भारत की मिसाइल शक्ति हुई और प्रखर, 800 किमी ब्रह्मोस से पाकिस्तान में मची हलचल

BrahMos Cruise Missile
ANI

ब्रह्मोस मिसाइल की 800 किमी मारक क्षमता का सबसे बड़ा सामरिक अर्थ पाकिस्तान के संदर्भ में उभरता है। पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई सीमित है। उसके प्रमुख सैन्य ठिकाने, हवाई अड्डे, और रसद केंद्र सीमा से कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में हैं।

भारत ने अपनी सामरिक प्रहार क्षमता में एक और ऐतिहासिक छलांग लगाई है। देश अगले दो वर्षों में 800 किलोमीटर रेंज वाली नई ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों का इंडक्शन शुरू करेगा। यह मिसाइल मौजूदा 450 किमी संस्करण की तुलना में लगभग दोगुनी दूरी तय कर सकेगी और तीन गुना आवाज़ की गति से (मैक 2.8) प्रहार करने में सक्षम होगी। नौसेना और थलसेना इसे पहले चरण में अपनाएंगी, जबकि वायुसेना के लिए इसका एयर-लॉन्च संस्करण कुछ समय बाद तैयार होगा। इसके साथ ही, 200 किलोमीटर से अधिक रेंज वाली स्वदेशी ऑस्ट्रा मार्क-2 एयर-टू-एयर मिसाइलें भी 2026–27 तक उत्पादन के लिए तैयार होंगी। दोनों मिसाइलें न केवल भारत की “स्टैंड-ऑफ” स्ट्राइक क्षमता को नई ऊँचाइयों पर ले जाएंगी, बल्कि विदेशी हथियारों पर निर्भरता को भी कम करेंगी। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन को निर्णायक रूप से भारत के पक्ष में झुका देगा।

देखा जाये तो भारत की नई 800 किमी रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइल केवल एक तकनीकी उन्नति नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के सामरिक परिदृश्य में शक्ति संतुलन की नई परिभाषा है। यह सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि संदेश है कि भारत अब किसी भी शत्रु के ठिकाने को दूर से सटीकता से नेस्तनाबूद करने में सक्षम है और वह भी बिना परमाणु हथियारों के सहारे।

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ब्रह्मोस का यह नया संस्करण, जो मौजूदा 450 किमी रेंज से लगभग दोगुना दूर तक प्रहार कर सकता है, भारतीय सैन्य सिद्धांत में “दूरस्थ और निर्णायक प्रतिशोध” की क्षमता को साकार करता है। चाहे समुद्र हो, भूमि या आकाश— यह सुपरसोनिक मिसाइल अपने लक्ष्य पर ऐसी गति से वार करती है कि प्रतिक्रिया का समय शून्य के बराबर रह जाता है। आज, जब अधिकांश राष्ट्र ‘सटीक, सीमित और त्वरित युद्ध’ की दिशा में जा रहे हैं, भारत का यह कदम उसकी सामरिक परिपक्वता का परिचायक है।

इस मिसाइल की 800 किमी मारक क्षमता का सबसे बड़ा सामरिक अर्थ पाकिस्तान के संदर्भ में उभरता है। पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई सीमित है। उसके प्रमुख सैन्य ठिकाने, हवाई अड्डे, और रसद केंद्र सीमा से कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में हैं। 800 किमी की ब्रह्मोस मिसाइल इन सभी पर बिना भारतीय विमानों को सीमा पार भेजे सीधे प्रहार करने में सक्षम होगी। यह ‘स्टैंड-ऑफ स्ट्राइक’ क्षमता भारत को वह सामरिक लाभ देती है जो पाकिस्तान के पास न तकनीकी रूप से है, न संसाधन के रूप में।

