जलसंकट से जुड़ी चुनौतियों को गंभीरता से नहीं लेना बड़ी आपदा को निमंत्रण

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ललित गर्ग । Jan 15 2020 12:49PM

विश्लेषकों द्वारा तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका पानी के लिए व्यक्त की जाती रही है। निकट भविष्य में पानी का प्रयोग अस्त्र रूप में भी संभावित है। कुछ समय पहले पाकिस्तान से तनाव हो जाने पर भारत द्वारा सिंधु नदी के प्रवाह को रोकने की चेतावनी दी गई थी।

कहते हैं कि पानी की असल अहमियत वही शख्स समझता है, जो तपते रेगिस्तान में एक बूंद पानी की खोज के लिए मीलों भटका हो। वह शख्स पानी की कीमत क्या जाने, जो नदी के किनारे रहता है। भारत के कई राज्यों में पीने के पानी की भारी समस्या है और उसके अधिक विकराल होने की संभावनाओं की चेतावनी लम्बे समय से दिये जाने के बावजूद हम नहीं चेत रहे हैं। नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में अगले ही साल 21 शहरों में भूजल खत्म होने की आशंका व्यक्त करते हुए एक फिर चेताया है।

देश के जो क्षेत्र जल संकट की भयावह स्थिति का सामना कर रहे हैं, उन क्षेत्रों में एक घड़े पानी की कीमत व्यक्ति या मनुष्य के जीवन से अधिक है। वहां गर्मी में तो महिलाएं प्रातःकाल से ही जल की व्यवस्था में जुट जाती हैं। मैंने राजस्थान के ब्यावर, अजमेर एवं किशनगढ़ लोगों को पेयजल के लिए मशक्कत करते हुए देखा है। आज जल के अधिकांश स्रोत सूख रहे हैं। भूगर्भ जल का स्तर निरंतर नीचे जा रहा है। गर्मी के दिनों में आकाश की तपिश से जनमानस बेहाल रहता है और पानी दुर्लभ होता जा रहा है।

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पिछले साल महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित मराठवाड़ा के लातूर जिले के लोगों को पीने का पानी ट्रेन में भरकर पहुंचाया गया था। दूसरे राज्य तो छोड़िये देश की राजधानी दिल्ली के ही कई इलाकों में पानी का संकट रहता है। आने वाले समय में ये संकट और बढ़ सकता है। इसी संकट की ओर नीति आयोग की चेतावनी सामने आयी है, यद्यपि यह भी कहा गया है कि इन शहरों में पानी की उपलब्धता भूमिगत जल स्रोतों के अलावा भूजल स्रोतों पर आधारित होने के कारण उतनी चिंता की बात नहीं है। जिन शहरों में भूजल समाप्त होने की आशंका जताई गई है उनमें दिल्ली, गुरुग्राम, गांधीनगर, यमुनानगर, बेंगलुरु, इंदौर, अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, मोहाली, पटियाला, अजमेर, बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, चेन्नई, आगरा, गाजियाबाद इत्यादि शामिल हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट बड़े खतरे का संकेत दे रही है। भारत में पुराने जमाने में तालाब, बावड़ी और नलकूप थे, तो आजादी के बाद बांध और नहरें बनाईं। वक्त के बदलने के साथ-साथ सोच भी बदली, अति भोगवाद बढ़ा। संयम का सूत्र छूट गया। आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि प्रकृति में निहित संदेश को हम सुन नहीं पा रहे हैं। जलसंकट पूरी मानव जाति को ऐसे कोने में धकेल रही है, जहां से लौटना मुश्किल हो गया है। समय-समय पर प्रकृति चेतावनियां देती है पर आधुनिकता के कोलाहल में हम बहरा गये हैं।

