17 साल का वनवास समाप्त कर बांग्लादेश में लौटा प्रिंस, अब यूनुस की होगी छुट्टी?

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अभिनय आकाश । Dec 26 2025 3:21PM

1971 से ही बांग्लादेश की नियति जीतने वाले के नक्शे कदम पर चलती रही है। जो जीतता है वह सब कुछ ले जाता है। जो हारता है उसे जेल की कोठरी देखनी पड़ सकती है।

बांग्लादेश की सियासत में एक नए किरदार की एंट्री हो गई है। 17 साल के वनवास के बाद एक शहजादा लौट आया है। बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री का बेटा तारिक रहमान। कौन है तारिक रहमान? उनके आने के बाद अब क्या बदलेगा? क्या वो भी बांग्लादेश में मौजूद भारत विरोधी ताकतों से हाथ मिला लेंगे या उनके मुकाबले खड़े होंगे। अपने स्पीच में उन्होंने कहा कि ये देश मुसलमानों का है, हिंदुओं का है, बौद्धों और ईसाइयों का भी है। लेकिन क्या वो सबको साथ लेकर चल पाएंगे। इन सब सवालों के जवाब तो अभी नहीं पता इतना जरूर पता है कि उनकी वापसी की खबर आने भर से ही अमेरिका और जर्मनी ने अपने दूतावासों को बंद करने का ऐलान कर दिया। 

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जीतने वाले के नक्शेकदम पर चलती बांग्लादेश की नीयति

1971 से ही बांग्लादेश की नियति जीतने वाले के नक्शे कदम पर चलती रही है। जो जीतता है वह सब कुछ ले जाता है। जो हारता है उसे जेल की कोठरी देखनी पड़ सकती है। देश से भागना पड़ सकता है या फिर उसकी कब्र भी खोद सकती है। कहानी की शुरुआत 1975 से होती है। इसी बरस शेख हसीना के पिता मुजब उर रहमान की हत्या कर दी गई। उन्हें बंग बंधु के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद वह देश के पहले राष्ट्रपति बने थे। लेकिन उनके राज में हालात बिगड़ गए थे। युद्ध की वजह से खजाना खाली था। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार फैल रहा था। 1972 में मुजीब ने विद्रोह रोकने के लिए रखी वाहिनी नाम की एक फोर्स बनाई। लेकिन उस फोर्स पर ही हत्या और रेप के इल्जाम लगे। जनता का मोह भंग उनसे होने लगा। फिर तारीख आई 14 अगस्त 1975 बांग्लादेश की फौज के कुछ बागी अफसरों ने मुजीब और उनके परिवार के 18 लोगों की हत्या कर दी। किस्मत से उनकी दो बेटियां शेख हसीना और शेख रिहाना उस वक्त जर्मनी में थी। इसके बाद सत्ता जियाउ रहमान के हाथ में आई। अगले दशक में देश ने एक और सैन्य शासक देखा हुसैन मोहम्मद इरशाद के हाथ में सत्ता गई। इन दोनों सैन्य शासकों ने एक ही एजेंडा चलाया। आवामी लीग का नामोनिशान मिटा दो। उन्होंने उन ताकतों को वापस जिंदा किया जो 1971 में आजादी के खिलाफ थी ताकि आवामी लीग की लोकप्रियता को टक्कर दी जा सके। 

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जब दो दुश्मन हुए एक, फिर शुरू हुई बैटल ऑफ द बेगम्स

