एनसीआर में आम आदमी का घर का सपना तोड़ रहे बिल्डर

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की सबसे बड़ी परेशानी बन कर उभर रहे निजी बिल्डरों ने जिस तरह मनमानी मचा रखी है उससे आम जनता बेहद परेशान है। इस समय हर ओर यही देखने को मिल रहा है कि जेपी इंफ्राटेक, आम्रपाली, यूनिटेक जैसे पता नहीं कितनी बड़ी-बड़ी कंपनियों ने आम जनता के सपनों को तोड़कर रख दिया है। कहीं जनता समय पर अपने फ्लैट नहीं मिलने से ईएमआई और मकान किराये की राशि दे देकर बेहाल है तो कहीं बहुत देरी के बाद यदि फ्लैट मिल भी गये हैं तो निर्माण की खराब हालत, मनमाने मेंटनेंस चार्जेस जनता पर लाद दिये गये हैं और कहीं कोई सुनवाई नहीं है।
संसद ने बिल्डरों पर शिकंजा कसने के लिए रियल एस्टेट रेगुलेटरी बिल को मंजूरी प्रदान की लेकिन इस कानून के पूरी तरह लागू होने में साल भर का समय लग सकता है। उपभोक्ता अदालतों में भी बिल्डरों के खिलाफ शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। कुछ लोगों को न्याय मिला भी है लेकिन अधिकतर लोग अभी न्याय की बाट ही जोह रहे हैं क्योंकि बिल्डर कंपनियों के पास पूरी लीगल टीम है जोकि मामले को लंबा खिंचवाने में माहिर है। आम आदमी के पास इतना समय और धन शक्ति नहीं होती कि वह अदालतों के चक्कर काटता रहे और वकीलों को भुगतान करता रहे। आम आदमी जब अपना घर खरीदता है तो जिस तरह बैंक लोन देते समय उससे तरह तरह के दस्तावेज लेकर अपनी संतुष्टि करता है उसी प्रकार आम आदमी भी यही मानता है कि सरकार ने जमीन आवंटित करते समय या निर्माण संबंधी अन्य मंजूरियां प्रदान करते समय सभी कार्रवाइयां पूरी कर ली होंगी। घर के लिए पैसा देने के बाद जब आम आदमी को पता चलता है कि जमीन का आवंटन रद्द हो गया है तो उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है। कई जगह ऐसे भी वाकये सामने आये हैं जिसमें बिल्डर ने प्राधिकरण की मंजूरी से ज्यादा संख्या में टावर या मंजूरी से ज्यादा ऊंचे टावर बना दिये हैं जिन पर अब कार्रवाई की तलवार लटकने से बेचारे आम आदमी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।
बिल्डरों के यहाँ विरोध प्रदर्शन की आजकल खूब खबरें आ रही हैं लेकिन बिल्डरों को भी यह बात अच्छी तरह पता है कि यदि किसी सप्ताह अपनी मांगों को लेकर फ्लैट खरीददार अच्छी तादाद में विरोध प्रदर्शन करने आ भी गये तो अगले सप्ताह चुप हो जाएंगे क्योंकि हर सप्ताह आफिस से छुट्टी लेना सभी के लिए संभव नहीं है। अभी मीडिया ने इस मुद्दे पर पूरा ध्यान लगा रखा है इसलिए प्राधिकरण भी हरकत में नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश की बात करें तो नोएडा विकास प्राधिकरण ने अब समिति का गठन किया है जोकि बिल्डरों के कामकाज की समीक्षा करेगी और घर खरीदने वाले लोगों की शिकायतों को सुनेगी। माना जा रहा है कि प्राधिकरण मुख्यमंत्री के निर्देश पर हरकत में आया है।
'दादा खरीदे पोता बरते' वाली कहावत को बिल्डरों ने शायद अपने काम करने का तरीका बना लिया है। आपको दिल्ली एनसीआर में बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिल जाएँगे जिन्होंने दस साल पहले अपने घर बुक कराये थे लेकिन अभी भी यह पता नहीं कि घर कब मिल पाएगा। माता पिता ने जिन बच्चों के अपने घर में खेलने के सपने देखे थे वह किराये के घर में ही बड़े हो गये। कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने घर के लिए 15 साल की अवधि का लोन लिया था जिसमें से दस साल लोन की किश्त देते हुए पूरे हो गये लेकिन घर अभी भी सपना ही है। कुछ बुजुर्ग अपने बच्चों का घर देखने का सपना लिये ही इस दुनिया से चले गये।