आज देश का कोना-कोना जल समस्या से ग्रस्त है। वर्ष 2018 में कर्नाटक ने अभूतपूर्व बाढ़ देखी थी, किंतु अब 2019 में उसके 176 में से 156 तालुके सूखाग्रस्त घोषित हो चुके हैं। महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ भयंकर जल समस्या का सामना कर रहे हैं। विश्लेषकों द्वारा तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका पानी के लिए व्यक्त की जाती रही है। निकट भविष्य में पानी का प्रयोग अस्त्र रूप में भी संभावित है। कुछ समय पहले पाकिस्तान से तनाव हो जाने पर भारत द्वारा सिंधु नदी के प्रवाह को रोक कर पानी की उपलब्धता बाधित करने की चेतावनी दी गई थी। जबकि देश में ही पानी की अनुपलब्धता की समस्या पूरे राष्ट्र में पिछले 10-15 साल से चल रही है। इसके मूल में नियमित रूप से वर्षा का न होना तथा सूखा पड़ते रहना तथा सरकार की गलत नीतियां भी हैं। पानी की उपलब्धता की स्थिति को देखते हुए यह लगने लगा है कि विश्वयुद्ध हो या न हो, पर हर गली-मोहल्ले में, शहर-शहर में, गांव-गांव में पानी के लिए 10-15 वर्ष में ही युद्ध होंगे और भाईचारे के साथ रह रहे पड़ोसी पानी के लिए आपस में लड़ेंगे।

वर्ष 1998 की एनडीए सरकार ने इस ओर अपनी रुचि प्रदर्शित की थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने सड़कों की भांति नदियों को जोड़ने की आवश्यकता व्यक्त करते हुए उपक्रम किये किन्तु अभी तक इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ी। कभी धन का अभाव, कभी राज्य सरकारों में सहमति नहीं बनने तो कभी स्वयंसेवी संगठनों और पर्यावरणविदों के एक वर्ग की आशंकाओं और विरोधों के चलते कुछ नहीं हुआ। अंततः 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र से पूछ ही लिया कि नदियों को जोड़ने के मामले पर सरकार क्या कर रही है। जहां तक इस मामले में पहल और परिणामों की बात है तो इस दिशा में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा अपने स्तर पर नर्मदा और शिप्रा नदी को जोड़ने से मालवा क्षेत्र के किसानों के चेहरों पर मुस्कान बढ़ गई थी।

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पानी को लेकर उनके समक्ष भी यक्ष प्रश्न खड़ा है कि कब तक पानी की आपूर्ति सहज ढंग से होती रहेगी। इन नीतियों का परिणाम ही रहा है कि राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में 10 से 15 फीट तक पानी नीचे चला गया है। इसके अन्य प्रमुख कारणों में हमारे द्वारा जल स्रोतों का भलीभांति रखरखाव न होना, नदी नालों पर अंधाधुंध बांध बनाना, चेकडैम बनाना तथा उनके निरंतर प्रवाह को बाधित कर उन्हें समाप्त कर देना एवं कुआं-तालाबों को पाटकर उन पर भूमाफिया द्वारा कब्जा कर लेना आदि है। सभी जानते हैं कि जल ही जीवन है। लेकिन इस दिशा में व्यक्ति, राज्य या सरकार की ओर से सहज रूप में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। जल स्रोत निरंतर समाप्त हो रहे हैं। भूगर्भ का जल निरंतर हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है। भारत में विश्व की आबादी का 18 फीसदी भाग निवास करता है, किंतु उसके लिए हमें विश्व में उपलब्ध पेयजल का मात्र 4 फीसदी हिस्सा ही मिल पाता है।

नीति आयोग के एक ताजा सर्वे के अनुसार भारत में 60 करोड़ आबादी भीषण जल संकट का सामना कर रही है। अपर्याप्त और प्रदूषित जल के उपभोग से भारत में हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यूनिसेफ द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण के अनुसार भारत में दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर जिस प्रकार पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं, उससे लगता है कि 2030 तक भारत के 21 महानगरों का जल पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और वहां पानी अन्य शहरों से लाकर उपलब्ध कराना होगा। जल से जुड़ी चुनौतियों को स्वीकार कर हम भारतीयों को संकल्पित होना होगा इन चुनौतियों एवं समस्याओं से जूझने के लिये।

-ललित गर्ग

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