Varaha Jayanti 2025: धर्म और पृथ्वी संरक्षण का संदेश देता है वराह अवतार

पुराणों के अनुसार, हिरण्याक्ष नामक असुर ने पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाकर समुद्र में डुबो दिया था। तब सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया और देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर अपने दाँतों पर पृथ्वी को उठाया और असुर का वध कर पुनः पृथ्वी को उसके स्थान पर स्थापित किया।
वराह जयन्ती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने वराह (सूकर) रूप धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष नामक दैत्य से मुक्त कराया था।
पौराणिक कथा और महत्व
पुराणों के अनुसार, हिरण्याक्ष नामक असुर ने पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाकर समुद्र में डुबो दिया था। तब सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया और देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर अपने दाँतों (दंत) पर पृथ्वी को उठाया और असुर का वध कर पुनः पृथ्वी को उसके स्थान पर स्थापित किया। इस प्रकार, भगवान वराह ने धरती को विनाश से बचाया।
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धार्मिक अनुष्ठान और पूजन विधि
वराह जयन्ती के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
घर या मंदिर में भगवान विष्णु और वराह अवतार की प्रतिमा/चित्र स्थापित कर पूजा की जाती है।
पूजा में तुलसी पत्र, पीले पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
व्रत रखने वाले दिनभर उपवास करते हैं और रात्रि में कथा श्रवण व भजन-कीर्तन किया जाता है।
अगले दिन ब्राह्मण या जरूरतमंदों को दान देकर व्रत का समापन होता है।
वराह अवतार का दार्शनिक संदेश
वराह अवतार यह दर्शाता है कि जब-जब धरती या धर्म संकट में पड़ता है, भगवान स्वयं अवतार लेकर उसे बचाते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि धर्म, सत्य और न्याय की रक्षा के लिए भगवान सदैव उपस्थित रहते हैं।
वराह जयन्ती केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और पृथ्वी संरक्षण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा कर पृथ्वी माता की रक्षा का संकल्प लेते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि पृथ्वी हमारी माता है और उसकी रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है।
- शुभा दुबे
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