काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-44

श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित सुंदरकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
साधु-संत को हो जहां, पर भारी अपमान
निश्चित वहां विनाश है, शंका जरा न जान।
शंका जरा न जान, पीठ जैसे ही फेरी
सभा हुई श्रीहीन, तनिक लागी न देरी।
कह ‘प्रशांत’ जैसे ही पहुंचे राम-शिविर में
क्यों हैं आये, चिन्ता व्यापी सबके मन में।।61।।
-
पहुंच गये सुग्रीव फिर, रघुनंदन के पास
मिलने आया आपसे, क्या है ऐसा खास।
क्या है ऐसा खास, अबूझी इनकी माया
लगता है कुछ भेद यहां से लेने आया।
कह ‘प्रशांत’ हम इसे बांध कारा में डालें
सबसे पहले इसके मन की बात निकालें।।62।।
-
लेकिन बोले रामजी, शरणागत की लाज
रखना मेरी टेक है, उसे निबाहूं आज।
उसे निबाहूं आज, शरण में जो भी आया
उसकी रक्षा का मैंने है वचन निभाया।
कह ‘प्रशांत’ चिन्ता छोड़ो, उसको ले आओ
और प्रेम से उसको मेरे पास बिठाओ।।63।।
-
भक्त विभीषण को मिला, जो अपार सम्मान
दोनों आखें स्थिर हुईं, लगा एकटक ध्यान।
लगा एकटक ध्यान, होश में जब वे आये
हूं रावण का भ्रात, यही परिचय बतलाए।
कह ‘प्रशांत’ हे नाथ शरण में मुझको लीजे
हूं स्वभाव से पापी, दान क्षमा का दीजे।।64।।
-
राघव ने अति प्रेम से, पकड़ा उनका हाथ
गले लगा बैठा लिया, बिल्कुल अपने साथ।
बिल्कुल अपने साथ, कष्ट कैसे हो सहते
दुष्ट जनों के बीच किस तरह हो तुम रहते।
कह ‘प्रशांत’ हे राघव, तुम्हें रात-दिन भजता
इसी सहारे से हूं मैं लंका में रहता।।65।।
-
लेकिन अब मैं आ गया, हूं रावण को छोड़
सच्चा नाता आपसे, लिया सदा को जोड़।
लिया सदा को जोड़, राम का दिल भर आया
हर्षित हो करके सागर का जल मंगवाया।
कह ‘प्रशांत’ फिर राजतिलक उनका कर दीन्हा
जयतु-जयतु लंकेश, घोष सबने फिर कीन्हा।।66।।
-
आगे क्या रणनीति हो, करने लगे विचार
गहरा सागर बीच में, कैसे होगा पार।
कैसे होगा पार, बहुत आसान सुखाना
एक बाण बस राघव होगा तुम्हें चलाना।
कह ‘प्रशांत’ लेकिन पहले हम करें प्रार्थना
कहा विभीषण ने, सागर से करें याचना।।67।।
-
बात याचना की सुनी, गरजे लखन कुमार
यहां प्रार्थना का नहीं, कोई भी आधार।
कोई भी आधार, सुखा दो सागर सारा
बात याचना की करते जो हैं नाकारा।
कह ‘प्रशांत’ रघुनंदन ने उनको समझाया
लक्ष्मणजी का गुस्सा कुछ काबू में आया।।68।।
-
सागर तट पर जा किया, पहले उन्हें प्रणाम
कुशा बिछा बैठे वहां, लखन विभीषण-राम।
लखन विभीषण-राम, तीन दिन समय बिताया
लेकिन सागर ने चेहरा तक नहीं दिखाया।
कह ‘प्रशांत’ राघव को आया क्रोध अपारा
अग्निबाण से इसे सुखाता हूं मैं सारा।।69।।
-
मूरख से करना विनय, और दुष्ट से प्रीति
बतलाना कंजूस को, दान-पुण्य की नीति।
दान-पुण्य की नीति, ज्ञान की बात बताएं
ममता में जो फंसा, कथामृत उसे पिलाएं।
कह ‘प्रशांत’ कामी को भगवत् भजन सुनाना
ऐसा है, जैसे ऊसर में बीज उगाना।।70।।
- विजय कुमार
अन्य न्यूज़