1990 के दशक के आखिर आखिर तक इरशाद के खिलाफ माहौल बनने लगा था। तब एक दिलचस्प वाकया हुआ। दो जानी दुश्मन एक साथ आ गई। शेख हसीना और खालिदा जिया दोनों ने मिलकर के इरशाद को गद्दी से उतार फेंका। लेकिन यह दोस्ती बस मतलब भर की थी। दोनों जब ताकतवर हुई तो 1991 से एक नया दौर शुरू हुआ जिसे बेगमों की जंग कहा जाता है। बैटल ऑफ द बेगम्स। एक ही ढर्रा था जो गद्दी पर बैठेगा वो सामने वाले का धंधा बंद करवा देगा। 1991 में खालिदा जीती। 1996 में हसीना जीती। 2001 में फिर खालिदा जिया जीत गई।  2006 आते-आते सड़कों पर खून खराबा शुरू हो गया था। जब नेताओं से बात नहीं संभली तो फौज ने कहा कि अब हम संभालेंगे। 2007 में इमरजेंसी लगा दी गई और हसीना खालिदा दोनों को जेल में डाल दिया गया। फिर 2008 में चुनाव हुए। शेख हसीना ने ऐसी वापसी की कि अगले 15 साल तक गद्दी पर बनी रहीं। इस दौरान जमात के नेताओं को फांसी हुई। 2018 में खालिदा जिया जेल गई। 

तारिक की 17 साल बाद देश में वापसी

तारिक रहमान (58) बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। वह दो बार देश की पीएम रहीं खालिदा जिया के बेटे हैं। पार्टी और समर्थकों में उन्हें खालिदा जिया की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी माना जाता है। तारिक को बांग्लादेश की राजनीति का 'क्राउन प्रिंस' कहा जा रहा है। 2008 में तारिक रहमान इलाज के लिए लंदन गए थे। उस समय उनके खिलाफ कई आपराधिक और भ्रष्टाचार से जुड़े मामले चल रहे थे। राजनीतिक दबाव भी बढ़ा हुआ था। इसी वजह से वह लंबे समय तक ब्रिटेन में रहे। एक साल में उच्च अदालतो ने तारिक रहमान को बढ़े मामलों में बरी कर दिया, जिनमें 2004 का ग्रेनेड हमला और जिया ऑफेनेज ट्रस्ट मामला शामिल है। इसके बाद उनकी राजनीतिक वापसी के कानूनी रास्ते साफ हुए।

तारिक की वापसी क्यों अहम मानी जा रही है?

 तारिक ऐसे समय लौटे हैं, जब बीएनुी को पहली बार लगभग दो दशको में बिना अवामी लीग के चुनाव लड़ने का मौका मिल सकता है। उनकी वापसी से पार्टी को जमीनी नेतृत्व मिला है और विदेश से संचालित राजनीति का दौर खत्म हुआ है। इससे बीएनपी की चुनावी रणनीति और संगठन दोनों मजबूत हुए हैं। 2024 में हुए हिंसक जन आंदोलन के बाद शेख हसीना देश से बाहर चली गई। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी। हालांकि, कानून-व्यवस्था पर सवाल भी उठ रहे हैं। तारिक रहमान पहले ही कह चुके हैं कि वह आगामी आम चुनाव लड़ेंगे। बीएनपी नेताओं के मुताबिक, वह मतदाता के रूप में रजिस्ट्रेशन की औपचारिकताएं भी पूरी करेंगे, जिससे वह सीधे चुनावी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकें। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बीएनपी अगर बहुमत हासिल करती है तो तारिक रहमान को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे किया जा सकता है। उनकी मं खालिदा जिया गंभीर रूप से बीमार हैं, इसलिए पार्टी के पास तारिक रहमान सबसे मजबूत चेहरा माने जा रहे हैं।

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सामने क्या चुनौतियां हैं?

बीएनपी को सिर्फ सत्ता विरोधी लहर पर निर्भर नहीं रहना होगा। छात्र आंदोलन से निकली नई पार्टियां, बदले हुए राजनीतिक समीकरण और मानवाधिकार व अल्पसंख्यक सुरक्षा जैसे मुद्दे बड़ी चुनौतियां हैं। इसके अलावा, अंतरिम सरकार के साथ पार्टी के रिश्ते भी पूरी तरह सहज नहीं माने जाते।

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