जीत या हार से नहीं मतलब नहीं, मालामाल होने के लिए मैदान में उतरती हैं नोट कटवा पार्टियां

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देखा जाये तो चुनावों में बहुत सारे राजनीतिक दल मैदान में उतरते हैं जिनमें से एक जीतता है और बाकी हारते हैं। जो जीतता है वह सरकार चलाता है और जो हारते हैं वह अगली बार जीतने की तैयारी करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे दल भी हैं जिन्हें जीत या हार से मतलब नहीं होता।

राजनीति में किसी की रुचि हो या नहीं हो लेकिन देश की मुख्य राजनीतिक पार्टियों के नाम से तो सभी अवगत रहते हैं। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस आदि कई ऐसे नाम हैं जोकि राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर अच्छे से जाने पहचाने हैं लेकिन क्या आपने कभी महान समाज पार्टी, सबसे बड़ा क्रांति दल, सुपरहिट पार्टी या आपकी और हमारी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के नाम सुने हैं? आपमें से अधिकांश का उत्तर 'ना' में ही होगा। दरअसल यह अनसुने नाम नोट कटवा पार्टियों के हैं। नोट कटवा से आशय यह है कि यह दल वोटों के लिए नहीं बल्कि सिर्फ नोटों के लिए राजनीति करते हैं।

देखा जाये तो चुनावों में बहुत सारे राजनीतिक दल मैदान में उतरते हैं जिनमें से एक जीतता है और बाकी हारते हैं। जो जीतता है वह सरकार चलाता है और जो हारते हैं वह अगली बार जीतने की तैयारी करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे दल भी हैं जिन्हें जीत या हार से मतलब नहीं होता क्योंकि उनका गठन तो पैसा कमाने के लिए किया गया होता है। नोट कटवा दलों को औपचारिक भाषा में पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल कहा जाता है। इस प्रकार के राजनीतिक दल कालेधन को सफेद करने का खेल खेलते हैं। लेकिन अब ऐसे दलों की खैर नहीं है क्योंकि चुनाव आयोग के सामने इन दलों की असलियत उजागर हो चुकी है इसीलिए आयकर विभाग की छापेमारी से जो खुलासे हुए हैं वह दर्शाते हैं कि लोकतंत्र में मिले अधिकारों का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है।

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दरअसल भारत में कोई भी व्यक्ति अपना राजनीतिक दल गठित कर सकता है और चुनाव लड़ सकता है या अपने दल से किसी को उम्मीदवार बना सकता है। दलों की मान्यता के लिए निर्वाचन आयोग के कुछ पैमाने हैं जिनको पूरा करने के बाद ही कोई दल क्षेत्रीय या राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता हासिल कर सकता है और अपने लिये स्थायी चुनाव चिह्न भी ले सकता है। लेकिन दलों के पंजीकरण के लिए कुछ खास नियम नहीं हैं इसका फायदा कुछ लोग उठाते हैं। कालेधन को सफेद करने के उद्देश्य से निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा राजनीतिक दल का गठन किया जाता है ताकि जनता से चंदा जुटाया जा सके। उल्लेखनीय है कि जनता से जुटाये चंदे पर राजनीतिक दलों को कोई आयकर नहीं देना होता और राजनीतिक दल चंदे के बदले जो रसीद देते हैं उसको दिखाकर चंदा देने वाले व्यक्ति को आयकर में कटौती का लाभ भी मिल जाता है।

एक आंकड़े के मुताबिक देश में 2100 से कुछ ज्यादा पंजीकृत राजनीतिक दल हैं जिनमें से मात्र 55 को ही मान्यता प्राप्त है। गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में से अधिकांश का चुनावी राजनीति से कोई वास्ता नहीं है। ना इनका कोई स्थायी चुनाव चिह्न है, ना जमीनी संगठन है, ना कोई नीति है, ना कोई उम्मीदवार है यह तो बस नोट बटोरने में लगे हुए हैं। इस प्रकार के राजनीतिक दल किसी चॉल, फ्लैट आदि से चलाये जा रहे हैं। बताया जाता है कि ऐसे दलों की चाँदी इसलिए हो जाती है क्योंकि लोग आयकर बचाने के लिए गैर-मान्यता प्राप्त दलों को चंदा देते हैं और यह दल अपनी फीस जोकि अमूमन एक प्रतिशत तक होती है, वह काट कर उस चंदे की बाकी राशि को वापस उसी व्यक्ति को दे देते हैं। नोट कटवा दल किस प्रकार चल रहे हैं इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जब आयकर विभाग की एक टीम मुंबई के सायन इलाके की झुग्गी बस्ती में पहुँची तो पाया कि एक राजनीतिक दल जिसने 100 करोड़ की राशि पर आयकर छूट के लिए क्लेम किया था वह एक झुग्गी वाले पते पर पंजीकृत था। ऐसी भी खबरें सामने आई हैं कि हवाला ऑपरेटरों के इशारे पर ऐसे राजनीतिक दल गठित किये जाते हैं ताकि कालेधन को ठिकाने लगाया जा सके। ऐसे दलों को चलाने वाले लोगों का सारा खर्च हवाला ऑपरेटर ही उठाते हैं।

हम आपको बता दें कि नोट कटवा दलों का मामला इसलिए सुर्खियों में आया है क्योंकि आयकर विभाग ने पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की संदिग्ध ‘फंडिंग’, एफसीआरए के उल्लंघन और कर चोरी से जुड़े अलग-अलग मामलों में कई राज्यों में छापेमारी की। आयकर विभाग द्वारा एक साथ गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में 110 से ज्यादा परिसरों पर छापे मारे गये। छापे की यह कार्रवाई कुछ पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और उसके कथित संदिग्ध लेन-देन को लेकर की गई। अवैध तरीके से अर्जित धन को राजनीतिक दलों को देने के कुछ मामलों की भी इस दौरान जांच की गयी।

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जहां तक इस प्रकार के राजनीतिक दलों पर आयकर छापों की बात है तो ऐसा माना जा रहा है कि निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर विभाग द्वारा अचानक यह कार्रवाई की गई। दरअसल निर्वाचन आयोग ने हाल ही में भौतिक सत्यापन के बाद 198 संगठनों को पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की सूची से हटा दिया था। निर्वाचन आयोग ने घोषणा की थी कि वह 2100 से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, जो नियमों और चुनाव संबंधी कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसमें कोष संबंधी जानकारी नहीं देना, चंदा देने वालों के पते और पदाधिकारियों के नाम को जारी ना करना शामिल है। आयोग ने कहा था कि कुछ दल ‘‘गंभीर’’ वित्तीय गड़बड़ी में भी संलिप्त पाए गए हैं। इसके अलावा भारतीय निर्वाचन आयोग को राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों से रिपोर्ट मिली थी कि भौतिक सत्यापन के समय अधिकतर गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का कोई अस्तित्व नहीं पाया गया था।

बहरहाल, जनता को ऐसे दलों से सावधान रहना चाहिए जो वोट कटवा या नोट कटवा के रूप में लोकतंत्र को और देश के सरकारी खजाने को नुकसान पहुँचा रहे हैं। निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह दलों के पंजीकरण के नियमों को सख्त करे और जो दल वार्षिक आधार पर सभी प्रकार के विवरण नहीं जमा करते हैं उनका पंजीकरण रद्द किया जाये।

-नीरज कुमार दुबे

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