काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-45

Lord Rama
विजय कुमार । Mar 9 2022 3:08PM

श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित लंकाकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।

सिन्धु वचन सुनकर प्रभु, मंत्री लिये पुकार

अब विलम्ब किस बात का, करो सेतु तैयार।

करो सेतु तैयार, रीछ-वानर सब आओ

बड़ी शिलाएं पर्वत-पेड़ उठाकर लाओ।

कह ‘प्रशांत’ नल-नील हाथ से उन्हें छुएंगे

देखो फिर वे कैसे सागर पर तैरेंगे।।1।।

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जल्दी ही होने लगा, रामसेतु तैयार

पूरा सेना में भरा, था उत्साह अपार।

था उत्साह अपार, राम को मन हर्षाया

यहां करूं शिवजी स्थापित, संकल्प बनाया

कह ‘प्रशांत’ सुग्रीवराज ने मुनी बुलाये

विधि-विधान से शिवपिंडी स्थापित करवाये।।2।।

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कहा राम ने सब सुनें, है रामेश्वर धाम

पूजन इसका जो करे, पाए चिर विश्राम।

पाए चिर विश्राम, चढ़ाए जो जल-गंगा

मुक्ति मिलेगी, होगा एकरूप मम संगा।

कह ‘प्रशांत’ जो रामसेतु दर्शन पाएगा

बिना परिश्रम भवसागर से तर जाएगा।।3।।

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सेतुबंध जब हो गया, बन करके तैयार

सेना सारी चल पड़ी, करने सागर पार।

करने सागर पार, राम ने चढ़कर देखा

सागर का विस्तार, दृश्य था बहुत अनोखा।

कह ‘प्रशांत’ जल-जीव निकलकर बाहर आये

कैसे रघुनंदन के हम भी दर्शन पाएं।।4।।

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राम सहित सेना सकल, पहुंची सागर पार

डेरा सबका पड़ गया, था लंका के द्वार।

था लंका के द्वार, वानरों ने फल खाये

तोड़फोड़ की, वृक्ष हिलाये और गिराये।

कह ‘प्रशांत’ जो मिला राक्षस उसको मारा

फैल गया लंका में घर-घर हाहाकारा।।5।।

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सागर पर पुल बन गया, सुनते ही यह बात

रावण के दिल को लगा, बहुत बड़ा आघात।

बहुत बड़ा आघात, गया अंदर महलों में

बोली मन्दोदरी बड़े कारुण्य स्वरों में।

कह ‘प्रशांत’ हे नाथ, बात मेरी सुन लीजे

अभी समय है, छोड़ जनकनंदिनी दीजे।।6।।

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जुगनू जैसे आप हैं, और सूर्य से राम

शरणागत हो जाइये, राम कृपा के धाम।

राम कृपा के धाम, क्षमा निश्चित कर देंगे

वरना रण में प्राण आपके नहीं बचेंगे।

कह ‘प्रशांत’ हे स्वामी, बिगड़ी बात संवारो

अचल सुहाग रहे मेरा, इस तरह विचारो।।7।।

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रावण ने हंसकर सभी, बातें दीनी टाल

जीत सके मुझको नहीं, ऐसा कोई लाल।

ऐसा कोई लाल, न हो बिल्कुल भयभीता

काल और दिक्पाल, सभी को मैंने जीता।

कह ‘प्रशांत’ यह कहकर रावण गया सभा में

लगा पूछने, क्या हो नीति बताओ रण में।।8।।

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मंत्री फिर कहने लगे, डरने की क्या बात

शत्रु हमारा भोज्य है, खाएंगे दिन-रात।

खाएंगे दिन-रात, पुत्र रावण का आया

नाम प्रहस्त, बिना झिझके उसने समझाया।

कह ‘प्रशांत’ हे पिता, मूर्ख हैं मंत्री सारे

इनकी बात मानकर होंगे सब दुखियारे।।8।।

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जिसको कहते खाद्य हैं, उसने किया धमाल

तब ये सारे थे कहां, जरा पूछिए हाल।

जरा पूछिए हाल, सेतु किस तरह बनाया

मूढ़जनों को फिर भी तनिक समझ ना आया।

कह ‘प्रशांत’ है भला, सन्धि राम से कीजे

प्रेम सहित उनकी पत्नी वापस कर दीजे।।9।।

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रावण ने ठुकरा दिये, उसके नेक विचार

तो वह घर वापस गया, छोड़ भरा दरबार।

छोड़ भरा दरबार, हुई शाम की वेला

रावण के घर लगा नाच-गान का मेला।

कह ‘प्रशांत’ तज चिन्ता राग-रंग में डूबा

था हर दिन का काम, न इसमें तनिक अजूबा।।10।।

- विजय कुमार

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