मुस्लिम ब्रदरहुड इस्लामिक नारे लगाता है लेकिन संघ भारत माता की जय बोलता है

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना अरब जगत के इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से करते हुए संघ पर आरोप लगाया है कि यह भारत के स्वभाव को बदलने और इसकी संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना अरब जगत के इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से करते हुए संघ पर आरोप लगाया है कि यह भारत के स्वभाव को बदलने और इसकी संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। राहुल गांधी ने लंदन स्थित थिंक टैंक अंतरराष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान को संबोधित करते हुए कहा है कि आरएसएस का विचार मुस्लिम ब्रदरहुड के विचार जैसा ही है। भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी के इस बयान की आलोचना करते हुए पूछा है कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष ने भारत नाम के विचार की ‘‘सुपारी’’ ले रखी है। भाजपा ने राहुल से अपने बयान के लिए माफी मांगने को भी कहा है जबकि कांग्रेस ने कहा है कि राहुल गांधी के बयान को सही संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

राहुल गांधी आखिर आरएसएस पर हमला बोलते क्यों हैं?

वैसे यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने आरएसएस पर तीखा हमला बोला हो, आरएसएस की मानहानि मामले में वह अदालती चक्कर काट रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने 6 मार्च 2014 को एक चुनावी सभा में आरोप लगाया था कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे आरएसएस का हाथ था। हैरानी की बात यह है कि राहुल गांधी आरएसएस पर हमला सिर्फ चुनावी लाभ लेने के लिए बोलते हैं जबकि वह जानते हैं कि आरएसएस कितना अनुशासित और देशभक्त संगठन है। इसी वर्ष जुलाई महीने में कांग्रेस की एक बैठक को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को भाजपा और आरएसएस से सीख लेने को कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि वह कांग्रेस सेवादल को आरएसएस की तरह मजबूत संगठन बनाएंगे। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि भाजपा और आरएसएस के लोगों ने आदिवासियों के बीच काम किया जिसके चलते आज वह लोग भाजपा को वोट देते हैं जबकि दशक भर पहले आदिवासी समुदाय कांग्रेस को वोट करता था।

यहाँ सवाल उठता है कि लंदन की जमीन पर आरएसएस को अतिवादी संगठन बताने वाले राहुल गांधी क्यों अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को आरएसएस से सीख लेने का निर्देश दे रहे थे? क्यों उनके करीबी नेता दीपक बावरिया ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आरएसएस के अनुशासन से सीख लेने की बात कही ? क्या देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी किसी अतिवादी संगठन के वार्षिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने जा सकते हैं ? इस समय देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित लगभग उनकी पूरी कैबिनेट, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस के स्वयंसेवक रहे हैं या अभी भी हैं। क्या यह सब अतिवादी हैं ? राहुल गांधी जब-जब बिना तैयारी के आरएसएस पर हमला बोलते हैं वह अपने जाल में खुद फंस जाते हैं।

मुस्लिम ब्रदरहुड क्या है ? और आरएसएस क्या है ? इसको समझें

क्या राहुल गांधी जानते भी हैं कि मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन क्या है और इसकी विचारधारा क्या है ? दरअसल मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र का सबसे पुराना और सबसे बड़ा इस्लामी संगठन है। इस संगठन की स्थापना 1928 में हसन अल-बन्ना ने की और इसको इख्वान अल-मुस्लमीन नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस संगठन ने दुनिया भर में इस्लामी आंदोलन चलाने में बड़ी भूमिका निभाई। संगठन का असल मकसद इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना था लेकिन यह बाद में राजनीति में भी शामिल हो गया। मुस्लिम ब्रदरहुड हालांकि लोकतांत्रिक सिद्धांतों का समर्थन करता है लेकिन चाहता है कि शासन इस्लामी कानून से चले। मिस्र में यह संगठन अवैध करार दिया जा चुका है। मुस्लिम ब्रदरहुड का चर्चित नारा है, “इस्लाम ही समाधान है'' जबकि आरएसएस सदैव ''भारत माता की जय'' का नारा बुलंद करता है। यही नहीं मुस्लिम ब्रदरहुड के संबंध लेबनान स्थित शिया चरमपंथी संगठन हिज़्बुल्लाह और कट्टरपंथी फिलस्तीनी संगठन हमास के साथ भी माने जाते हैं जबकि आरएसएस सेवा भारती के अलावा वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिन्दू परिषद, भारत विकास परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्या भारती, दीनदयाल शोध संस्थान, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, आदि अनेकों आनुषांगिक संगठनों के माध्यम से सेवा कार्यों में लगा हुआ है और भारत ही नहीं विश्व का भी सबसे अनुशासित और सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन माना जाता है।

