क्या इथेनॉल मिले पेट्रोल से गाड़ी खराब होती है? या Petrol लॉबी वाहन मालिकों को डरा रही है?

इथेनॉल क्यों ज़रूरी है। यदि इस पर चर्चा करें तो आपको बता दें कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 88% कच्चा तेल आयात करता है। इससे न सिर्फ खज़ाने पर भारी बोझ पड़ता है बल्कि वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव का भी सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
भारत की ऊर्जा नीति आज एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर खड़ी है जहाँ जैव-ईंधन (बायोफ्यूल) न सिर्फ प्रदूषण कम करने का विकल्प है, बल्कि यह आयात पर निर्भरता घटाकर देश की ऊर्जा सुरक्षा को भी मजबूत कर सकता है। सरकार द्वारा पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण (E-20) लागू किए जाने के बाद यह बहस और तेज़ हो गई है कि क्या यह कदम व्यावहारिक और सुरक्षित है। इसी संदर्भ में पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने उन दावों को “बकवास” करार दिया है जिनमें कहा गया था कि इथेनॉल मिश्रण से वाहनों के इंजन को नुकसान होता है।
इथेनॉल क्यों ज़रूरी है। यदि इस पर चर्चा करें तो आपको बता दें कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 88% कच्चा तेल आयात करता है। इससे न सिर्फ खज़ाने पर भारी बोझ पड़ता है बल्कि वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव का भी सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ऐसे में गन्ना, मक्का और अन्य अनाज से बनने वाला इथेनॉल एक सस्ता, घरेलू और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। हम आपको बता दें कि 2014 में जहाँ पेट्रोल में इथेनॉल की हिस्सेदारी मात्र 1.4% थी, वहीं आज यह बढ़कर 20% तक पहुँच गई है। यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत और हरित ऊर्जा संक्रमण (Green Transition) की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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हम आपको बता दें कि केपीएमजी के वार्षिक सम्मेलन एनरिच 2025 में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि इथेनॉल से इंजन खराब होने की सारी बातें “बीएस” हैं— यानी बकवास हैं। उन्होंने साफ किया कि केवल पुराने वाहनों में कुछ रबर के पुर्ज़े और गैस्केट बदलने की आवश्यकता हो सकती है, पर तकनीकी रूप से यह कोई बड़ी चुनौती नहीं है। ब्राज़ील जैसे देशों के अनुभव भी यही साबित करते हैं कि इथेनॉल मिश्रण न केवल सुरक्षित है बल्कि टिकाऊ विकल्प है।
हम आपको यह भी बता दें कि इस बहस का दूसरा पहलू है राजनीति। पिछले दिनों में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी पर आरोप लगाए गए कि उनकी परिवार-नियंत्रित कंपनी Cian Agro को इथेनॉल नीति से भारी लाभ हुआ है। कांग्रेस और कुछ सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों ने दावा किया कि कंपनी का टर्नओवर एक साल में ₹18 करोड़ से ₹723 करोड़ तक पहुँच गया। गडकरी ने इसे “राजनीतिक रूप से प्रेरित पेड कैंपेन” बताया। उनका कहना है कि इथेनॉल से जुड़े टेंडर और मूल्य निर्धारण का फैसला कैबिनेट स्तर पर होता है, न कि व्यक्तिगत मंत्रियों द्वारा। उन्होंने कहा कि देश में 450–500 इथेनॉल उत्पादक कंपनियाँ हैं, जिनमें उनकी कंपनी की हिस्सेदारी 0.5% से भी कम है। उन्होंने कहा कि इथेनॉल उत्पादन नीति उनकी कंपनी के सक्रिय होने से पहले ही लागू हो चुकी थी।
हम आपको बता दें कि गडकरी लंबे समय से वैकल्पिक ईंधन, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और हरित परिवहन व्यवस्था के समर्थक रहे हैं। इसलिए उनका इथेनॉल के पक्ष में बोलना उनके पुराने दृष्टिकोण के अनुरूप है। लेकिन उनकी स्वतंत्र छवि और लोकप्रियता के कारण वे विरोधियों के निशाने पर भी रहते हैं।
देखा जाये तो असल टकराव की जड़ है पेट्रोल लॉबी, जिसमें आयातक, रिफाइनर और बहुराष्ट्रीय तेल कंपनियाँ शामिल हैं, यह इथेनॉल को अपने लिए सीधा खतरा मान रही हैं। इथेनॉल के बढ़ते उपयोग का मतलब है कि पेट्रोल की खपत में कमी और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटेगी। यह उन समूहों के हितों पर सीधा आघात है, जिन्होंने दशकों तक तेल आयात से मुनाफा कमाया है। इसी कारण से यह लॉबी सोशल मीडिया पर यह नैरेटिव गढ़ रही है कि इथेनॉल मिश्रण से वाहनों का माइलेज घटेगा और इंजन खराब होगा। हालाँकि मंत्रालय ने पहले ही साफ किया है कि ई-20 पेट्रोल से माइलेज में केवल 1–2% (चारपहिया वाहनों) और 3–6% (दोपहिया/अन्य वाहनों) की कमी आती है, जो नगण्य है।
हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इथेनॉल मिश्रण पर दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस नीति में कोई गंभीर तकनीकी या कानूनी बाधा नहीं है। इससे सरकार को एक बड़ी राहत मिली और यह स्पष्ट हो गया कि नीति सही दिशा में है। दरअसल यह विवाद तकनीकी से अधिक राजनीतिक है। विपक्षी दलों के लिए गडकरी को निशाना बनाना सरकार की ऊर्जा नीति पर प्रश्नचिन्ह लगाने का आसान तरीका है। सोशल मीडिया पर चलाए गए पेड कैंपेन का मकसद था जनता के बीच भ्रम फैलाना और यह आभास देना कि इथेनॉल मिश्रण नीति कुछ व्यक्तियों के निजी लाभ के लिए लाई गई है। जबकि वास्तविकता यह है कि इथेनॉल मिश्रण नीति का लाभ किसानों, उपभोक्ताओं और देश की ऊर्जा सुरक्षा— सभी को होगा।
बहरहाल, भारत की ऊर्जा मांग अगले दो दशकों में दुनिया की औसत दर से तीन गुना बढ़ने वाली है और वैश्विक मांग में 25% बढ़ोतरी अकेले भारत से होगी। ऐसे में महंगे आयात पर निर्भर रहना आत्मघाती है। इथेनॉल भले ही संपूर्ण समाधान न हो, लेकिन यह भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक अहम ईंट है। इसके अलावा, हरदीप पुरी और नितिन गडकरी के स्पष्ट रुख यह संदेश देते हैं कि सरकार पीछे हटने वाली नहीं है। असली चुनौती यह है कि क्या भारत राजनीतिक हमलों और पेट्रोल लॉबी के दबाव से अपने ऊर्जा परिवर्तन कार्यक्रम को बचा पाएगा। यदि हाँ, तो इथेनॉल केवल एक ईंधन नहीं बल्कि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता का प्रतीक बन सकता है।
-नीरज कुमार दुबे
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