Edible oil, तिलहन कीमतों में बीते सप्ताह रहा गिरावट का रुख

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हल्की मांग निकलने के कारण मूंगफली तेल तिलहन के भाव मामूली लाभ के साथ बंद हुए। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे आयातित तेलों का आयात लगभग अगले चार महीनों की जरुरत के बराबर हो गया है जिससे ताजा सरसों फसल और बिनौला का बाजार में खपना मुश्किल हो गया है।

बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्यतेल, तिलहन कीमतों में गिरावट बदस्तूर जारी रहा और मूंगफली तेल तिलहन को छोड़कर बाकी सभी खाद्यतेल तिलहनों के दाम हानि दर्शाते बंद हुए। हल्की मांग निकलने के कारण मूंगफली तेल तिलहन के भाव मामूली लाभ के साथ बंद हुए। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे आयातित तेलों का आयात लगभग अगले चार महीनों की जरुरत के बराबर हो गया है जिससे ताजा सरसों फसल और बिनौला का बाजार में खपना मुश्किल हो गया है।

आयातित तेलों के दाम धराशायी हैं और बाजार में इन खाद्यतेलों के लिवाल भी कम हैं। जनवरी के महीने में सूरजमुखी तेल का आयात लगभग चार लाख 62 हतार टन का हुआ है जबकि प्रति माह हमारी खपत लगभग 1.5 लाख टन ही है। इसी तरह सोयाबीन तेल का आयात भी जरुरत से काफी अधिक लगभग 3.62 लाख टन का हुआ है। सूत्रों ने कहा कि शुल्क मुक्त आयात की छूट 31 मार्च तक है और इसी वजह से खाद्यतेलों का भारी मात्रा में आयात हुआ है।

उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में जयपुर में सरसों तेल संगठनों की बैठक में कहा गया कि सस्ते आयातित तेलों के मुकाबले सरसों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए इसमें सस्ते चावल भूसी तेल की मिलावट की शिकायतें मिल रही हैं। बैठक में यह भी कहा गया कि अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) अधिक निर्धारित किये जाने की वजह से ग्राहकों को सरसों तेल 180-200 रुपये लीटर के दाम बेचे जा रहे हैं जबकि देशी सरसों तेल का भाव लगभग 115 रुपये लीटर बैठता है।

सूत्रों ने कहा कि अगर सरकार को तिलहन उत्पादन बढ़ाना है, उपभोक्ताओं को सस्ता माल उपलब्ध कराना है, मुद्रास्फीति भी नियंत्रित करनी है, देश के तेल मिलों को चलाना है, किसानों के हितों को भी संरक्षित करना है, खल की उपलब्धता बढ़ाना है तो उसे पुराने ढर्रे पर लौटना होगा और निजी मिलों को शुल्क मुक्त आयात जैसी छूट का फायदा देना होगा। इसके अलावा बाकी खाद्यतेलों पर तत्काल आयात शुल्क अधिकतम सीमा तक बढ़ाना होगा। नहीं तो पानी सर से उपर चला जायेगा और स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो जायेंगी।

सूत्रों ने कहा कि खाद्यतेलों के शुल्क मुक्त आयात की छूट दी नहीं जानी चाहिये थी। आयातित सूरजमुखी तेल का जो भाव बंदरगाह पर 87 रुपये लीटर है वहीं बाजार, मॉल में जाकर जांच करें तो आप पायेंगे कि सूरजमुखी तेल का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) कम से कम 160-170 रुपये लीटर है और ग्राहकों से इस तेल के ऊंचे दाम वसूले जा रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि सरकार ने सूरजमुखी का एमएसपी सब खाद्य तिलहन के मुकाबले सबसे अधिक बढ़ाकर 6,400 रुपये क्विंटल कर दिया। सरसों का एमएसपी 5,450 रुपये क्विंटल हो गया है।

मौजूदा स्थिति को देखें तो एमएसपी बढ़ाने के बावजूद उत्पादन तब तक नहीं बढ़ेगा जब तक कि देशी तेल तिलहनों का बाजार बनाने की ओर ध्यान न दिया जाये। सूरजमुखी में सरसों से कम तेल निकलता है। देश के सूरजमुखी बीज का दाम अधिक है और आयातित सूरजमुखी तेल का दाम 87 रुपये लीटर है। ऐसे में देशी सूरजमुखी का उत्पादन कैसे बढ़ेगा? खासकर ऐसी स्थिति में जब सरसों तेल का खुदरा भाव 115 रुपये लीटर हो और देशी सूरजमुखी तेल का दाम 135 रुपये लीटर हो।

