51 शक्ति पीठों में शामिल माता 'तारा तारिणी' का मंदिर

Taratarini temple

तारा तारिणी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दो जुड़वा देवियों 'तारा और तारिणी' देवी को समर्पित है। दूसरी जो सबसे बड़ी खासियत यह है कि भारत में आदि शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से तारा तारिणी मंदिर भी एक पीठ माना जाता है, जिसे कल्याणी धाम के नाम से जाना जाता है।

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। हमारे देश में शायद ही ऐसा कोई छोटा-बड़ा शहर हो, जहां पर एकाधिक मंदिर ना हों।

मंदिर हमारी आस्था, हमारी प्राचीन परंपरा के केंद्र रहे हैं, और मंदिर इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि हर अवस्था में मनुष्य का आध्यात्मिक संबल बना रहे। साथ ही पर्यटन की दृष्टि से भी मंदिरों का हमारी संस्कृति में खास महत्व है। बेहद प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों को देखने के लिए लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, और वहां से अच्छी यादें, अच्छी सीख ले कर जीवन में थोड़ा बहुत ही सही सकारात्मक अवश्य होते हैं।

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ऐसे ही मंदिरों की कड़ी में आज हम बात करेंगे 'तारा तारिणी' देवी के मंदिर के बारे में।

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दो जुड़वा देवियों 'तारा और तारिणी' देवी को समर्पित है। दूसरी जो सबसे बड़ी खासियत यह है कि भारत में आदि शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से तारा तारिणी मंदिर भी एक पीठ माना जाता है, जिसे कल्याणी धाम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर उड़ीसा के ब्रह्मपुर में स्थित है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उस पहाड़ी का नाम ही 'तारा तारिणी' पहाड़ी ही है। बगल में 'रुशिकुल्या' नदी बहती है।

जैसा कि हम सबको पता ही है कि, जिन-जिन स्थानों पर देवी सती के अंग गिरे थे, उन स्थानों को शक्तिपीठ माना गया है। बात अगर तारा और तारिणी मंदिर की करें, तो इस स्थान पर देवी के स्तनों की पूजा होती है।

वैसे इस मंदिर को लेकर एक कथा स्थानीय स्तर पर प्रचलित है, जिसके अनुसार एक ब्राह्मण जिनका नाम 'वासु प्रहरजा' था, वह देवी के बड़े भक्त थे। कहा जाता है कि तारा तारिणी देवी इन्हीं ब्राह्मण के साथ रहा करती थीं, किंतु वह अचानक लापता हो गयीं। 

बाद में विद्वान ब्राम्हण ने उन्हें काफी ढूंढा, किंतु वह मिली नहीं। फिर कुछ सालों के बाद में ब्राह्मण के स्वप्न में 'तारा तारिणी' दोनों देवियाँ आईं, और उन्होंने बोला कि वह आदि शक्ति की अवतार हैं, और तारा तारिणी पहाड़ी पर उनका निवास है। सपने में ही दोनों देवियों ने उस पहाड़ी पर मंदिर के निर्माण का आदेश दिया, जिसके बाद ब्राह्मण 'वासु प्रहरजा' ने तारा तारिणी पहाड़ी पर मंदिर का निर्माण कराया।

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बता दें कि इस प्राचीन मंदिर की बड़ी महिमा मानी जाती है, और 'तारा तारिणी' पहाड़ी को 'पूर्णागिरि' पहाड़ी भी कहा जाता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कुल 999 सीढ़ियां निर्मित की गई हैं। इतिहास की दृष्टि से देखा जाए, तो कलिंग साम्राज्य के शासकों की देवी के रूप में मां तारा तारिणी की पूजा होती थी। इस मंदिर में तारा और तारिणी देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं, जो सोने-चांदी के आभूषणों से सुशोभित हैं। उड़ीसा में मां तारा तारिणी देवी की महिमा व्यापक मानी जाती है, और सभी घरों में अधिष्ठात्री देवी के रूप में इनकी पूजा की जाती है।

कब और कैसे जाएँ इस मंदिर तक?

वैसे तो आप जब चाहें इस मंदिर में दर्शन के लिए आ सकते हैं, लेकिन चैत्र के महीने में तारा तारिणी मंदिर में हर मंगलवार को भव्य मेला लगता है, जिसमें स्थानीय लोग भारी संख्या में पहुँचते हैं। आपको उड़ीसा के ब्रह्मपुत्र पहुँचने के लिए रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग दोनों की सुविधा मिलेगी। इस जगह से मंदिर 25 किलोमीटर दूर है, जिसके लिए आपको तमाम साधन मिल जायेंगे।  

- विंध्यवासिनी सिंह

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