क्या जम्मू-कश्मीर की जनता ने 370 की बहाली के लिए वोट दिया है ?

DDC election results

गुपकार गठबंधन सर्वाधिक सीटें जीतने पर भले इतरा रहा हो लेकिन उसे यह भी देखना चाहिए कि सात दलों को मिलाकर यह नतीजे आये हैं। गुपकार में शामिल दल अलग-अलग वोट प्रतिशत और सीटों को देख लें तो उन्हें अपनी हकीकत समझ आ जायेगी।

जम्मू-कश्मीर जिला विकास परिषद चुनाव परिणामों को लेकर हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी पीठ थपथपा रहा है। भाजपा कह रही है कि वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, उसे सबसे ज्यादा सीटें और सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। भाजपा इस जीत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास संबंधी नीतियों की जीत बता रही है और कह रही है कि जनता ने गुपकार गठबंधन को खारिज कर दिया है। वहीं अगर गुपकार गठबंधन की बात करें तो उसका कहना है कि कश्मीर की जनता ने अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय को खारिज कर दिया है। गुपकार गठबंधन में शामिल नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने तो साफ कर दिया है कि हमारा चुनावी एजेंडा विकास था ही नहीं हमने तो अनुच्छेद 370 बहाल करने और जम्मू-कश्मीर का पुराना स्वरूप लौटाने के नाम पर जनता से वोट माँगा था।

इसे भी पढ़ें: डीडीसी चुनाव परिणाम को लेकर पी चिदंबरम का दावा, J&K के लोगों ने भाजपा को किया खारिज

डीडीसी चुनाव परिणामों का विश्लेषण करें तो पहले हमको यह जान लेना चाहिए कि गुपकार गठबंधन में कुल सात राजनीतिक दल शामिल हैं। जब इनको लगा कि भाजपा का मुकाबला अकेले नहीं किया जा सकता तो यह सभी दल एक साथ आ गये। पहले इन दलों का मकसद चुनावों का बहिष्कार करना था लेकिन इन्हें लगा कि ऐसा करना भाजपा के लिए मैदान खुला छोड़ देने जैसा होगा और एक बार कश्मीर घाटी में भाजपा के उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो गये तो पार्टी अपना आधार मजबूत कर लेगी। इसीलिए यह सारे दल एक बैनर तले आ गये। चुनाव प्रचार से ज्यादा इन दलों के नेताओं ने सहानुभूति बटोरने के लिए बार-बार आरोप लगाये कि उनके उम्मीदवारों को प्रचार नहीं करने दिया जा रहा, उनके उम्मीदवारों को गिरफ्तार किया जा रहा है, पार्टी के नेताओं को नजरबंद किया जा रहा है। जाहिर-सी बात है कि सहानुभूति का कार्ड कुछ हद तक चलाने में नेता कामयाब हो पाये हैं लेकिन अगर भाजपा और निर्दलीयों को मिले वोटों को मिला लिया जाये तो यह 52 प्रतिशत से अधिक होता है यानि जम्मू-कश्मीर की जनता ने गुपकार गठबंधन को खारिज कर दिया है। वोटों की बात करें तो गुपकार गठबंधन को कुल मिलाकर 3.94 लाख से अधिक वोट मिले हैं जबकि भाजपा को अकेले 4.87 लाख वोट मिले हैं और कांग्रेस को 1.39 लाख से अधिक और निर्दलीय उम्मीदवारों को 1.71 लाख वोट मिले। अब यदि राज्य में राज कर चुकीं नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस, इन तीनों पार्टियों को मिले कुल वोटों की संख्या को देख लें तो भाजपा इनसे ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रही है। यही नहीं 39 जो निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं उन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त था।

