अन्नदाता की खुशहाली के लिए गैरसरकारी संगठनों को भी निभानी होगी बड़ी भूमिका

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ANI

इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनावों के समय सभी राजनीतिक दलों के केन्द्र में किसान ही रहता है और किसानों के लिए लोकलुभावन वादों की बरसात कर दी जाती है पर कभी इस बात को गंभीरता से नहीं समझा गया कि किसान का भला कर्ज माफी से नहीं हो सकता।

केन्द्र सरकार द्वारा विकसित कृषि संकल्प अभियान के माध्यम से जिस तरह से देश के कोने कोने में किसानों तक पहुंचने का प्रयास किया गया है और जिस तरह से खेती और उससे जुड़ी किसानों से संबंधित जानकारी को साझा किया गया है यह इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि अन्नदाता की खुशहाली में ही देष की खुषहाली संभव है। सरकार के साथ ही खेती किसानी क्षेत्र में जुड़े गैरसरकारी संगठन भी आगे आते हैं तो अन्नदाता की खुशहाली की और अधिक तेजी से राह प्रशस्त होगी। हांलाकि मिशन फार्मर साइंटिस्ट परिववार जैसे संगठन नवाचारी किसानों के नवाचारों को पहचान दिलाने और किसानों के हित में लगातार प्रयासरत है। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनावों के समय सभी राजनीतिक दलों के केन्द्र में किसान ही रहता है और किसानों के लिए लोकलुभावन वादों की बरसात कर दी जाती है पर कभी इस बात को गंभीरता से नहीं समझा गया कि किसान का भला कर्ज माफी से नहीं हो सकता। किसान का भला चंद मिनी किट वितरण से नहीं हो सकता। दरअसल अन्नदाता और खेती किसानी का भला किसान के खेत को ही प्रयोगशाला बनाने से संभव होगा तो किसानों को उनकी मेहनत का पूरा पैसा दिलाने से संभव होगा। कैसी बिड़म्बना है कि छोटी से छोटी वस्तु का  उत्पादन कर्ता अपनी वस्तु को बेचने का दाम खुद तय करता है वहीं दूसरी और अन्नदाता जो अपने खून पसीने से सबका पेट ही नहीं भरता बल्कि इससे भी अधिक यह कि देश की अर्थ व्यवस्था को गति देने का प्रमुख कारक भी है। इस सबके बावजूद किसान को अपनी उपज ओने पोने भावों में बेचने को मजबूर होना पड़ता है। उसकी मेहनत का फल बिचौलियों को चला जाता है। टमाटर इसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जा सकता है जो कभी अन्नदाता को रुलाता है तो कभी आमजन को पर कभी भी किसी मण्डी के आड़तियें को रुलाते नहीं देखा होगा। यहां तक देखने को मिलता है कि अन्नदाता को लागत तो दूर मण्डी में ले जाने तक के खर्च की राषि भी नहीं मिल पाती है। टमाटर तो एक उदाहरण मात्र है। 

इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले 11 साल में किसानों के हित में बड़े और लाभकारी निर्णय किये गये हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि या फसल बीमा जैसी योजनाएं और फसल की बुवाई से पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा निश्चित रुप से सराहनीय पहल है। हालिया 15 दिन का विकसित कृषि संकल्प अभियान को भी निश्चित रुप से सराहनीय पहल माना जा सकता है। इस सबके बीच सवाल यह भी उठता है कि देष में बहुत से प्रगतिशील और अपने बल बूते पर खेती के क्षेत्र में नवाचारों को फलीभूत कर रहे हैं उनको प्रोत्साहित करने के प्रयास भी होेने चाहिए। हांलाकि कृषि पत्रकार और मिशन फार्मर साइंटिस्ट परिवार के माध्यम से लगातार ऐसे कर्मयोगी किसानों को आगे लाने, प्रोत्साहित करने और उनके प्रयोग को अन्य किसानों के सामने के समग्र प्रयास डॉ. महेन्द्र मधुप जैसे कर्मयोगी द्वारा लगातार किये जा रहे हैं। डॉ. मधुप 2017 से इस मॉडल को किसान वैज्ञानिकों की जीवनशैली में उतारकर, देश-विदेश में उनकी पहचान को विस्तारित करने में जुटे हैं, इसे सकारात्मक पहल माना जा सकता है। देश का मीडिया भी इसे लेकर गंभीर है और यही कारण है कि प्रमुख मीडिया ग्रुप किसानों से संबंधित जानकारियों का समावेश करते हुए नियतकालीन परिषिष्ठ प्रकाशित कर रहे हैं। डॉ. मधुप जैसे ही खेती किसानी के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर सरकारी को भी आगे आना चाहिए और जो तथाकथित किसान हितेशी बने हुए हैं उन्हें भी ऐसे कर्मयोगी किसानों के नवाचारों को प्रमुखता देनी चाहिए।

