या में कई लोगों को इस मंदिर के बारे में नहीं पता है।

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