गुपकार गठबंधन सर्वाधिक सीटें जीतने पर भले इतरा रहा हो लेकिन उसे यह भी देखना चाहिए कि सात दलों को मिलाकर यह नतीजे आये हैं। गुपकार में शामिल दल अलग-अलग वोट प्रतिशत और सीटों को देख लें तो उन्हें अपनी हकीकत समझ आ जायेगी। गुपकार गठबंधन भले कह रहा हो कि हमारे एजेंडे को जनता ने चुना है लेकिन चुनावों के दौरान जनता ने कहीं भी 370 को हटाने का जिक्र नहीं किया। चुनावों की घोषणा से लेकर मतदान के आखिरी चरण तक जब-जब मतदाताओं के मन को टटोला गया तो उनका यही कहना था कि हम निर्वाचित प्रतिनिधि के लिए वोट कर रहे हैं, हम विकास के लिए वोट कर रहे हैं, हम अलगाववाद और आतंकवाद पर चोट करने के लिए वोट कर रहे हैं। कहीं भी किसी भी मतदाता ने 370 की बहाली के लिए वोट देने का जिक्र तक नहीं किया। गुपकार के नेताओं को देखना चाहिए कि लोकतंत्र की कितनी बड़ी जीत हुई है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के जमाने में 6-7 या 10 प्रतिशत मतदान होता था। डीडीसी चुनावों में कुलगाम, शोपियां, पुलवामा और सोपोर जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान किया जबकि 2018 के पंचायती चुनाव में इन इलाकों में महज 1.1 प्रतिशत मतदान हुआ था। लेकिन न्यूनतम प्रतिशत वाले मतदान के बल पर सांसद, विधायक बन जाने वाले नेताओं को यह नहीं दिखेगा कि कैसे सुरक्षित माहौल में आठ चरणों के डीडीसी चुनाव हुए। कैसे जनता ने निर्भीक होकर, भीषण ठंड के बावजूद लंबी-लंबी लाइनें लगाकर जम्मू-कश्मीर का भाग्य बदलने के लिए वोट डाला। 

भाजपा की बात करें तो उसने कश्मीर घाटी में अपना खाता खोल कर बड़ी कामयाबी हासिल की है। जम्मू में तो उसका प्रभाव पहले से था ही। लद्दाख में भी हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनाव भाजपा जीतने में सफल रही थी। इन चुनावों में भाजपा को वोट कितने मिलेंगे या उसे सीटें कितनी मिलती हैं इससे ज्यादा बड़ी परीक्षा इस बात की थी कि भाजपा के शासन में कश्मीर में कितने सुरक्षित माहौल में चुनाव हो पाते हैं, कितने निष्पक्ष चुनाव हो पाते हैं और भाजपा के राज में मतदान का प्रतिशत क्या रहता है?

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने और प्रदेश को दो केंद्र शासित प्रदेशों का स्वरूप प्रदान किये जाने के बाद हुए पहले चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए झटका बन कर सामने आये हैं। कांग्रेस यहां शुरू से ही असमंजस की स्थिति में दिखी। पहले उसने गुपकार गठबंधन में शामिल होना चाहा लेकिन जब भाजपा ने इस बात को देशभर में मुद्दा बनाया कि कांग्रेस बताये कि वह 370 की बहाली चाहती है या नहीं, तो पार्टी गुपकार गठबंधन से अलग हो गयी। कांग्रेस को 26 सीटों पर विजय मिली है लेकिन इसे पार्टी का भाग्य कहिये कि गुपकार गठबंधन जहां-जहां बहुमत हासिल करने से चूक गया है, उन सभी जिलों में कांग्रेस ने सीटें हासिल की हैं और ऐसे में डीडीसी के गठन में उसकी अहम भूमिका हो गयी है।

इसे भी पढ़ें: उमर अब्दुल्ला ने डीडीसी चुनाव के नतीजों को भाजपा के लिए आंख खोलने वाला बताया

बहरहाल, यह चुनाव परिणाम आगे के लिए भी काफी संकेत देते हैं। नया जम्मू-कश्मीर विकास की राह पर चल पड़ा है। जिला विकास परिषदों के गठन के बाद जम्मू-कश्मीर की कई समस्याओं का हल होने की उम्मीद है। चुनाव प्रचार में भाजपा ने जिस तरह का आक्रामक प्रचार किया उससे यह भी संकेत मिला कि कश्मीर की राजनीति में भाजपा अपना प्रभाव जमाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। हाल ही में घाटी में भाजपा के कई नेताओं को आतंक का शिकार होना पड़ा इसके बावजूद पार्टी के कार्यकर्ता और नेता बढ़े हैं और अब सीटें मिलने से उसके भी हौसले बुलंद हैं। उधर, एकजुट होकर गुपकार गठबंधन अधिकांश डीडीसी पर अपनी सत्ता जमाने के बाद भाजपा से मुकाबले के लिए नई ऊर्जा हासिल कर चुका है। देखना होगा कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति आने वाले समय में किस ओर बढ़ती है।

-नीरज कुमार दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़