चीन की ‘रेयर अर्थ मोनोपॉली’ को उसके दोस्त पाक ने ही दी चुनौती, रंगीन बक्सा दिखाकर ट्रंप को खुश किया

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देखा जाये तो दुनिया के रेयर अर्थ बाज़ार पर चीन का लगभग 60–65% नियंत्रण है और अमेरिका अपनी ज़रूरत का बड़ा हिस्सा चीन से ही आयात करता है। लेकिन हाल में बीजिंग ने “नियंत्रित निर्यात” नीति अपनाई है, जिससे अमेरिका को गंभीर रणनीतिक दबाव महसूस हो रहा है।

पाकिस्तान की राजनीति में हाल के दिनों में एक दिलचस्प मोड़ आया है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और आर्मी चीफ़ असीम मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाक़ात के दौरान उनको एक बॉक्स में रंगीन खनिज पत्थर और अयस्क दिखाए। इनमें बास्टनज़ाइट और मोनाज़ाइट जैसे खनिज माने जा रहे हैं, जिनसे सेरीयम, लैंथेनम और नियोडिमियम जैसे रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) प्राप्त होते हैं। यही वह तत्व हैं जिन पर आज की दुनिया की हाई-टेक इंडस्ट्री यानि स्मार्टफोन, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम और इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी आदि टिकी हुई हैं।

हम आपको बता दें कि पाकिस्तान लंबे समय से अपने "अनछुए खनिज भंडार" की बात करता आया है, ख़ासकर बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख़्वा में। इन खनिजों का वास्तविक व्यावसायिक मूल्य या भंडार का आकार अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन हाल में पाकिस्तान की सैन्य-नागरिक सत्ता ने अमेरिकी कंपनी US Strategic Metals (USSM) के साथ करार कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। बताया जा रहा है कि पहले चरण (2025–26) में आसानी से उपलब्ध तांबे व अन्य खनिजों का अमेरिका को निर्यात होगा। दूसरे चरण (2026–28) में पाकिस्तान में प्रोसेसिंग प्लांट्स और रिफाइनरी बनाने सहित टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगी। तीसरे चरण (2028 के बाद) में बड़े पैमाने पर खनन, ड्रिलिंग और 5–10 नए प्रोजेक्ट्स की शुरुआत होगी। बताया जा रहा है कि इस सौदे के शुरुआती निवेश का मूल्य लगभग 500 मिलियन डॉलर है।

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देखा जाये तो दुनिया के रेयर अर्थ बाज़ार पर चीन का लगभग 60–65% नियंत्रण है और अमेरिका अपनी ज़रूरत का बड़ा हिस्सा चीन से ही आयात करता है। लेकिन हाल में बीजिंग ने “नियंत्रित निर्यात” नीति अपनाई है, जिससे अमेरिका को गंभीर रणनीतिक दबाव महसूस हो रहा है। ऐसे में वॉशिंगटन अब वैकल्पिक स्रोत खोजने पर मजबूर है। पाकिस्तान के खनिज, भले अभी साबित नहीं हुए हों, लेकिन यदि वे व्यावसायिक रूप से उपयोगी निकले तो अमेरिका के लिए यह "गेम-चेंजर" हो सकता है।

यहाँ असली सवाल यही है कि पाकिस्तान के इस नए दांव का चीन के साथ उसके पुराने रिश्तों पर क्या असर होगा? हम आपको बता दें कि चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। यदि पाकिस्तान अमेरिकी कंपनी को रेयर अर्थ खनन का अधिकार देता है, तो यह चीन के लिए सीधे रणनीतिक झटका होगा। चीन हमेशा से पाकिस्तान का "ऑल-वेदर फ्रेंड" कहलाता रहा है। यदि पाकिस्तान अमेरिकी खेमे की ओर झुकता है, तो बीजिंग इसे रणनीतिक अविश्वास की तरह देख सकता है। चीन ने अब तक पाकिस्तान के खनिज संसाधनों में सीधी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, लेकिन अब उसे डर होगा कि अमेरिका पाकिस्तान को "रेयर अर्थ का विकल्प" बना सकता है।

हालाँकि पाकिस्तान की इस महत्वाकांक्षा के रास्ते में कई बाधाएँ भी हैं। जैसे बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख़्वा, जहाँ अधिकांश खनिज भंडार बताए जाते हैं, वह इलाके लगातार उग्रवाद और आतंकवाद से ग्रस्त हैं। वहाँ विदेशी निवेश और खनन संचालन आसान नहीं होगा। इसके अलावा, पाकिस्तान की सत्ता ढांचा अभी भी "हाइब्रिड" यानी सेना और सरकार की खींचतान में उलझा हुआ है। लंबे समय तक भरोसेमंद नीतियाँ लागू कर पाना कठिन होगा। साथ ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। रेयर अर्थ की खोज और प्रसंस्करण के लिए भारी तकनीकी और पूंजी निवेश चाहिए, जिसे बिना अमेरिकी मदद के अंजाम तक ले जाना मुश्किल होगा।

फिर भी यदि अमेरिका पाकिस्तान के खनिजों पर भरोसा करता है, तो चीन का “रेयर अर्थ दबाव” कमजोर होगा। भारत के लिए भी यह तथ्य महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में नई गर्माहट आएगी, जो क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन को प्रभावित कर सकती है। देखा जाये तो पाकिस्तान इस सौदे से आर्थिक सहारा चाहता है, लेकिन इससे वह चीन और अमेरिका के बीच रणनीतिक रस्साकशी का मैदान भी बन सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान का "रेयर अर्थ कार्ड" उसकी विदेश नीति में नया पन्ना खोल सकता है। अमेरिका के लिए यह एक संभावित अवसर है, लेकिन चीन के लिए यह खतरे की घंटी होगी। सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान अपने आंतरिक संकटों और सुरक्षा चुनौतियों से पार पाकर इस अवसर को वास्तविकता में बदल पाएगा?

फिलहाल इतना तय है कि इस छोटे से बॉक्स में दिखाए गए रंगीन पत्थरों ने वैश्विक राजनीति के मंच पर बड़ी हलचल पैदा कर दी है। यदि अमेरिका को पाकिस्तान से भरोसेमंद रेयर अर्थ सप्लाई मिल जाती है, तो सचमुच एशिया और विश्व की शक्ति संतुलन की तस्वीर बदल सकती है और चीन की "रेयर अर्थ मोनोपॉली" को पहली गंभीर चुनौती मिल सकती है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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