जो राम का नहीं, वह हमारे काम का नहीं, इसके बिना सब व्यर्थ

Lord Rama followers are good for society
तरुण विजय । Mar 17 2018 1:43PM

अयोध्या आंदोलन का पहला हुतात्मा कौन था? कितने कार सेवक शहीद हुए? उनके नाम क्या हैं? यदि न बता पाएं तो आश्चर्य नहीं। वे वोट नहीं, चुनावी गणित का हिस्सा नहीं, उनकी मूर्ति बनवाकर कोई राजनीतिक लाभ होने वाला नहीं, वे तो बस ''थे''।

जिन्होंने रामजन्मभूमि आंदोलन अपनी आंखों से देखा वे भूल नहीं सकते कि हिंदू नामधारियों की सरकार में सिर्फ वोट और चुनावी जीत के लिए खेतों को श्मशान में और शहरों को वीरान में बदल दिया गया था। अर्थी ले जाने वाले राम नाम सत्य बोलें तो उन पर भी पाबंदी। सब्जी मंडी को ही जेल बना दिया इतने लोग और व्यवस्था कम। तब आचार्य विष्णु कांत शास्त्री जी ने कहा- 'देखो राम लला का खेल, सब्जी मंडल बन गयी जेल।' अशोक जी सिंहल पांचजन्य संवाददाता का कार्ड बनवाकर अयोध्या जा पाए और वैसे ही उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक तथा विश्व हिंदू परिषद के अग्रणी नेता श्रीश चन्द्र दीक्षित।

पर आज कोई बता दे कि अयोध्या आंदोलन का पहला हुतात्मा कौन था? कितने कार सेवक शहीद हुए? उनके नाम क्या हैं? यदि न बता पाएं तो आश्चर्य नहीं। वे वोट नहीं, चुनावी गणित का हिस्सा नहीं, उनकी मूर्ति बनवाकर कोई राजनीतिक लाभ होने वाला नहीं, वे तो बस 'थे'।

गोधरा में जो 59 हिंदू स्त्री-पुरुष बच्चे जिंदा जला दिए गए, उसे 'ऐसा होना स्वाभाविक था' कहा गया था, वे कारसेवक थे अयोध्या से लौट रहे थे।

आज कारसेवक शब्द का उच्चारण भी शायद आप न सुन पाएं।

रामजी से छल करके कोई सुख नहीं पा सकता। कुछ क्षण जरूर जातिवादी नेताओं की कृपा से अच्छे बीत जाएं भले ही। जिस मधुकर उपाध्याय कमिश्नर फैजाबाद और सुभाष जोशी, एस.एस.पी ने कारसेवकों पर औरंगजेबी जुल्म ढाए, गोलियां बरसाईं जिनको 'न्याय' दिलाने की कसमें खाई गयीं- अयोध्या के हत्यारों को माफ नहीं करेंगे। लेकिन वे कसमें भुला दी गयीं और इन दोनों को बाद में उत्तराखंड में पदोन्नतियां मिलीं। जो कारसेवक मर गए उनको याद करना, हमें आज भी थोड़ा व्यर्थ, 'थोड़ा टाल दिया जाए तो अच्छा होगा' जैसा काम लगता है। ठेलों पर लाद कर कारसेवकों की लाशें सरयू जी में बहाई गयीं थीं। पर है कोई जो कहे कि इस कांड की जांच होनी चाहिए?

अयोध्या राम मंदिर ने देश की हवा, पानी और मिट्टी का तेवर बदल दिया था। उसके पीछे श्री राम के प्रति कोटि कोटि भारतीयों की अनन्य भक्ति और श्रद्धा है। उसे जो चुनावी शतरंज का हिस्सा बनाए उससे बढ़कर पातकी कोई हो नहीं सकता। गांव, शहर, खेत, खलिहान, देश विदेश, नेता अभिनेता, ग्रामीण, गृहिणी, बाल, वृद्ध- अगर आप रामजी के नहीं, तो आप भारत के नहीं।

