2018 में वेयरहाउस स्पेस लीजिंग में वार्षिक आधार पर 77 प्रतिशत की बढ़ोतरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लॉजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 13 से 14 फीसदी है, जो कि दूसरे विकसित देशों में जीडीपी के अनुपात में लगने वाली लॉजिस्टिक लागत (8 से 10 फीसदी) से कहीं ज्यादा है।
नई दिल्ली। स्वतंत्र ग्लोबल प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी नाइट फ्रैंक रीड (आरईईडी) एक्जिबिशंस इंडिया के सहयोग में देश के सबसे बड़े वेयरहाउसिंग एक्सपो '9वें भारत वेयरहाउसिंग शो 2019' में शिरकरत कर रही है। इस सहयोग के एक हिस्से के तौर पर नाइट फ्रैंक ने भारत में वेयरहाउसिंग बाजार के दायरे और वृद्धि पर दृष्टिकोण पेश करने के लिए अपनी फ्लैगशिप रिपोर्ट इंडिया वेयरहाउसिंग मार्केट 2019 का नवीनतम संस्करण लॉन्च किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, विनिर्माण क्षेत्र के लिए 2019 में कुल 68 मिलियन वर्ग मीटर (739 मिलियन वर्ग फिट) वेयरहाउसिंग स्पेस की जरूरत पड़ने का अनुमान लगाया गया है। जोकि अगले पांच वर्ष में पांच फीसदी की वार्षिक चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ते हुए 2024 तक 86 मिलियन वर्ग मीटर (922 मिलियन वर्गफीट) तक पहुंच सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लॉजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 13 से 14 फीसदी है, जो कि दूसरे विकसित देशों में जीडीपी के अनुपात में लगने वाली लॉजिस्टिक लागत (8 से 10 फीसदी) से कहीं ज्यादा है। इसकी प्राथमिक वजह विभिन्न शीर्षों वाली व्यवस्था का होना और भारत में 60 फीसदी सामान का संचालन रोडवेज के जरिये होना है।
प्रमुख आकर्षण -
• भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में स्टोरेज स्पेस की कुल जरूरत वर्तमान में वेयरहाउसिंग बाजार का 80 प्रतिशत है।
• भारत में शीर्ष वेयरहाउसिंग बाजारों में अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के बीच लीजिंग में वर्ष-दर-वर्ष 77 फीसदी की वृद्धि देखी गई।
• वेयरहाउसिंग उद्योग ने संस्थागत निवेशकों के साथ डेवलपर्स की शानदार भागीदारी दर्ज की, जिन्होंने 2014 से सामूहिक तौर पर 282 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति सौदे के औसत से 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया।
• वेयरहाउसिंग उद्योग में कुल निवेश का 49 फीसदी हिस्सा निजी इक्विटी फंड का रहा। इसके बाद सोवरेन और पेंशन फंड का 31 फीसदी और डेवलपर्स का 20 फीसदी हिस्सा रहा।
• वेयरहाउसिंग संपत्ति में होने वाला 83 फीसदी निवेश नए विकासों का रहा, जिसमें 10 फीसदी हिस्सा तैयार संपत्तियों और 7 फीसदी हिस्सा तैयार और निर्माणाधीन संपत्तियों को मिलाकर रहा।
• अकेले संस्थागत निवेशकों द्वारा किए गए निवेश से आने वाले कुछ वर्षों में नई वेयरहाउसिंग जगह के 15 मिलियन वर्ग मीटर (158 मिलियन वर्ग फीट) की पूर्ति होने का अनुमान है।
• वेयरहाउसिंग लीजिंग वॉल्यूम में वर्ष-दर-वर्ष 191 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ कोलकाता पहले पायदान पर रहा, इसके बाद बेंगलूरू (147%) और हैदराबाद(96%) का स्थान रहा।
• कोयंबटूर, गुवाहाटी, राजपुरा, लुधियाना, नागपुर, लखनऊ, विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर और सिलीगुड़ी जैसे शहर वेयरहाउसिंग स्पेस की बढ़ती मांग के संदर्भ में काफी लोकप्रियताहासिल कर रहे हैं।
• 29 राज्यों में से केवल सात राज्य ऐसे हैं, जहां लॉजिस्टिक उद्योग के लिए प्रतिबद्ध एक नीतिगत ढांचा मौजूद है। सात राज्यों में विद्यमान लॉजिस्टिक संबंधी नीतियों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि डेवलपर्स और ऑक्यूपायर्स के लिए फायदे के दृष्टिकोण से हरियाणा सर्वोच्च स्थान पर है।