दिल्ली एनसीआर के अखबारों में यदि सबसे ज्यादा विज्ञापन किसी चीज के आते हैं तो वह हैं बिल्डरों की ओर से घर खरीदने के लिए पेश की गयी आकर्षक योजनाओं के। कोई घर में स्वागत के लिए आरती की थाली लिये किसी सेलेब्रेटी की तसवीर के साथ मंत्रमुग्ध करने की कोशिश करता है तो कोई घर के साथ कार या टीवी या फिर छुटि्टयों पर जाने के लिए टिकट की पेशकश कर आकर्षित करता है तो कोई गारंटीशुदा रिटर्न की बात करता है। इस मायाजाल में फंसकर जब एक बार बिल्डर को भुगतान कर दिया जाता है तब इन आकर्षक विज्ञापनों का सच सामने आता है। ज्यादातर यही शिकायतें सुनने को मिलती हैं कि अपने घर के निर्माण की स्थिति जानने पहुँचे ग्राहकों को बाउंसर वापस भगा देते हैं या फिर बिल्डर कंपनी की ओर से कोई सीधा जवाब नहीं दिया जाता। इसके बाद लोग धरना प्रदर्शन करने को मजबूर होते हैं।
वर्तमान में जो स्थिति है उसके बारे में बिल्डर लॉबी ज्यादा दोषारोपण मनरेगा की वजह से मजदूरों की कथित कमी पर कर रही है। साथ ही नोएडा में बिल्डरों का यह भी कहना है कि ओखला बर्ड सेंक्चयुरी वाले मामले में एनजीटी के आदेश की वजह से भी देरी हुई। बिल्डरों का यह भी आरोप है कि उत्तर प्रदेश में कोई भी काम करने में बहुत सी सरकारी बाधाएँ खड़ी हो जाती हैं। इन सब कारणों पर गौर किया जाए तो इनसे यह कहीं साबित नहीं होता कि पांच से सात साल की देरी के लिए यह कारण जिम्मेदार हैं। दरअसल बिल्डरों ने अपना काम फैलाने के चक्कर में एक प्रोजेक्ट को लॉन्च करने और उससे मिले पैसे से दूसरे प्रोजेक्ट के लिए जमीन खरीदने का रुख अपना रखा है। एक प्रोजेक्ट का पैसा जब दूसरे में लग जा रहा है और दूसरे का तीसरे में तो कोई भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पा रहा है।
बिल्डरों की मनमानी यहीं तक सीमित नहीं है। गाजियाबाद में तो ऐसा वाकया भी सामने आया है कि एक प्रमुख बिल्डर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के पांच नोटिसों के बावजूद आरडब्ल्यूए को मेंटनेंस का कार्यभार नहीं सौंपा है। साथ ही कई जगह यह भी देखने में आया है कि अपना रुतबा बरकरार रखने के लिए बिल्डर किसी सोसायटी में दो आरडब्ल्यूए बनवा दे रहे हैं ताकि निवासी आपस में ही टकराते रहें। इसके अलावा कई जगह मेंटनेंस चार्जेस के अलावा पानी का बिल अलग से और कॉमन एरिया लाइटिंग का बिल अलग से लेकर निवासियों को प्रताड़ित किया जा रहा है। जिन लोगों को वर्षों बाद घर मिलते भी हैं तो बिल्डर देरी से निर्माण के बदले में मुआवजा देने की बजाय ग्राहक से ही और पैसा वसूलने के लिए सुपर एरिया बढ़ने का तर्क पेश कर देते हैं। साथ ही बिल्डर घर बेचते समय अपने ब्रोशर में जिन वादों और सुविधाओं का वादा करता है वह ज्यादातर हकीकत से दूर होते हैं।
उत्तर प्रदेश को शायद सर्वाधिक राजस्व देने वाले गौतमबुद्ध नगर जिले की स्थिति एनसीआर के बाकी शहरों से इस मामले में भी अलग है कि गुड़गाँव या गाजियाबाद में इस प्रकार की शिकायतों को सुनने के लिए और उस पर कार्रवाई करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था है। इसके अलावा यदि गुड़गाँव या गाजियाबाद में कुछ हो जाए तो मुख्यमंत्री आ जाते हैं लेकिन नोएडा के बारे में तो एक अंधविश्वास ने हर मुख्यमंत्री के कदम यहाँ पड़ने से रोक दिये हैं। लखनऊ में बैठकर ही मुख्यमंत्री अधिकारियों की ओर से पेश कर दी गयी रिपोर्टों से संतुष्ट हो जाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं तो और क्या है कि यदि बुंदेलखण्ड में सूखे की स्थिति विकट हो जाए तो मुख्यमंत्री वहाँ पहुंच जाएंगे, यदि उत्सवों में भाग लेना हो तो मुख्यमंत्री सैफई पहुंच जाएंगे, यदि रैलियां या अन्य कोई राजनीतिक कारण हो तो मुख्यमंत्री अन्य जिलों में पहुंच जाएंगे, लेकिन नोएडा में बिल्डरों की मनमानी कितनी भी चलती रहे जनता भगवान के भरोसे ही रहने को बाध्य है। अभी राज्य सरकार ने जब जिले में स्टांप शुल्क में दो फीसदी की बढ़ोत्तरी की घोषणा की थी तो दिन रात लगकर लोगों ने अपने घरों की रजिस्ट्री करवाई। सरकार के पास जनता से पैसे निकलवाने के तो बहुत तरीके हैं लेकिन जनता यह भी देखना चाहती है कि सरकार ऐसे तरीके बिल्डरों के लिए भी आजमाए ताकि वह भी रात दिन लगकर काम करें।
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