अगर आरएसएस को देखें तो यह अपने स्थापना काल से ही प्रखर राष्ट्रवादी संगठन रहा है और सदैव राष्ट्रीय एकता और आपसी सद्भावना को मजबूत करने की सिर्फ बात ही नहीं करता बल्कि इसके लिए दिन-रात मेहनत भी करता है। देश के किसी हिस्से में आई आपदा के समय सबसे पहले राहत कार्यों के लिए पहुँचने की बात हो, आदिवासी क्षेत्रों में बिना किसी सरकारी सहायता के क्षेत्र के लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की बात हो, बच्चों में नैतिक शिक्षा के प्रसार से कर्तव्य बोध कराने की बात हो, युवाओं को कौशल विकास से जोड़ने की बात हो, हर क्षेत्र में आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके स्वयंसेवकों को आगे पाएंगे। चाहे केंद्र की भाजपा सरकार हो या राज्यों में भाजपा की सरकारें हों, यदि सरकार की नीतियां आलोचना लायक रहीं हैं तो आरएसएस ने सदैव आलोचना की है और सही मार्ग दिखाने का प्रयास किया है। इसी तरह पूर्व की सरकारों के दौरान आरएसएस ने सदैव अच्छे कार्यों की सराहना की है।

इतिहास से सबक नहीं लेते राहुल गांधी

राहुल गांधी पिछली बातों से सबक नहीं लेते, यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। उन्हें समझना चाहिए कि जब-जब आरएसएस पर तीखे राजनीतिक प्रहार हुए हैं, यह संगठन और तेजी से आगे बढ़ा है क्योंकि समाज में इसकी छवि सेवा कार्य करने वाले संगठन की है। संप्रग सरकार के दौरान आरएसएस को 'भगवा आतंकवाद' से भी जोड़ने का प्रयास किया गया लेकिन अदालती निर्णयों ने साफ कर दिया कि वह सब कुछ राजनीतिक साजिश का हिस्सा था। कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह तो हमेशा संघ के बारे में अनर्गल बोलने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने तो एक बार नई कहानी प्रस्तुत कर देश के विभाजन के लिए जिन्ना की बजाय सावरकर को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का विचार सबसे पहले वीर सावरकर ने रखा था जिसकी वजह से देश का बंटवारा हुआ। लेकिन उनके इस बयान का कांग्रेस को अगले चुनावों में बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा था।

बहरहाल, राहुल गांधी अपनी पार्टी के नेताओं को तो निर्देश देते हैं कि विवादित बयान देने से बचें लेकिन खुद विवादित बयान देने में आगे रहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वह किसी एक बात पर कायम नहीं रहते। अभी मुस्लिम ब्रदरहुड की बात हो या बेरोजगारी को ISIS से जोड़ने की बात हो या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सेना के जवानों की खून की दलाली करने का आरोप हो, हमेशा राहुल गांधी ने अपरिपक्वता का परिचय दिया है। राहुल गांधी ने संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड से जिस तरह जोड़ा है उससे साफ प्रतीत होता है कि जैसे-जैसे विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव नजदीक आएंगे, आरएसएस और भाजपा पर उनके हमले और बढ़ेंगे। संभव है दुनिया के अन्य अतिवादी या आतंकवादी संगठनों जैसा भी संघ को बताया जाये। यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस खुद अपना ही नुकसान करेगी। पार्टी को चाहिए कि वह देश में व्याप्त समस्याओं की बात करने के साथ ही उनका समाधान भी प्रस्तुत करे। आरोप लगाकर या सवाल खड़ा कर भाग जाने की राजनीति अब पुरानी हो चुकी है।

-नीरज कुमार दुबे

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