पूरी दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही है मुस्लिम आबादी, ईसाई घट रहे, हिंदू आबादी स्थिर

Muslim Religion
ANI

हम आपको बता दें कि प्यू रिसर्च सेंटर की एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट 'How the Global Religious Landscape Changed From 2010 to 2020' ने वैश्विक धार्मिक जनसांख्यिकी में हो रहे व्यापक परिवर्तनों की तस्वीर सामने रखी है।

अक्सर कहा जाता है कि भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या में तेज वृद्धि हो रही है लेकिन अब जो आंकड़े सामने आये हैं वह दर्शा रहे हैं कि पूरी दुनिया में मुस्लिम आबादी में सबसे तेज वृद्धि हो रही है। आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि अगर यही रुझान जारी रहे तो 2050 तक मुस्लिम और ईसाई आबादी लगभग बराबर हो सकती है और 2070 के बाद मुस्लिम जनसंख्या ईसाइयों से आगे निकल सकती है। यह परिवर्तन न केवल सांख्यिकीय रूप से बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से भी पूरे विश्व को प्रभावित करेगा।

हम आपको बता दें कि प्यू रिसर्च सेंटर की एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट “How the Global Religious Landscape Changed From 2010 to 2020” ने वैश्विक धार्मिक जनसांख्यिकी में हो रहे व्यापक परिवर्तनों की तस्वीर सामने रखी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला धार्मिक समुदाय मुस्लिम समुदाय है। रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से 2020 के बीच मुस्लिमों की संख्या में हुई वृद्धि ने अन्य सभी धर्मों को पीछे छोड़ दिया है।

रिपोर्ट कहती है कि 2010 से 2020 के बीच मुस्लिमों की संख्या 347 मिलियन (34.7 करोड़) बढ़ी, जोकि अन्य सभी धर्मों की सम्मिलित वृद्धि से भी अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 23.9% से बढ़कर 25.6% हो गया। यह वृद्धि मुख्य रूप से युवा आबादी और उच्च प्रजनन दर के कारण हुई। रिपोर्ट कहती है कि 2010 में ईसाई वैश्विक आबादी का 30.6% थे, जो 2020 में घटकर 28.8% रह गए। इस गिरावट का मुख्य कारण था धार्मिक त्याग, जिसमें खासतौर पर लोग पश्चिमी देशों में ईसाई धर्म को छोड़ रहे हैं।

वहीं रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक हिंदू आबादी लगभग 1.2 अरब हो गई है (2010 में 1.1 अरब थी), यानी 12% की वृद्धि हुई है। हालांकि हिंदुओं का वैश्विक प्रतिशत 15% से मामूली घटकर 14.9% हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदुओं की प्रजनन दर वैश्विक औसत के अनुरूप है और धर्मांतरण की दर भी बहुत कम है। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक दुनिया के 95% हिंदू भारत में रहते हैं।

इसके अलावा, ‘नो-रिलिजन’ वर्ग में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। धार्मिक रूप से असंलग्न लोगों की संख्या 270 मिलियन बढ़कर 1.9 अरब हो गई है और इनका वैश्विक हिस्सा 23.3% से बढ़कर 24.2% हो गया है। वहीं प्रमुख धर्मों में केवल बौद्ध धर्म की आबादी 2010 की तुलना में 2020 में कम रही। 2010 में बौद्ध वैश्विक जनसंख्या का 4.9% थे, पर 2020 में यह घट गया।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हिंदुओं की आबादी 2010 के 80% से घटकर 2020 में 79% हो गई है। वहीं भारत में मुस्लिम आबादी 2010 के 14.3% से बढ़कर 2020 में 15.2% हो गई है। यह वृद्धि भी मुख्य रूप से प्रजनन दर और युवा जनसंख्या के कारण है, न कि धर्मांतरण से। हालांकि भारत में मुस्लिमों की यह वृद्धि अन्य दक्षिण एशियाई देशों जैसे पाकिस्तान या बांग्लादेश की तुलना में धीमी है, पर फिर भी यह एक महत्वपूर्ण सांख्यिकीय परिवर्तन है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 में दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी में से 35% मुसलमान 15 वर्ष से कम आयु के थे। उल्लेखनीय है कि इतनी युवा जनसंख्या होने के कारण जन्म दर अधिक बनी रहती है, जिससे आबादी तेजी से बढ़ती है। साथ ही मुस्लिम महिलाओं की औसत प्रजनन दर अन्य धार्मिक समुदायों की तुलना में अधिक है। इससे मुस्लिम जनसंख्या की प्राकृतिक विकास दर भी अधिक होती है। साथ ही, रिपोर्ट कहती है कि मुस्लिमों में धर्म छोड़ने वालों की संख्या और अन्य धर्मों से इस्लाम अपनाने वालों की संख्या लगभग बराबर है। यानी धार्मिक स्विचिंग का असर नगण्य है, जिससे शुद्ध जनसंख्या वृद्धि केवल जन्म के कारण होती है। इसके अलावा, रिपोर्ट के मुताबिक केवल 1% वयस्क ही अपने जन्मजात धर्म से अलग होकर अन्य धर्म अपनाते हैं, विशेष रूप से हिंदू और मुसलमान, इन दोनों समुदायों में धर्म-परिवर्तन की दर अत्यंत कम है।

बहरहाल, Pew Research की यह रिपोर्ट दर्शाती है कि आने वाले दशकों में विश्व की धार्मिक जनसंख्या संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं क्योंकि मुस्लिम आबादी में तेज़ वृद्धि जारी रहने की संभावना है। इसके अलावा, ईसाई समुदाय के समक्ष चुनौतियाँ बढ़ेंगी, खासकर यूरोप और अमेरिका में। रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू समुदाय वैश्विक रूप से स्थिर रहेगा, परंतु भारत के भीतर उसके अनुपात में धीरे-धीरे गिरावट संभव है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह रिपोर्ट न केवल जनसांख्यिकी विश्लेषण, बल्कि नीति-निर्धारण, शिक्षा, सांस्कृतिक संरक्षण और धार्मिक सहिष्णुता के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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