ऑपरेशन सिंदूर में जब भारतीय वायुसेना ने ब्रह्मोस मिसाइलों से सीमापार आतंक ठिकानों को ध्वस्त किया था, तब ही यह स्पष्ट हो गया था कि भारत अब अपने स्टाइल से प्रहार करेगा। 800 किमी ब्रह्मोस उस रणनीति को और भी प्रखर बना देगी। यदि कल को पाकिस्तान किसी भी तरह की उकसावेभरी हरकत करता है, तो भारत को अब किसी लंबी युद्ध-तैयारी या सीमित हवाई मिशन की जरूरत नहीं होगी, केवल आदेश देना होगा और परिणाम तय होगा।

दूसरी ओर, 200+ किमी की ऑस्ट्रा मार्क-2 मिसाइलें वायुसेना को निर्णायक आकाशीय बढ़त देंगी। अब भारत दुश्मन के फाइटर जेट्स को उनके राडार कवरेज में आने से पहले ही गिरा सकेगा। मई के हवाई अभियानों में पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए गए चीनी PL-15 मिसाइलों ने भारत के लिए यह चेतावनी दी थी कि वायुक्षेत्र में “रेंज का खेल” निर्णायक होता है। ऑस्ट्रा-2 और आने वाली ऑस्ट्रा-3 इस कमी को पूरी तरह समाप्त कर देंगी।

इस सैन्य विकास का पाकिस्तान के लिए अर्थ स्पष्ट है— उसकी मौजूदा रक्षा-संरचना पुरानी पड़ चुकी है। न उसकी वायु रक्षा प्रणाली ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक मिसाइल को रोक सकती है, न उसकी आर्थिक स्थिति नई तकनीकों की दौड़ में बने रहने की अनुमति देती है। यदि भारत अपनी 800 किमी ब्रह्मोस को नौसेना के जहाजों, थलसेना के मोबाइल लॉन्चर और वायुसेना के सुखोई जैसे प्लेटफॉर्म्स पर तैनात करता है, तो पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाएगी।

यह मिसाइल भारत को केवल पश्चिमी मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक गहराई देती है। चीन के संदर्भ में भी, यह क्षमता भारतीय नौसेना को मलक्का से अंडमान तक “सर्जिकल कंट्रोल” प्रदान करेगी। लेकिन पाकिस्तान के लिए खतरा तात्कालिक है— उसे अब न केवल अपनी सीमाओं पर सतर्क रहना होगा बल्कि अपने एयरबेस और कमांड सेंटरों को भी गहराई तक पुनर्गठित करना पड़ेगा। यह उसके सीमित संसाधनों पर भारी बोझ डालेगा।

भारत की रक्षा नीति अब “रिएक्टिव” नहीं, बल्कि “प्रो-एक्टिव डिटरेंस” की दिशा में आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यह नीति स्पष्ट संकेत देती है कि भारत अब केवल जवाब नहीं देगा, बल्कि शर्तें तय करेगा। यह वही भारत है जो तकनीकी आत्मनिर्भरता के बल पर अपना सामरिक संतुलन खुद गढ़ रहा है— रूस, फ्रांस या इज़राइल की जगह अब DRDO और BrahMos Aerospace भारतीय रक्षा-शक्ति के असली प्रतीक बन गए हैं।

बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि 800 किमी ब्रह्मोस भारत की “सामरिक शांति की मिसाइल” है— क्योंकि वास्तविक शांति वही सुनिश्चित कर सकता है जिसके पास निर्णायक शक्ति हो। पाकिस्तान को अब समझ लेना चाहिए कि उसकी “प्रॉक्सी वॉर” की कीमत अब पहले जैसी नहीं रहेगी। यदि उसने अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया, तो भविष्य में उसे केवल कूटनीतिक अलगाव ही नहीं, बल्कि सामरिक विनाश की वास्तविक संभावना का सामना करना पड़ सकता है। भारत ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि शांति की इच्छा हमारी नीति है, लेकिन शक्ति उसका संरक्षक है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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