बेहतर अवसर की तलाश में हैं तो मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन क्षेत्र में किस्मत आजमा सकते हैं

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प्रीटी । Jun 1 2021 4:35PM

एक मेडिकल ट्रांसक्रिप्शनिस्ट शुरुआत में 25-30 हजार रुपये प्रति माह तक कमा लेता है। यदि वह इस कार्य में पारंगत हो जाता है तो वह इस सीमा से काफी आगे भी निकल सकता है। ट्रांसक्रिप्शन के लिए भुगतान दर प्रति लाइन तय होती है।

संचार क्रांति के इस युग में टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र का विस्तार बड़ी तेजी से हो रहा है। टेलीकम्युनिकेशन और इंफॉर्मेशन टेक्नालॉजी के क्षेत्र में आई इस क्रांति से देश के भीतर और बाहर दोनों ही जगह रोजगार के कई अवसर पैदा हुए हैं। टेलीकॉम क्रांति ने व्यावसायिक जगत में भारत को एक अहम स्थान दिया है, जिसके परिणामस्वरूप उपलब्ध अवसरों की संख्या में इजाफा हुआ है। ऐसे ही अवसरों में से एक है 'मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन'।

एक बिजनेस पत्रिका के मुताबिक मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन क्षेत्र में अवसरों की मांग सूचना तकनीक क्षेत्र से भी अधिक है। यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में जितना काम उपलब्ध है, कार्य करने वालों की तादाद उससे कम ही है। ऐसे में इस कार्य में संलग्न व्यक्तियों की मांग होनी ही है। तो क्यों न इस क्षेत्र में अपना व्यवसाय प्रारंभ किया जाए?

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मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन क्या है?

दरअसल अमेरिका में बीमा कंपनियां मरीजों के दिन−प्रतिदिन काम में आने वाली दवाओं में लगने वाले धन का रिअम्बरसमेंट (भुगतान) करती हैं। इसके लिए वे डॉक्टरों से मरीज के बारे में विस्तृत जानकारी मांगती हैं। इस जानकारी में मरीज का बैकग्राउंड, मरीज की बीमारी, मरीज को दी गई दवाओं का विवरण आदि सम्मिलति होता है। कानूनी तथा उपरोक्त कारणों से डॉक्टरों को मरीजों के बारे में यह समस्त जानकारी स्टोर रखनी पड़ती है और बीमा कंपनी को देनी होती है। डॉक्टर यह कार्य इस क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों से करवाते हैं। इसके लिए वे मरीज के बारे में डिक्टेशन रिकॉर्ड कर लेते हैं और इस रिकॉर्ड किए गए डिक्टेशन को पेशेवरों द्वारा सुन कर टैक्स्ट में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस प्रकार डॉक्टरों द्वारा कानूनी कारणों से मरीजों का मेडिकल रिकॉर्ड रखा जाना मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन कहलाता है।

संपूर्ण कार्य चक्र पर एक नजर

चूंकि अमेरिका और भारत में 12 घंटे का समय अंतराल है, अतः जब वहां पर लोग सो रहे होते हैं तब भारत में लोग काम कर रहे होते हैं। इसी कारण से मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन का कार्य दिन में 24 घंटे चलता रहता है। इस प्रक्रिया में डॉक्टर वहीं की एक एजेंसी के टोल फ्री नंबर पर डिक्टेशन देता है। वह एजेंसी उस डिक्टेशन को अपने एफटीपी सर्वर पर डिजिटल फॉर्मेट में अपलोड़ कर देती है। यह समस्त प्रक्रिया अमेरिका में दिन के वक्त होती है। यह एजेंसी रात होने से पहले ही विभिन्न डॉक्टरों की पूरे दिन की डिक्टेशन को निर्दिष्ट एफटीपी सर्वर पर अपलोड कर देती है। जब वहां पर रात हो जाती है तो यहां भारत में सवेरा होता है। सवेरे मेडिकल ट्रांसक्रिप्शनिस्ट उस निर्दिष्ट एफटीपी सर्वर से डिजिटल फॉर्मेट में रखी डिक्टेशन को अपलोड कर लेता है। इस प्रकार वह डिक्टेशन भारत में पहुंच जाती है। भारत में काम करने वाले ट्रांसक्रिप्शनिस्ट दिन भर में उन डिक्टेशनों को टैक्स्ट फॉर्मेट में बदल देते हैं। यहां रात होने से पहले ही इन सभी डिक्टेशनों को टाइप करते हुए रिपोर्ट के रूप में तैयार कर लिया जाता है। तत्पश्चात् इन तैयार की गई रिपोर्टों को वापस एफटीपी सर्वर पर अपलोड कर दिया जाता है। जब अमेरिका में सवेरा होता है तो डॉक्टर उस रिपोर्ट को प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार वहां पर डॉक्टरों को अगले दिन सवेरे ही चाही गई सभी रिपोर्ट मिल जाती है।