शुद्ध बिक्री के अनुपात में वेयरहाउसिंग लागत का सेक्टर-व्यापी आवंटन:
शहर | 2017 | 2018 | वृद्धि |
कोलकाता | 0.1 (1.6) | 0.4 (4.7) | 191% |
बेंगलूरू | 0.2 (2.5) | 0.6 (6) | 147% |
हैदराबाद | 0.2 (2) | 0.4 (4) | 96% |
एनसीआर | 0.6 (6.5) | 1.1 (12.6) | 94% |
चेन्नई | 0.2 (2.5) | 0.4 (4.2) | 79% |
अहमदाबाद | 0.3 (3.3) | 0.5 (4.9) | 51% |
मुंबई | 0.4 (5.2) | 0.7 (7) | 34% |
पुणे | 0.2 (2.5) | 0.3 (3.5) | 41% |
कुल | 2.4 (26.1) | 4.2 (46.2) | 77% |
स्रोत: नाइट फ्रैंक रिसर्च
नाइट फ्रैंक इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक शिशिर बैजल कहते हैं, ''विनिर्माण क्षेत्र में आई वृद्धि का भारतीय वेयरहाउस उद्योग पर सबसे गहरा प्रभाव पड़ा है। केवल इस क्षेत्र की संग्रहण जरूरतों के 2024 तक 86 मिलियन वर्ग मीटर तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इसने वेयरहाउस बाजार में डेवलपर्स और निवेशकों के लिए इसे विकास की संभावनाओं वाला क्षेत्र बना दिया है। नए जीएसटी रिजीम, तकनीकी प्रगति और तीसरे पक्ष के लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं को अपनाने की बदौलत वेयरहाउस सेगमेंट उद्भव के काल से गुजर रहा है। इन लॉजिस्टिक्स विशेषज्ञों द्वारा लाई गई कार्यकुशलता और वेयरहाउसिंग क्षेत्र में संस्थागत निवेश गतिविधियों में आई महत्वपूर्ण बढ़ोतरी ने 2018 के दौरान इस वर्ग में लीज से संबंधी लेनदेन में 77 फीसदी की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज कराई है। जिनमें से, 128 फीसदी की वृद्धि के साथ ई-कॉमर्स वर्ग भारतीय वेयरहाउसिंग बाजार के लिए सबसे तेजी से बढ़ने वाला ऑक्यूपायर बन गया है।”
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भारत में वेयरहाउसिंग में होने वाले वार्षिक लीज ट्रांजैक्शन:
शहर | 2017 | 2018 | वृद्धि |
कोलकाता | 0.1 (1.6) | 0.4 (4.7) | 191% |
बेंगलूरू | 0.2 (2.5) | 0.6 (6) | 147% |
हैदराबाद | 0.2 (2) | 0.4 (4) | 96% |
एनसीआर | 0.6 (6.5) | 1.1 (12.6) | 94% |
चेन्नई | 0.2 (2.5) | 0.4 (4.2) | 79% |
अहमदाबाद | 0.3 (3.3) | 0.5 (4.9) | 51% |
मुंबई | 0.4 (5.2) | 0.7 (7) | 34% |
पुणे | 0.2 (2.5) | 0.3 (3.5) | 41% |
कुल | 2.4 (26.1) | 4.2 (46.2) | 77% |
स्रोत: नाइट फ्रैंक रिसर्च
नाइट फ्रैंक इंडिया में औद्योगिक एवं संपत्ति सेवाओं में राष्ट्रीय निदेशक बलबीरसिंह खालसा कहते हैं, '' संगठित वेयरहाउसिंग डेवलपर्स को ऑक्यूपायर्स ग्रुप्स और ई-कॉमर्स, थर्ड पार्टी लॉजिस्टिक्स यानी 3पीएल, विनिर्माण, एफएमसीजी, एफएमसीडी इत्यादि से ज्यादा मांग मिलनी शुरू हो गई हैं। हाल के समय में भारत में हुए नीतिगत और विनियामक सुधारों, जैसे वस्तु एवं सेवा कर का क्रियान्वयन, मेक इन इंडिया कार्यक्रम और दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा, दिल्ली कोलकाता औद्योगिक गलियारा और लॉजिस्टिक्स पार्क की स्थापना जैसी पहलों की बदौलत भारतीय वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय संस्थागत खिलाड़ियों के प्रवेश में तेजी आई है। टॉप 8 शहरों में बड़े आकार के विधिक तौर पर उपयुक्त वेयरहाउसिंग ढांचे की बढ़ती मांग ने पिछले एक वर्ष में लीजिंग स्पेस के परिमाण को 26.1 मिलियन वर्गफीट से 46.2 मिलियन वर्ग फीट तक पहुंचा दिया है। टियर 2 के शहरों में भी इसकी मांग काफी ज्यादा है और विकास की पूरी संभावनाएं दिख रही हैं। यह पूरे भारत में संयुक्त तौर पर मांग को 60 मिलियन वर्ग फीट तक पहुंचा रहे हैं। निवेशों में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी से इस वृद्धि को फंडिंग में पर्याप्त मदद दिखती है और इससे भारत भर में गुणवत्तापूर्ण और संगठित वेयरहाउसिंग स्थान विकसित करने के लिए जरूरी प्रोत्साहन मिल रहा है। ''
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