दक्षिण का द्वार भेदने की राधाकृष्णन कोशिश

CP Radhakrishnan
ANI

नरेंद्र मोदी के उभार के पहले तक बीजेपी की छवि ब्राह्मण-बनिया समुदायों की बुनियाद पर टिकी उत्तर भारतीय पार्टी की रही है। मोदी की राजनीतिक छाया में बीजेपी ने इस छवि को काफी हद तक तोड़ते हुए अखिल भारतीय राजनीतिक दल बन चुकी है।

जगदीप धनखड़ के औचक इस्तीफे से खाली हुए उपराष्ट्रपति पद को नया चेहरा मिल गया है। दक्षिण बनाम दक्षिण की जंग में तमिलनाडु बीजेपी का चेहरा रहे सीपी राधाकृष्णन देश के नए उपराष्ट्रपति होंगे। झारखंड की धरती से द्रौपदी मुर्मू की तरह उनका भी नाता रहा है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि भगवान बिरसा मुंडा की धरती झारखंड के सर्वोच्च पद पर रही शख्सियतों के लिए सुनहरा दौर चल रहा है। झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू देश के शीर्ष पर तीन साल पहले से ही काबिज हैं। देश के निर्वाचित उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन भी झारखंड के संवैधानिक प्रमुख के पद की शोभा बढ़ा चुके हैं। राधाकृष्णन तमिलनाडु की तीसरी शख्सियत हैं, जो उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने में कामयाब हुए हैं। इसके पहले तमिलनाडु के सर्वपल्ली राधाकृष्णन और आर वेंकटरमण उपराष्ट्रपति रह चुके हैं।

  

नरेंद्र मोदी के उभार के पहले तक बीजेपी की छवि ब्राह्मण-बनिया समुदायों की बुनियाद पर टिकी उत्तर भारतीय पार्टी की रही है। मोदी की राजनीतिक छाया में बीजेपी ने इस छवि को काफी हद तक तोड़ते हुए अखिल भारतीय राजनीतिक दल बन चुकी है। इसके बावजूद तमिलनाडु, केरल, पंजाब जैसे राज्यों में बीजेपी प्रभावी नहीं बन पाई है। इनमें भी तमिलनाडु पार्टी के लिए अब भी प्रश्न प्रदेश बना हुआ है। पूर्व अधिकारी और तेज-तर्रार नेता अन्नामलाई के आक्रामक अभियान के चलते राज्य में पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थक आधार दहाई के आंकड़े में पहुंच चुका है। बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब साढ़े ग्यारह प्रतिशत और गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ करीब बीस प्रतिशत वोट मिला था। बीजेपी ही क्यों, राज्य में राजनीतिक और चुनावी कामयाबी हासिल करने वाले किसी भी दल के लिए इतना वोट नाकाफी है। शायद यही वजह है कि बीजेपी तमिलनाडु में अपना समर्थक आधार बढ़ाने के लिए प्रयोग-दर-प्रयोग कर रही है। सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना और उन्हें चुनाव जिताना उसी प्रयोग का विस्तार कहा जा सकता है। 

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सीपी राधाकृष्णन के सामने उपराष्ट्रपति के रूप में कुछ चुनौतियां जरूर रहेंगी। राधाकृष्णन कामचलाऊ हिंदी समझ तो लेते हैं, दो-एक लाइनें बोल भी लेते हैं। उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन की जिम्मेदारी राज्यसभा की कार्यवाही चलाना होगी। राज्यसभा में ज्यादातर सांसद हिंदीभाषी हैं और वे अपनी बात हिंदी में ही रखते हैं, हंगामा भी हिंदी में करते हैं और बहसें भी हिंदी में ही करते हैं। राधाकृष्णन को इन पर पार पाने के लिए मेहनत करनी होगी। वैसे वे कहते रहे हैं कि राजनीति में अखिल भारतीय छवि बनाने के लिए हिंदी बोलना जरूरी है। वे तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति की तरह हिंदी के विरोधी नहीं है। वे हिंदी सीखना भी चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब उन्हें कामचलाऊ से कुछ ज्यादा हिंदी तो सीखनी ही पड़ेगी। 

मोदी और शाह की जोड़ी ने तमिलनाडु को साधने के लिए रणनीतिक तौर पर खूब कोशिशें की हैं। संसद के नए भवन में तमिल राजदंड के प्रतीक सेंगोल की स्थापना हो या फिर वाराणसी में तमिल-काशी संगम का आयोजन हो, तमिल जनमानस तक मोदी और बीजेपी की बैठ बढ़ाने की कोशिश का ही प्रतीक है। अक्टूबर 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत का दौरा किया था। उस वक्त जिनपिंग का मोदी ने तमिलनाडु के खूबसूरत पर्यटक स्थल महाबलिपुरम में स्वागत किया था। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल महाबलिपुरम तमिलनाडु के पल्लव राजवंश के दौरान विकसित भारतीय कला का प्रतीक है। इस मुलाकात को भी तमिलनाडु की जनता को साधने की बीजेपी और मोदी की कोशिश के रूप में देखा गया था। प्रधानमंत्री मोदी का अरियलूर जिले के गंगैकोंड चोलपुरम का दौरा हो या यहां के नजदीक स्थित बृहदीश्वर मंदिर में पूजा अर्चना हो, सबका संदेश एक ही है, तमिलनाडु के दिलों में अपनी पैठ बनाना। ध्यान देने की बात यह है कि तमिलनाडु का चोल राजवंश बहुत प्रभावी रहा है। ग्यारहवीं सदी से लेकर तेरहवीं सदी तक गंगैकोंड चोलपुरम् चोल वंश की राजधानी रहा। 

