संस्कृत के खिलाफ जहर उगलने वाले दयानिधि मारन को पता होना चाहिए कि 'द्रविड़' भी संस्कृत शब्द है

Dayanidhi Maran
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द्रमुक नेताओं को यह भी समझना होगा कि तमिल गौरव की बात करने भर से काम नहीं चलेगा। यह देखना होगा कि तमिल गौरव बढ़ाने का काम सबसे ज्यादा किसने किया है। द्रमुक नेताओं को देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वास्तविक तमिल गौरव को बरकरार रखा है।

तमिलनाडु में सत्तारुढ़ द्रमुक के नेता लगातार सनातन धर्म का अपमान करते रहे हैं। इस पार्टी के नेता सड़क से लेकर संसद तक कभी हिंदुत्व के खिलाफ बोलते हैं तो कभी उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति करने लगते हैं। यही नहीं, इसी पार्टी के एक नेता ने तो मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के सामने ही अलगाववादी बयान देते हुए 'अलग तमिलनाडु' की मांग के बारे में विचार करने तक की बात कह डाली थी। द्रमुक की इस नफरत भरी राजनीति को आगे बढ़ाने का काम अब पूर्व केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन ने किया है। उन्होंने संसद के भीतर चिल्ला चिल्ला कर और जिस आवेश में संस्कृत भाषा पर हमला बोला उसे देखकर हर कोई हैरान रह गया क्योंकि दुनिया की सबसे प्राचीन और हर भाषा की जननी माने जाने वाली संस्कृत के खिलाफ ऐसी नफरत पहले किसी नेता ने नहीं उगली थी। हालांकि जैसे ही मारन ने यह हमला किया वैसे ही लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मारन पर तगड़ा पलटवार कर दिया था। वैसे यह हैरानी भरी बात है कि अपनी द्रविड़ पहचान बताने वाली अधिकांश द्रविड़ पार्टियाँ यह नहीं जानतीं कि "द्रविड़" तमिल शब्द नहीं है। यह एक संस्कृत शब्द है जिसकी अंग्रेजों द्वारा गलत व्याख्या 'बांटो और राज करो' की नीति के तहत की गयी थी।

द्रमुक नेताओं को यह भी समझना होगा कि तमिल गौरव की बात करने भर से काम नहीं चलेगा। यह देखना होगा कि तमिल गौरव बढ़ाने का काम सबसे ज्यादा किसने किया है। द्रमुक नेताओं को देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वास्तविक तमिल गौरव को बरकरार रखा है। उन्होंने नए संसद भवन में तमिल सेनगोल स्थापित किया और भारत मंडपम के सामने नटराज की प्रतिमा (भगवान शंकर की नटराज प्रतिमा, जो महान चोल राजाओं द्वारा निर्मित तंजावुर में मिली) स्थापित की। देखा जाये तो राष्ट्रीय स्तर पर तमिल गौरव को इससे अधिक मान्यता पहले कभी नहीं मिली थी। लेकिन इन पार्टियों को तमिल "सांस्कृतिक गौरव" में कोई दिलचस्पी नहीं है, वे तो बस "राजनीतिक विभाजन" में अधिक रुचि रखते हैं।

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संस्कृत पर होने वाले खर्च को पैसे की बर्बादी बताने वाले दयानिधि मारन को पता होना चाहिए कि भारत की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है। यह एक ऐसी भाषा भी है जिससे असंख्य भाषाएँ निकली हैं। यही नहीं आज के आधुनिक दौर में भी लगभग हर क्षेत्र में संस्कृत की प्रासंगिकता पूरी तरह बनी हुई है। संस्कृत को भाषाओं की जननी भी कहा जाता है। इस जननी ने सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी भाषाओं को जन्मा है। देश में तो कुछ राज्यों की यह आधिकारिक भाषा भी है। भारत के प्राचीन ग्रंथ और वेद पुराण आदि सभी संस्कृत में ही लिखे गये हैं। महाभारत काल में भी वैदिक संस्कृत का उपयोग किया जाता था।

जहां तक दयानिधि मारन के विवादित बयान की बात है तो आपको बता दें कि उन्होंने मंगलवार को लोकसभा में आरोप लगाया कि आरएसएस की विचारधारा के कारण लोकसभा की कार्यवाही का संस्कृत में अनुवाद करके करदाताओं का पैसा बर्बाद किया जा रहा है, जिस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पलटवार करते हुए कहा कि संस्कृत भारत की मूल भाषा रही है। बिरला ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मारन पर निशाना साधते हुए कहा, "आप किस देश में रह रहे हैं? यह भारत है। भारत की मूल भाषा संस्कृत रही है।"

दयानिधि मारन की ओर से संस्कृत पर की गयी अनुचित टिप्पणियों का मुद्दा अब राजनीतिक रूप से तूल ले चुका है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा की कार्यवाही का एक साथ अनुवाद उपलब्ध कराए जाने वाली भाषाओं में संस्कृत को शामिल करने की मारन द्वारा की गई आलोचना को "अनुचित" करार देते हुए साफ कहा है कि एक भाषा को बढ़ावा देने के लिए दूसरी भाषा को कमतर करने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रधान ने कहा है कि संस्कृत पर दयानिधि मारन की अनुचित टिप्पणी न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि भारत की भाषाई विरासत की बात आने पर द्रमुक के चुनिंदा आक्रोश, पाखंड और दुष्प्रचार को भी उजागर करती है। उनका कहना है कि दरअसल विभाजनकारी राजनीति में लिप्त होना करदाताओं के पैसे की वास्तविक बर्बादी है। यही नहीं, धर्मेंद्र प्रधान ने ओम बिरला की प्रशंसा करते हुए कहा है कि उन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच नफरत फैलाने और फर्जी विभाजन पैदा करने के इस प्रयास की उचित रूप से निंदा की है।

हम आपको बता दें कि यह सारा विवाद तब खड़ा हुआ था जब मंगलवार को प्रश्नकाल समाप्त होने के तुरंत बाद बिरला ने कहा कि उन्हें यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि छह और भाषाओं- बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू- को उन भाषाओं की सूची में शामिल कर लिया गया है, जिनमें सदस्यों के लिए एक साथ अनुवाद उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी और हिंदी के अलावा असमिया, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु में भी अनुवाद उपलब्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि ओम बिरला के वक्तव्य में संस्कृत शब्द को सुनते ही दयानिधि मारन का खून खौल उठा और वह आवेश में आ गये। दयानिधि मारन की यह अवस्था इस बात की जरूरत पर बल देती है कि उन्हें मन को शांति और तन को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाली संस्कृत भाषा का अध्ययन कराया जाये। 

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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