सत्ता कैसे व्यक्ति को बदलती है इसे रामभक्त जानते हैं। शपथ के लिए राष्ट्रपति भवन की सीढ़ियां चढ़ते लोग और शपथ के बाद सीढ़ियों पर उतरते लोग कितने भिन्न हो जाते हैं। राम आंदोलन का पहला शहीद तथाकथित उच्च जाति का नहीं था। पर गोलियां चलाने वाला और तद्नंतर उसे पदोन्नति देने वाला अवश्य ही उस वर्ग से था। जो लोग समता, समरसता की बात करते हैं वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि यदि जाति के जंगल में रहे तो हिंदू को खो देंगे। यदि हिंदू को थामा तो जाति स्वतः विलीन हो जाएगी। अयोध्या आंदोलन ने जाति को राम नाम में तिरोहित कर दिया था।

जो राजनीति के जादूगर हैं वे समय के प्रहार को भूल जाते हैं। जाति, धन और 'मेरे से तुम्हारी नजदीकी' इतना भर योग्यता की कसौटी बन जाता है। उन्हें अयोध्या, काशी, मथुरा यानी राम, शिव और कृष्ण के बारे में राम मनोहर लोहिया का लम्बा निबंध- 'भारत के तीन स्वप्न' पढ़ना चाहिए। राम, कृष्ण और शिव के बिना भारत के विकास का स्वप्न क्या संभव है?

कोई तो वजह होगी कि भगवा वस्त्रधारी योगी की मांग केरल से त्रिपुरा और गुजरात से बंगाल तक होने लगी है? कोई तो वजह होगी कि श्रीराम का नाम पुनः अयोध्या की ओर चलने का आह्वान करता दिखता है। कोई तो वजह होगी कि हर संकट, हर विपत्ति, हर आसन्न पराजय पर विजय के लिए पुनः रामशरण जाने की हूक उठती है।

यही हूक, यही आह्वान, यही हृदय की न दबायी जा सकने वाली भावना अयोध्या है।

स्वप्न है अयोध्या जी देश की सर्वश्रेष्ठ, अंतरराष्ट्रीय नगरी के रूप में पुष्पित पल्लवित हो। स्वप्न है सरयू जी पुनः देश के जन-जन को अपनी ओर खीचें और देश का हर बड़ा नगर सीधे-सीधे अयोध्या जी से जुड़े। स्वप्न है देश की सबसे तेज गाड़ियां, देश का श्रेष्ठतम अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, देश का महान विराट राम कथा का सचित्र संकुल-अंकोरवाट की भांति अयोध्या जी में दिखे। स्वप्न है देश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नारी-सम्मान एवं सशक्तिकरण की गूंज से अनुनादित वातावरण अयोध्या जी में बने। स्वप्न है भारत की संसद का एक विशाल, विराट संयुक्त अधिवेशन अयोध्या जी में हो- भव्य राम मंदिर निर्माण के उद्घाटन को भारत का प्रणाम निवेदित करते हुए। ताकि अंग्रेजों की बनाई इमारतें, अंग्रेजों के बनाए रीति-रिवाज शिष्टाचार प्रोटोकाल नियम कायदों के ढांचे से बाहर संसदीय अधिवेशन के माध्यम से भारत के कोटि कोटि जन का प्रणाम श्री राम के चरणों तक पहुंचे।

यह हो, तो तुम्हारी सड़कें, पानी, राजमार्ग, ऊर्जा, वगैरह और वगैरह सब सार्थक हो उठेंगी।

राष्ट्र चुनावी रणनीति और सड़क पानी बिजली से परे का आत्मा के उन्मूलन का भी विषय होता है। उसे राष्ट्र का मन कहते हैं। जिसने मन को थाम लिया, उसने ब्रह्मा को स्वयं में समा लिया। अयोध्या भारत है- यह कभी भूलना मत। और राम से द्रोह करने वालों को क्षमा करना मत।

जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि सनेही। जो राम का नहीं, वह हमारे काम का नहीं। इसके बिना सब कुछ व्यर्थ है।

- तरुण विजय

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