सीपी राधाकृष्णन् तमिलनाडु में बीजेपी का बड़ा चेहरा रहे हैं। 1998 और 1999 में कोयंबटूर से बीजेपी के सांसद रहे सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु में तमिल मोदी के तौर पर भी प्रसिद्ध हैं। इस नाते तमिलनाडु कह सकता है कि देश के शीर्ष पदों पर दो-दो मोदी हैं। राधाकृष्णन राज्य में पिछड़े वर्ग में शामिल गौंडर जाति से आते हैं। इस जाति का विस्तार विशेष रूप से तमिलनाडु के पश्चिमी इलाके में है। दिलचस्प यह है कि इस जाति के वोटर कन्नड़ ब्राह्मण महिला जे जयललिता की अन्नाद्रमुक मुनेत्र कषगम के समर्थक माने जाते हैं। यह बात और है कि अन्नाद्रमुक की अगुआई कर रहे ई पलानिसामी और बीजेपी के फायरब्रांड नेता अन्नामलाई भी इसी बिरादरी के हैं। इस लिहाज से देखें तो सीपी राधाकृष्णन को बीजेपी ने शीर्ष पर बैठाकर गौंडर समुदाय को साधने की कोशिश की है। यह एक तरह से अन्नाद्रमुक को भी संकेत है। सीपी राधाकृष्णन के वैसे तो राज्य के तकरीबन हर दल के शीर्ष नेतृत्व से बेहतर संबंध है, लेकिन वे अन्नाद्रमुक के बेहद करीबी रहे हैं। 2010 के विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक ने उन्हें पार्टी में शामिल होने और चुनाव लड़ने का खुला आमंत्रण दिया था। अगर वे शामिल होते और चुनाव लड़ते तो तमिल सत्ता में उनकी हिस्सेदारी तय थी। लेकिन राधाकृष्णन ने अपनी प्रतिबद्धता नहीं तोड़ी। बहरहाल राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति बनने के बाद अन्नाद्रमुक को एक तरह से साथ आने का भी संदेश है। क्योंकि बीजेपी को भी आभास है कि तमिलनाडु की राजनीति में शीर्ष स्थान पर अकेले पहुंचना फिलहाल संभव नहीं है। 

आजादी के बाद से ही तमिलनाडु की राजनीति में पिछड़ा और दलित समुदाय का प्रभुत्व रहा है। तमिलनाडु की राजनीति में अगड़ा समुदाय एक तरह से किनारे पर आजादी के बाद से ही है। चूंकि बीजेपी की राज्य में सवर्ण जातियों की उत्तर भारतीय पार्टी की छवि है। तमिलनाडु में बीजेपी के उभार की बड़ी बाधा यह वजह भी रही है। गौंडर समुदाय के राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति बनाकर बीजेपी ने एक तरह से अपनी वह छवि तोड़ने की कोशिश की है। बेशक गौंडर समुदाय बहुत बड़ा नहीं है। लेकिन उसकी शख्सियत को देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंचाकर मोदी-शाह की जोड़ी ने एक तरह राज्य के पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को संकेत दिया है कि बीजेपी उनकी वैचारिकी और सोच का सम्मान करती है। वह सवर्ण नहीं, सर्व समाज की पार्टी है। निश्चित तौर पर आज भारतीय जनता पार्टी का उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत में प्रभाव है। पारंपरिक और प्रचलित राजनीतिक नजरिए के लिहाज से वह उपराष्ट्रपति के सम्मानित पद पर देश के इन इलाकों के अपने किसी प्रतिबद्ध और प्रतिष्ठित कार्यकर्ता को पहुंचा सकती थी। लेकिन उसने ऐसा न करके तमिलनाडु के अपने कार्यकर्ता पर विश्वास जताया। यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि केरल की पिछली विधानसभा चुनाव के दौरान सीपी राधाकृष्णन केरल बीजेपी के प्रभारी थे। राधाकृष्णन जिस तिरूपुर इलाके से आते हैं और जिस कोयंबटूर के सांसद रहे हैं, वह केरल का नजदीकी है। इस लिहाज से मान सकते हैं कि बीजेपी ने उनके जरिए भगवान के अपने देश यानी केरल को भी साधने की कोशिश की है। 

तमिलनाडु और केरल में अगले साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं। कह सकते हैं कि इन राज्यों में विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु में जिस गठबंधन के पास पैंतीस प्रतिशत वोट होगा, उसकी जीत सुनिश्चित है। पिछले आम चुनाव में अन्नाद्रमुक को करीब साढ़े बीस प्रतिशत वोट मिले थे। अन्नाद्रमुक के साथ  राज्य में उसका गठबंधन बन चुका है। पिछले आम चुनाव में मिले दोनों को मिल वोट को जोड़ दें तो यह तकरीबन बत्तीस प्रतिशत पड़ता है। सीपी राधाकृष्णन के चेहरे के सहारे बीजेपी अपने गठबंधन के वोट प्रतिशत में पांच प्रतिशत की बढ़त करने की तैयारी में है। 

- उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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