किसी पुस्तक को पर्दे पर हूबहू उतारना मुश्किल: प्रसून जोशी
संगीतकार और कवि प्रसून जोशी का मानना है कि किसी साहित्यिक कृति का रूपंतारण करते हुए एक लेखक के नजरिए को बड़े पर्दे पर हूबहू उतारना असंभव है।
पणजी। संगीतकार और कवि प्रसून जोशी का मानना है कि किसी साहित्यिक कृति का रूपंतारण करते हुए एक लेखक के नजरिए को बड़े पर्दे पर हूबहू उतारना असंभव है। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफएसी) के अध्यक्ष जोशी ने कहा कि जब कोई लेखक एक किताब लिखता है वह अपनी कल्पना को उसके जरिए सामने रखता है लेकिन उसी कल्पना को आधार बनाकर बनाई गई फिल्म में यह पूरी संभावना है कि वह लेखक की सोच से अलग हो सकती है।
भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) से इतर हुई एक परिचर्चा के दौरान जोशी ने कहा, “जब किसी लेखक की पुस्तक की कहानी को पर्दे पर उतारा जाता है, उसमें निश्चित ही कुछ न कुछ बदलाव हो सकते हैं। उस कल्पना में पटकथा लेखक, संवाद लेखक और फिर संगीत अलग-अलग भूमिका निभाते हैं।”
“भाग मिल्खा भाग” और “ रंग दे बसंती” जैसी फिल्मों के पटकथा लेखक जोशी ने कहा कि किसी भी प्रस्तुतीकरण में उसका “अभिप्राय” सबसे ज्यादा मायने रखता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने जब भी लेखक के तौर पर किसी के साथ काम किया तो उनकी कल्पना और सामने आए परिणामों में हमेशा अंतर रहा।
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