ट्रांसक्रिप्शनिस्ट का कार्य

ट्रांसक्रिप्शनिस्ट को साउंड फाइल को सुनते हुए उसे टाइप करना होता है। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त तौर पर हैडफोन/इयरफोन और फुट पैडल की मदद लेनी होती है। हैडफोन के माध्यम से वे डिक्टेशन को सुनते हैं तथा फुट पैडल की मदद से वे इस डिक्टेशन की गति को नियंत्रित करते हैं। सामान्यतः यह टाइपिंग एमएस वर्ड में ही की जाती है। यह टाइपिंग लगभग 90 प्रतिशत तक सटीक होती है। इसके बाद क्वालिटी कंट्रोल के लिए इसे 2 क्वालिटी कंट्रोलरों द्वारा परखा जाता है और सटीकता को 98 से 100 प्रतिशत तक लाया जाता है। प्रथम स्तर पर की जाने वाली जांच किसी ऐसे पेशेवर से करायी जाती है जिसके पास कम से कम 1 साल का अनुभव हो। इसके पश्चात् द्वितीय स्तर पर कराई जाने वाली जांच किसी डॉक्टर या 3 साल का अनुभव रखने वाले पेशेवर से कराई जाती है।

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योग्यता

वैसे इस कार्य को करने के लिए कानूनन कोई योग्यता निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन फिर भी कोई भी ग्रेजुएट या नॉन ग्रेजुएट जिसकी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ हो, वह इस कार्य को कर सकता है। चूंकि इस कार्य में मेडिकल शब्दों को सुनते हुए उसे टैक्स्ट में परिवर्तित करना होता है, अतः यह समझा जाता है कि कार्य करने वाले व्यक्ति को पहले से ही मेडिकल शब्दों का ज्ञान है, वैसे यह जरूरी भी नहीं है। आप चाहे किसी भी क्षेत्र के हों, आप भी यह कार्य कर सकते हैं बशर्ते कि आप इसके लिए उचित प्रशिक्षण हासिल करें जिससे आपको मेडिकल शब्दों का ज्ञान हो जाएगा।

आय

एक मेडिकल ट्रांसक्रिप्शनिस्ट शुरुआत में 25-30 हजार रुपये प्रति माह तक कमा लेता है। यदि वह इस कार्य में पारंगत हो जाता है तो वह इस सीमा से काफी आगे भी निकल सकता है। ट्रांसक्रिप्शन के लिए भुगतान दर प्रति लाइन तय होती है। यहां एक लाइन में लगभग 65 केरेक्टर माने जाते हैं।

