जम्मू कश्मीर में बड़ी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं सुरक्षाबल

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तड़के 4 बजे ही जिन सुरक्षाकर्मियों को ड्यूटी में लगा दिया जाता हो और फिर सारा दिन और सारी रात खतरे के साए में समय काटने वालों की दशा क्या हो सकती है इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं।

कश्मीर में सुरक्षाकर्मी किन हालातों में अपने कर्तव्य को पूरा कर रहे हैं जरा इस पर नजर डाली जाये तो जो तसवीर सामने आयेगी वह आपको चौंका देगी। इन सुरक्षाकर्मियों की जिन्दगी कोई आसान नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि चाहे कोई माने या न माने पर कश्मीर में इतने सालों से हालात युद्धग्रस्त क्षेत्र जैसे ही हैं जहां कब और कहां से आतंकी हमला हो जाये, गोलियों की बौछार हो जाए और अब पथराव शुरू हो जाए कोई नहीं जानता।

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सुरक्षाकर्मियों को हालांकि आतंकी हमलों से निपटने की ट्रेनिंग अलग से नहीं लेनी पड़ती है क्योंकि वह उनके प्रशिक्षण का हिस्सा ही बना दिया गया है पर पत्थरबाजों से निपटने का प्रशिक्षण उनके लिए अब बहुत जरूरी इसलिए हो गया है क्योंकि कश्मीर में हालात 1990 के दशक जैसे बन चुके हैं। तब भी आतंकी भीड़ का हिस्सा बन कर हमले किया करते थे और अब भी वैसा होने लगा है। ऐसे में कश्मीरी अवाम, पत्थरबाजों और भीड़ में छुपे हुए आतंकवादियों से निपटना सुरक्षा बलों के लिए बहुत ही कठिन हो चुका है। वे भीड़ को तितर-बितर करने की खातिर लाठीचार्ज और आंसू गैसे के गोलों का विकल्प सबसे पहले इस्तेमाल करते हैं। पर कश्मीर के आतंकवाद और हिंसक प्रदर्शनों के सिलसिले में यह विकल्प अब पुराने हो गए हैं क्योंकि इनका कोई असर ही नजर नहीं आता है। ऐसे में अंत में वे पैलेट गन का ही इस्तेमाल करने को मजबूर होते हैं।

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तड़के 4 बजे ही जिन सुरक्षाकर्मियों को ड्यूटी में लगा दिया जाता हो और फिर सारा दिन और सारी रात खतरे के साए में समय काटने वालों की दशा क्या हो सकती है इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ताजा हिंसक प्रदर्शनों में सिर्फ कश्मीरी जनता ही घायल हो रही हो बल्कि पिछले एक साल में जो 4 हजार के करीब लोग घायल हुए हैं उनमें आधा आंकड़ा विभिन्न सुरक्षा बलों का है। इसमें केरिपुब और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान सबसे ज्यादा हैं। कई सुरक्षाकर्मी तो प्रदर्शनकारियों की पिटाई के भी शिकार हुए हैं। उनकी पिटाई इसलिए हुई क्योंकि वे हिंसक प्रदर्शनकारियों के हाथ लग गए थे।

अगर कश्मीर में जारी आतंकवाद और हिंसक प्रदर्शनों की तसवीर का दूसरा पहलू देखें तो आतंकवाद की परिस्थितियों के कारण बड़ी संख्या में कश्मीरी अवसाद का शिकार हो रहे हैं। हालात की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि सुरक्षाकर्मी भी अवसाद का शिकार होने लगे हैं।

-सुरेश एस डुग्गर

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