बिहार चुनाव से पहले राहुल का 'वोट चोरी' दांव: क्या जेन-Z को भड़काने की साजिश?

Rahul Gandhi
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राहुल ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कुल मतों के अंतर के बहाने से भी कांग्रेस की हार को वोट ‘चोरी’ से जोड़ दिया है। उनका कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस में सिर्फ 1.18 लाख वोटों का अंतर रहा। लेकिन कांग्रेस ने आठ सीटें 22,779 वोटों के अंतर से गंवाईं।

बिहार के मतदान के ठीक पहले राहुल गांधी ने नया हाइड्रोजन बम फोड़ते हुए उम्मीद की होगी कि ‘वोट चोरी’ के आरोप का यह नया संस्करण राज्य की चुनावी राजनीति में भूचाल ला देगा। उनके समर्थक और सिपहसालार दावा करने लगे हैं कि राहुल के इस बम विस्फोट ने बिहार के वोटरों की आंखें खोल दी हैं। इस जानकारी के बाद मतदाता मौजूदा मोदी और नीतीश सरकार के साथ ही बीजेपी से सावधान हो गया है। सोशल मीडिया पर यहां तक दावे किए जा रहे हैं कि राहुल के इस हमले से बिहार के मतदाताओं के बड़े वर्ग का रूख महागठबंधन की ओर हो गया है।

इस मसले पर चर्चा से पहले राहुल के आरोपों की मीमांसा ज्यादा प्रासंगिक हो उठती है। राहुल के आरोपों के जवाब में हरियाणा के मुख्य चुनाव अधिकारी और चुनाव आयोग ने जो जवाब दिया है, उस पर भी गौर किया जाना चाहिए। आयोग ने उल्टे सवाल ही पूछ लिया है। उसका कहना कि एक से अधिक नामों से बचने के लिए मतदाता सूची संशोधन के दौरान कांग्रेस के बूथ लेवल एजेंटों यानी बीएलए ने कोई दावा या आपत्ति क्यों नहीं उठाई? अगर ये फर्जी मतदाता थे भी, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि उन्होंने भाजपा को ही वोट दिए? 

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राहुल ने दावा किया है कि पिछले हरियाणा विधानसभा चुनावों में डाला गया हर आठवां वोट फ़र्ज़ी था। उनका कहना है कि राज्य में एक लाख चौबीस हज़ार से अधिक फर्ज़ी तस्वीरों वाले वोटर हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा में 'एक ही घर में 501 वोटरों के नाम दर्ज हैं और वह घर भी सिर्फ़ कागजों पर है।' राहुल के अनुसार, एक बुज़ुर्ग महिला का नाम मतदाता सूची में 220 बार दर्ज है।

राहुल ने इन आरोपों के जरिए हरियाणा के चुनाव नतीजों को लेकर समर्थकों के एक वर्ग को भ्रमित करने में सफल भी रहे हैं। ऐसी कोशिश वे पहले कर्नाटक और महाराष्ट्र के चुनावों के संदर्भ ऐसे ही वोट ‘चोरी’ के आरोप लगाकर कर चुके हैं। लेकिन राहुल के आरोपों में बहुत झोल है। उन्होंने जिस मतदाता सूची का उन्होंने ज़िक्र किया है, वह मुलाना विधानसभा क्षेत्र की है। दिलचस्प यह है कि राहुल के आरोपों के लिहाज से यहां बीजेपी को जीत मिलनी चाहिए, क्योंकि उनके हिसाब से फर्जी वोटरों ने बीजेपी को ही वोट डाला है। लेकिन मुलाना से कांग्रेस का ही उम्मीदवार जीता है। ऐसे में क्या राहुल के आरोप सवालों के घेरे में नहीं आ जाते? दिलचस्प यह है कि राहुल एग्जिट पोल को सही ठहरा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि हरियाणा चुनाव के बाद पांच प्रमुख एक्जिट पोल के अनुसार कांग्रेस भारी बहुमत से जीत रही थी। लेकिन नतीजे उलटे रहे। राहुल का कहना था कि इतिहास में पहली बार हरियाणा में कांग्रेस को पोस्टल बैलेट में 73 सीटों पर जीत मिली, लेकिन वोट चोरी से नतीजे बदल गए। दिलचस्प यह है कि जब यही एक्जिट पोल 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की भारी जीत दिखा रहे थे, तब राहुल ने उन्हें भ्रम बताते हुए खारिज कर दिया था। ऐसा कैसे हो सकता है कि बीजेपी की जीत दिखाने वाला एक्जिट पोल भ्रमित करने वाला हो और जब वही कांग्रेस को जीतता दिखाए तो वह सही। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि हरियाणा में सिर्फ 0.57 प्रतिशत मतदाताओं ने ही बैलेट और डाक मत पत्र का इस्तेमाल किया। इतने कम मतदाताओं की राय को राहुल जैसा महत्वपूर्ण राजनेता महत्व कैसे दे सकता है? 