इस व्यवसाय को आरम्भ करने के लिए मूलभूत आवश्यकताएं

इस व्यवसाय से जुड़े लोग बताते हैं कि अमेरिका से आपको काम तभी मिल पाता है जबकि आप एक बड़े सैटअप के साथ कार्य कर रहे हों। यदि कोई अकेला व्यक्ति यह काम सीधे अमेरिका या विदेशों से पाना चाहता है तो यह काफी मुश्किल है। इसकी बजाए इस कार्य को करने के इच्छुक लोग भारत में बड़े सैटअप के साथ काम करने वाली फर्मों/पेशवेरों आदि से कार्य प्राप्त कर सकते हैं। यह काम करने के लिए व्यक्ति के पास एक कम्प्यूटर होना चाहिए। इसके अतिरिक्त इंटरनेट, हैडफोन का होना भी आवश्यक है। साउंड को प्ले करने और उस पर नियंत्रण पाने के लिए आपको फुट पैडल की भी आवश्यकता होगी।

इस फुट पैडल में तीन बटन होते हैं जोकि प्ले, रिवर्स और फारवर्ड की सुविधा प्रदान करते हैं। सॉफ्टवेयर के तौर पर आपको एक वर्ड प्रोसेसर की भी आवश्यकता होगी। इसके लिए काम में लिए जाने वाले कम्प्यूटर का उच्च क्षमतावान होना जरूरी नहीं है। इन सभी संसाधनों के साथ ही कार्य करने वाले व्यक्ति का टाइपिंग में दक्ष होना भी जरूरी है। संदर्भ के तौर पर आपको कुछ मेडिकल डिक्शनरियों की भी आवश्यकता होगी क्योंकि डिक्टेशन सुनते वक्त जब कोई शब्द आपकी समझ में नहीं आता है तो आप इनकी सहायता से उक्त शब्दों के अर्थ का भलीभांति पता कर सकते हैं।

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प्रशिक्षण

मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन का कार्य शुरू करने से पहले इसकी ट्रेनिंग भी ली जा सकती है। ट्रेनिंग के दौरान आपको फिजिशियन और अन्य पेशवेरों द्वारा डिक्टेट किए गए भाषण को समझना सिखाया जाता है। यह ट्रेनिंग 6 माह से लेकर 8 माह तक की होती है। इस ट्रेनिंग में अभ्यर्थी को मेडिकल शब्दों के बारे में, अमेरिकन इंग्लिश और ग्रामर के बारे में, प्रूफ रीडिंग, अलग−अलग तरह से बोले गए शब्दों को समझना, अस्पष्ट शब्दों को वक्ता से दोबारा पूछा जाना, संदर्भ ग्रंथों (रेफरेंस मेटेरियल) की मदद लिया जाना और तैयार की गई रिपोर्ट की फॉर्मेटिंग आदि कार्य सिखाए जाते हैं। आज जगह−जगह इस प्रकार की ट्रेनिंग देने वाले इंस्टीट्यूट खुल गए हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि बढ़िया ट्रेनिंग कहां से मिल सकती है। सो इसका जवाब यह है कि ट्रेनिंग सिर्फ उन्हीं संस्थानों से ली जानी चाहिए जो कि स्वयं यह कार्य कर रहे हों अथवा इस व्यवसाय में हों।

कार्य कहां से प्राप्त करें?

कार्य पाने के लिए आप अपने आस−पास के किसी मेडिकल ट्रांसक्रिप्शनिस्ट से संपर्क कर सकते हैं। कई ट्रांसक्रिप्शनिस्ट जिनके पास काफी कार्य होता है, वह आपको कार्य उपलब्ध करवा सकते हैं। अधिक विस्तृत जानकारी पाने के लिए आप इंटरनेट की मदद ले सकते हैं।

इस क्षेत्र में संभावना

चूंकि आज वॉइस रेकगनिशन जैसे सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं, इसलिए आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अभी जो वॉइस रेकगनिशन सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं वह पूरी दक्षता के साथ काम नहीं कर पाते और इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि आने वाले लगभग दो−तीन सालों तक तो इनमें बेहतरी की उम्मीद भी नहीं है। इस क्षेत्र में संभावनाएं अच्छी हैं। खास बात यह है कि महामारी के समय में हैल्थकेयर अब बहुत तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र बन गया है। इसलिए इस क्षेत्र में मंदी की बात तो भूल जाइये।

- प्रीटी

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