किसी जाति या प्रांत से नहीं पूरे देश से सरोकार रखते थे बहुगुणा जी

Hemvati Nandan Bahuguna was a Congress Party leader and former Chief Minister of Uttar Pradesh
तरुण विजय । Apr 26 2018 12:34PM

गढ़वाल के निर्विवाद नायक और पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में गोविंद वल्लभ पंत के बाद दूसरे राष्ट्रीय नेता थे हेमवती नंदन बहुगुणा। मिलनसार, मन में ठेठ पहाड़ का रंग, विचार में समग्र देश का खाका।

गढ़वाल के निर्विवाद नायक और पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में गोविंद वल्लभ पंत के बाद दूसरे राष्ट्रीय नेता थे हेमवती नंदन बहुगुणा। मिलनसार, मन में ठेठ पहाड़ का रंग, विचार में समग्र देश का खाका। आज जो उत्तराखंड की राजनीति पहाड़ी-मैदानी, ठाकुर-ब्राह्मण में ध्रुवीकृत है। बहुगुणा जी के समय उत्तराखंड नहीं बना था, हां, उत्तराखंड की सांस्कृतिक प्रभा जीवंत थी- देश के विभिन्न भाषा-भाषी जाति-सम्प्रदाय के लोग सदियों से उत्तराखंड की यात्रा चार धाम दर्शन करते आए हैं- सो उत्तराखंड का मन और मिजाज हमेशा परिधियों से परे रहा।

उन्होंने अपने आसपास, अपने दायरे में, दायरे से बाहर कभी अहसास नहीं होने दिया कि वे किस जाति या प्रान्तीयता से सरोकार रखते हैं। पूरा देश उनका सरोकार था, और उनकी जीत सिवाय भारतीयता के और कुछ नहीं थी।

पान्चजन्य के यशस्वी सम्पादक श्री भानु प्रताप शुक्ल की उनसे अच्छी मित्रता थी। मैं सितम्बर 1979 में पान्चजन्य में आया और संभवतः 1980 के प्रारंभ में भानु जी ने मुझे बहुगुणा जी का साक्षात्कार लेने भेजा। लगभग 45 मिनट का इंटरव्यू था। तब कैसेट वाले टेपरिकार्डर होते थे। दफ्तर लौटकर इंटरव्यू लिखने लगे तो होश उड़ गए। गलती से रिकार्ड का बटन दबा पर उसके साथ प्ले भी दबाना था- सो रह गया। कैसेट ब्लैंक थी। नयी-नयी नौकरी थी, भानु जी कठोर अनुशासन वाले सम्पादक थे। उनसे कहने का साहस न था। मैंने बहुगुणा जी को वापस फोन लगाया- क्षमा मांगी और कहा- प्लीज मदद कर दीजिए। मैंने नोट्स भी नहीं लिए हैं। बहुगुणा जी फोन पर खूब हंसे, फिर बोले, तुरंत आ जाओ। वह सारा इंटरव्यू दुबारा हुआ- वे हर प्रश्न का हू ब हू वही उत्तर देते रहे। वह छपा और काफी चर्चित रहा। लेकिन इस इंटरव्यू से बहुगुणा जी का सहृदय, निश्छल और निरहंकारी हृदय भी उजागर हुआ।

वे मिट्टी से जुड़े समाजवादी विचार के नेता थे। उनका गरीब, किसान की ओर ज्यादा झुकाव था। कहते हैं एक कार्यक्रम में तत्कालीन विशाल प्रसार और प्रभाव वाले 'ब्लिट्ज' के सम्पादक ने उन्हें घर पर भोजन के लिए बुलाया। उसके बाद कार्यक्रम में उनकी इतनी प्रशंसा की कि उन्हें प्रधानमंत्री लायक कुशल राजनेता घोषित कर दिया।

बस, इंदिरा जी असुरक्षित महसूस करने लगीं। अपने दरबारी यशपाल कपूर को नजर रखने के लिए कहा। पर बहुगुणा जी ने यशपाल कपूर को घास भी नहीं डाली।

बहुगुणा जी का मन भारतीय था। वे तानाशाही बर्दाश्त नहीं कर सके- कांग्रेस छोड़ी- बाबू जगजीवन राम के साथ सिटीजन्स फार डेमोक्रेसी (सीएफडी) के सर्जक बने। जनता सरकार में मंत्री रहे। फिर इंदिरा जी की अनुनय विनय के बाद कांग्रेस में आए। यदि वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री होते तो आज की स्थिति पिछड़ेपन की न देखनी पड़ती।

बहुगुणा जी के विराट व्यक्तित्व ने उत्तराखंड, विशेषकर गढ़वाल को एक पहचान तथा स्वाभिमान दिया। उनकी जन्मशती पर उनको कोटि-कोटि प्रणाम।

-तरुण विजय

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