सूत्रों ने कहा कि उपभोक्ताओं को अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) जरुरत से काफी अधिक निर्धारित किये जाने की वजह से वैश्विक खाद्यतेल कीमतों में आई गिरावट का लाभ मिलने के बजाय उनसे अधिक पैसे वसूले जा रहे हैं। इन सभी दिक्कतों से निकलने का रास्ता आयातित खाद्यतेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने में छुपा है। बाजार सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित खाद्यतेलों की भरमार के बीच केंद्र सरकार ने सरसों फसल की सहकारी संस्था नाफेड द्वारा खरीद कराने की बात कही है, जो अपर्याप्त है।

उनका कहना है कि विगत अनुभवों के हिसाब से देखें तो नाफेड सारा का सारा सरसों का स्टॉक नहीं खरीद पायेगा और वह अधिक से अधिक 18-20 लाख टन खरीद कर पायेगा तो बाकी सरसों कहां खपेगी? सूत्रों ने कहा कि एसईए के तिलहन का वायदा कारोबार खोलने मांग भी अनुचित है। लगभग दो वर्ष पूर्व इसी वायदा कारोबार में सोयाबीन बीज का भाव लगभग 10-11 हजार रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया था और किसानों को महंगे में इसे खरीदना पड़ा था और जब उनकी फसल आई थी तो वायदा कारोबार में दाम 4,200-4,400 रुपये क्विंटल चल रहा थे।

उस वक्त तेल संगठन ‘सोपा’ और ‘पॉल्ट्री’ वालों की निरंतर शिकायतों के आने के बाद तिलहन के वायदा कारोबार पर रोक लगाई गई थी। सूत्रों ने कहा कि सरकार को तेल तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ ही साथ देशी तेल तिलहनों के बाजार विकसित करने की ओर भी गंभीरता से सोचना होगा और सारी नीतियां इसको ध्यान में रखकर बनानी होगी। केवल और केवल तभी हम सच्चे मायने में तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ पायेंगे।

सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयात की मौजूदा स्थिति को काबू नहीं किया गया तो हमें मवेशियों और मुर्गीदाने के लिए खल एवं डीआयल्ड केक (डीओसी) कहां से मिलेगा? विगत दिनों में दूध के दाम में कई बार बढ़ोतरी हुई है। सूत्रों ने कहा कि किसी को भी मॉल या बड़ी दुकानों में जाकर खोज खबर लेनी चाहिये कि वैश्विक स्तर पर गिरावट आने के बावजूद ग्राहकों को किस दाम पर खाद्य तेल बेचा जाता है तो हकीकत सामने आ जायेगी। सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 25 रुपये टूटकर 5,275-5,325 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताहांत में सरसों दादरी तेल 30 रुपये घटकर 10,950 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं सरसों पक्की घानी तेल का भाव 1,710-1,780 प्रति टन पर स्थिर रहा जबकि सरसों कच्ची घानी तेल की कीमत पांच रुपये की साधारण हानि दर्शाती 1,710-1,830 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं। सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज के थोक भाव भी क्रमश: 20-20 रुपये घटकर क्रमश: 5,220-5,350 रुपये और 4,960-4,980 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।

इसी तरह, समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के भाव क्रमश: 270 रुपये, 150 रुपये और 50 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 11,280 रुपये, 11,150 रुपये और 9,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों के भाव में साधारण सुधार दिखा। मूंगफली तिलहन का भाव पांच रुपये सुधरकर कर 6,780-6,840 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 16,600 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित बना रहा जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव पांच रुपये के मामूली सुधार के साथ 2,540-2,815 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ। सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 50 रुपये टूटकर 8,800 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 50 रुपये टूटकर 10,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

पामोलीन कांडला का भाव भी 50 रुपये की गिरावट के साथ 9,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। देशी तेल-तिलहन की तरह बिनौला तेल भी समीक्षाधीन सप्ताह में 300 रुपये की गिरावट के साथ 9,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। मंडियों में बिनौला की आवक कम हो रही है और उधर बिनौला खल के दाम बढ रहे हैं। आने वाले दिनों में बिनौला खल के और महंगा होने के आसार हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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