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कोरोना काल का उदाहरण हमारे सामने हैं। जब समूचे  विश्व में सब कुछ बंद हो गया तो सबसे बड़ा सहारा कृषि क्षेत्र ही बनकर आया। किसानों की मेहनत से भरे अन्न धन इस संकट के समय में बड़ा सहारा बने। सरकारें अपने नागरिकों को आसानी से खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकी। आज भी देश दुुनिया में खाद्य संकट से जूझने में अन्नदाता की मेहनत ही काम आ रही है। कर्जमाफी की यहां इसलिए चर्चा करना जरुरी हो जाता है कि कर्जमाफी की राषि जितनी राशि के कृषि इनपुट यानी कि खाद-बीज कीटनाशक किसानों को उपलब्ध करा दी जाए तो इस राशि का वास्तव में खेती किसानी क्षेत्र में उत्पादकता के रुप में उपयोग हो सकेगा। कर्ज माफी को इसतरह से समझना होगा कि किसान भी यह समझने लगा है कि चुनाव आने पर कर्ज तो माफ होना ही है  ऐसे में कर्ज चुकाना ही क्यों। दूसरा यह कि सरकार की कर्ज माफी का बोझ तो उठाना ही पड़ता है पर फिर भी वह ना तो किसानों को ही संतुष्ट कर पाती है और ना ही यह राशि किसानों के काम आ पाती है। ऐसे में सरकार को ब्याज अनुदान या इस तरह के अनुदान पर होने वाले व्यय को किसानों को इनुपट के रुप में उपलब्ध कराने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इससे एक तो इनपुट खेती में ही काम आयेगा और इनपुट की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया तो खेती किसानी में उत्पादकता बढेगी और इसका लाभ देषको ही प्राप्त होगा। देश में अन्नधन के भण्डार भरेंगे। आयात पर निर्भरता कम होगी और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।

सरकार के 15 दिवसीय संवाद को अच्छी पहल माना जा सकता है और इस तरह के अभियान खरीफ और रवी दोनों ही फसलों की बुवाई से पहले चलाया जाएं तो निश्चित रुप से देश को लाभ होगा। इसके साथ ही इस तरह के अभियान के दौरान खेती क्षेत्र की अनुदान राशि के एक बड़े हिस्से को इनपुट वितरण के रुप में उपयोग होगा तो यह किसानों के लिए वास्तविक लाभकारी होगा। कृषि क्षेत्र से जुड़े मिशन फार्मर साइंटिस्ट परिवार जैसे संगठनों को भी इससे जोड़ा जाना चाहिए। इसके साथ ही क्षेत्र के नवाचारी किसानों को प्रोत्साहित, सम्मानित और उनके अनुभवों को साझा करने के समन्वित प्रयास किये जाने चाहिए। यहां तक कि कृषक भ्रमण कार्यक्रमों में स्थानीय नवाचारी किसानों के खेत को बतौर प्रयोगशाला भ्रमण कराया जाना चाहिए ताकि एक दूसरे के अनुभवों को साझा करने के साथ ही नवाचारी किसानों को भी प्रोत्साहन मिल सकेगा। 

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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