राहुल ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कुल मतों के अंतर के बहाने से भी कांग्रेस की हार को वोट ‘चोरी’ से जोड़ दिया है। उनका कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस में सिर्फ 1.18 लाख वोटों का अंतर रहा। लेकिन कांग्रेस ने आठ सीटें 22,779 वोटों के अंतर से गंवाईं। लेकिन ऐसा करते वक्त वे भूल गए कि 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की तुलना में बीजेपी को 47,827 वोट ज्यादा मिले थे, लेकिन उसकी सीटें कम रह गई थीं। हरियाणा में तो सबसे कम अंतर वाली 10 सीटों में कांग्रेस को 6 पर जीत मिली। लेकिन राहुल इसे नहीं समझ पा रहे हैं।

राहुल के मुताबिक, एक महिला ने राई विधानसभा क्षेत्र के 10 अलग-अलग मतदान केंद्रों पर पर 22 बार मतदान किया। कांग्रेस ने इसे “सेंट्रल ऑपरेशन” कहा। गौरतलब है कि मतदाता सूची में एक ही नाम बार-बार मिलने से यह साबित नहीं होता कि वही व्यक्ति कई बार मतदान करने गया। राहुल के सलाहकारों को उन्हें बताना चाहिए कि मतदाता सूचियों में डुप्लीकेट नाम अक्सर पलायन, टाइपिंग की गलती या फिर पहले के रिकॉर्ड के अपडेट न होने की वजह से रह जाते हैं। चुनाव आयोग इन्हीं वजहों से विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर जैसी प्रक्रिया अपना रहा है, ताकि त्रुटियों को सुधारा जा सके। लेकिन राहुल इस प्रक्रिया का भी विरोध कर रहे हैं और डुप्लिकेट नामों को लेकर सवाल भी उठा रहे हैं। वैसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मतदाता सूची में डुप्लिकेट नाम होना या ऐसी अन्य गलती ‘वोट चोरी’ की वजह नहीं होती। अगर इसके जरिए फर्जी मतदान होता भी है तो सवाल यह है कि मतदान केंद्र पर मौजूद कांग्रेस के एजेंटों ने सवाल क्यों नहीं उठाए।

हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अभी राहुल के आरोपों पर गंभीर और विस्तृत जवाब की तैयारी में हैं। लेकिन यह भी सच है कि चुनाव आयोग ने 2 अगस्त 2024 को मतदाता सूची का ड्राफ्ट जारी किया था, जिसके बाद 4.16 लाख दावे और आपत्तियां आईं और उनका सत्यापन किया गया। इसके बाद 27 अगस्त 2024 को अंतिम मतदाता सूची को प्रकाशित किया गया। इस पूरी प्रक्रिया में अगर विसंगतियां थीं तो सवाल यह है कि कांग्रेस के बीएलए ने सवाल क्यों नहीं उठाए। चुनाव आयोग ने 16 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची सभी दलों और उम्मीदवारों को दोबारा दी थी, इसके बाद हुए चुनावों में लगभग 87 हजार मतदान केंद्र एजेंटों ने 20 हजार मतदान केंद्रों की निगरानी की। दिलचस्प यह है कि मतगणना के दौरान सिर्फ पांच शिकायतें ही मिली हैं। उनमें से एक भी कांग्रेस की नहीं है, यानी कांग्रेस और उसके एजेंट उस वक्त की प्रक्रिया से संतुष्ट थे। 

राहुल गांधी ने मतदाता सूची में कई नामों के साथ “ब्राज़ील की मॉडल की तस्वीरें” लगाई गई है। हालांकि कुछ मीडिया संस्थानों की जांच में पता चला है कि राहुल गांधी द्वारा दिए गए मतदाता पहचान पत्र नंबर और पहचान पत्र पूरी तरह वैध है और उन पर असल मतदाता की फोटो है। तो क्या यह मान लिया जाए कि राहुल की टीम ने उनसे गलत बयानी की या फिर जानबूझकर फर्जी फोटो दिखाकर देश को गुमराह किया गया? नेपाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद भारत में कुछ लोग जेन-जी को खूब उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या जिम्मेदार संवैधानिक पद पर बैठे राहुल भी उन्हीं लोगों में शामिल हो गए हैं? क्योंकि उन्होंने भी इस हाइड्रोजन बम फोड़ते वक्त ना सिर्फ देश के युवाओं, बल्कि जेन-जी को उकसाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है, “मैं चाहता हूँ कि जेन-जी  इसे गंभीरता से ले, क्योंकि तुम्हारा भविष्य तुमसे छीना जा रहा है।” बिहार चुनाव से ऐन पहले ऐसे बयान के अर्थ तो निकाले ही जाएंगे।

वैसे तो बीजेपी विरोधी तबका राहुल के बयानों को ही पवित्र धार्मिक पुस्तक की तरह स्वीकार कर रहा है। लेकिन जिस तरह से उनके दावों की पोल खुली है, उससे शंका होना स्वाभाविक है कि वे भी उन लोगों के साथ जाने या अनजाने खड़े हो रहे हैं, जो युवाओं को चुनाव आयोग और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति अविश्वास से भरने की कोशिश में हैं। खतरा यह है कि नौजवान ऐसी बातों से जल्दी प्रभावित होते हैं। अतीत के चुनावों में राहुल राफेल घोटाला, चौकीदार चोर है, जैसे असफल अभियान चला चुके हैं। तो क्या यह मान लिया जाय कि ‘वोट चोरी’ के आरोपों के जरिए एक बार फिर वे ऐसे ही अभियान पर हैं? विचार मतदाताओं को करना है।

-उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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