रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष आकार पर जालान समिति की पहली बैठक
वित्त मंत्रालय की दलील थी कि यह राशि रिजर्व बैंक की कुल परिसंपत्ति के 28 प्रतिशत के बराबर है जबकि वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों के पास ऐसी अतिरिक्त पूंजी पूंजी के लिए 14 प्रतिशत का स्तर प्रयाप्त माना जाता है।
नयी दिल्ली। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति की पहली बैठक मंगलवार को हुई। समिति रिजर्व बैंक के पास रखे जाने वाले आरक्षित कोष के उचित आकार और सरकार को दिये जाने वाले लाभांश के बारे में अपनी सिफारिश देगी। सूत्रों ने बताया कि छह सदस्यों वाली यह समिति संभवत: अप्रैल में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी।
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यह उच्चस्तरीय समिति दुनियाभर में केन्द्रीय बैंकों द्वारा अपनाये जाने वाले व्यवहारों की समीक्षा कर अपना आकलन पेश करेगी और केन्द्रीय बैंक के बहीखातों के समक्ष आने वाले जोखिम के प्रावधानों पर अपने सुझाव देगी। पूर्व आर्थिक मामले विभाग के सचिव राकेश मोहन को समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया है। समिति हर संभव परिस्थितियों में रिजर्व बैंक के मुनाफे के उचित वितरण की नीति का भी प्रस्ताव करेगी। इसमें जरूरत से ज्यादा प्रावधान रखे जाने की स्थिति पर भी गौर किया जायेगा।
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रपटों के मुताबिक रिजर्व बैंक के पास की 9.6 लाख करोड़ रुपये की अधिशेष पूंजी को लेकर रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए थे। वित्त मंत्रालय की दलील थी कि यह राशि रिजर्व बैंक की कुल परिसंपत्ति के 28 प्रतिशत के बराबर है जबकि वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों के पास ऐसी अतिरिक्त पूंजी पूंजी के लिए 14 प्रतिशत का स्तर प्रयाप्त माना जाता है।
इसके बाद रिजर्व बैंक की 19 नवंबर 2018 को हुई बैठक में रिजर्व बैंक की आर्थिक पूंजी के निमयमों की जांच परख कर उस पर सुझाव देने के लिये एक समिति गठित करने का फैसला किया गया। इस समिति में बिमल जालान अध्यक्ष, राकेश मोहन उपाध्यक्ष के अलावा आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और रिजर्व बैंक केन्द्रीय निदेशक मंडल के दो सदस्यों भारत दोषी और सुधीर मांकड़ शामिल हैं।
A high-level #panel led by former #RBI governor #BimalJalan Tuesday held its first meeting to decide on an appropriate size of #reserves that the central bank should maintain and the #dividend it should give to the government.https://t.co/AwH4uQeZAk
— Firstpost (@firstpost) January 8, 2019
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन समिति के छठे सदस्य हैं। इससे पहले भी तीन समितियां इस मुद्दे की जांच परख कर चुकीं हैं और अपनी सिफारिशें दे चुकीं हैं। वर्ष 1997 में गठित सुब्रमणियम समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था कि आपात आरक्षित कोष 12 प्रतिशत तक रखा जाना चाहिये। इसके बाद 2004 में बनी उषा थोराट समिति ने आरक्षित कोष को 18 प्रतिशत पर रखने की सिफारिश की।
रिजर्व बैंक निदेशक मंडल ने थोरट समिति की सिफारिशों को नहीं माना और सुब्रमणियम समिति की सिफारिशों को अपनाने का फैसला किया। वहीं 2013 में गठित मालेगाम समिति ने अपनी सिफारिश में कहा कि मुनाफे में से पर्याप्त राशि हर साल आपात कोष में हस्तांतरित की जानी चाहिये।
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