एक इतिहास की धारणा को बल, एक भूगोल का इंतजार

Rajnath Singh
ANI

बंटवारे से पहले सिंध की ज्यादातर आबादी हिंदू थी। प्रचलित शब्दों में वहां के लोगों को सिंधी कहा जाता है। सिंध के बंटवारे को यहां के हिंदू समाज ने ना तो व्यवहारिक माना, और ना ही उचित। आज यह पाकिस्तान का तीसरा बड़ा प्रांत है, जिसका क्षेत्रफल एक लाख 40 हजार 914 वर्ग किलोमीटर है।

जुलाई 2001 का दूसरा हफ्ता था। राजधानी दिल्ली और आगरा में बड़ी हलचल थी। इस हलचल पर समूचे देश या यूं कहिए कि दक्षिण एशिया की विशेष निगाह थी। वजह थी, पंद्रह जुलाई से शुरू हो रही परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा। करगिल युद्ध के खलनायक तब तक पाकिस्तान का शासक हो चुका था। मुशर्रफ तानाशाह राष्ट्रपति बन चुके थे। करगिल का जख्म चूंकि अभी हरा था, लिहाजा मुशर्रफ की यात्रा उत्सुकता, उम्मीद और आशंका के दायरे में थी। जैसा कि ऐसी यात्राओं के दौरान होता है, कूटनीतिक तैयारियां भी खूब होती हैं। परवेज की यात्रा के ठीक पहले अपने चिर-परिचित अंदाज में पाकिस्तान ने कश्मीरी आत्मनिर्णय को लेकर कूटनीतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया था। यात्रा के एक या दो दिनों पहले की बात है। दिल्ली में सिंधी समाज ने मुशर्रफ की यात्रा के मद्देनजर एक कार्यक्रम रखा। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के सामने पाकिस्तान की उस कोशिश का जिक्र किया गया तो भरे मंच से उन्होंने पाकिस्तान को चेता दिया था, ‘अगर पाकिस्तान कश्मीर का सवाल उठाएगा तो भारत जवाबी रूप से सिंध के आत्मनिर्णय का सवाल उठाएगा।’

इस वाकये का जिक्र इसलिए हो रहा है कि देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ठीक चौबीस साल बाद सार्वजनिक मंच से कहा है कि भविष्य में सिंध भारत का हिस्सा हो सकता है। भारत की सीमाओं के बदलने की उम्मीद तो देश का एक तबका काफी  अरसे से कर रहा है। लेकिन उसका ध्यान सिंध की बजाय बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर ज्यादा रहा है। सिंध का सवाल अपेक्षाकृत कम चर्चित और कम ध्यातव्य रहा है। लेकिन यह बात चूंकि देश के रक्षा मंत्री ने कही है तो यह मामला गंभीर हो जाता है। हो सकता है कि यह राजनाथ सिंह का निजी विचार हो। लेकिन वे भारत की आधिकारिक शासक मोदी कैबिनेट के दूसरे नंबर के व्यक्ति हैं। इसलिए उनके शब्द कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं और उन शब्दों का प्रभाव राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पड़ने स्वाभाविक है। 

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बंटवारे से पहले सिंध की ज्यादातर आबादी हिंदू थी। प्रचलित शब्दों में वहां के लोगों को सिंधी कहा जाता है। सिंध के बंटवारे को यहां के हिंदू समाज ने ना तो व्यवहारिक माना, और ना ही उचित। आज यह पाकिस्तान का तीसरा बड़ा प्रांत है, जिसका क्षेत्रफल एक लाख 40 हजार 914 वर्ग किलोमीटर है। गुजरात के कच्छ का रण और राजस्थान का थार रेगिस्तान इसके पूर्व में स्थित है, जबकि दक्षिण में इसका पांव अरब सागर पखार रहा है। अरब सागर के ही किनारे स्थित कराची पाकिस्तान का आर्थिक केंद्र है, जैसे भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई है। 

दुनिया के चाहे जिस भी हिस्से में हिंदू समाज रहता है, अपने धार्मिक और संस्कार वाले कामों, पूजा-अर्चना आदि में सबसे पहले खुद को एक मंत्र से पवित्र करता है और अर्चना में जिस जल का उपयोग करता है, उसे वह एक मंत्र के जरिए पवित्र करता है। वह मंत्र है, "गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु"। जिसका अभिप्राय है कि गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी के जले से यह अर्चन कार्य करता हूं। इस मंत्र से स्पष्ट है कि भारतीय मनीषा और संस्कृति के लिए सदियों से गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती , नर्मदा, सिंधु और कावेरी नदियों को पवित्रतम नदियां रही हैं। उनका जल हमारी सभ्यता का वाहक रहा है, उनके जरिए हमारी संस्कृति और सभ्यता का विकास हुआ है। भारत की सप्त पवित्र नदियों में से एक सिंधु इसी सिंध प्रांत से होकर गुजरती है। इस लिहाज से देखें तो भारत भूमि के लिए सिंध का महत्व समझ में आता है।  लालकृष्ण आडवाणी भी सिंध के वासी रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि उनकी पीढ़ी के सिंध के लोग भारत के विभाजन को स्वीकार नहीं कर पाए। राजनाथ सिंह ने अपने  व्याख्यान में इस लेख का भी जिक्र किया है। आडवाणी अपने राजनीतिक उत्कर्ष के दिनों में सिंधु दर्शन यात्रा नाम से आयोजन करते रहे हैं। जिसका मकसद सिंधु के जरिए सिंध की माटी से बिछड़कर भारत आ गए लोगों को जोड़ना और उनकी स्मृतियों को जिंदा रखना रहा।

ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कानून के तहत भारत विभाजन की योजना लार्ड माउंटबेटन ने बनाई। उन्होंने इसका जिम्मा कानून के जानकार सिरिल रेडक्लिफ को दिया। रेडक्लिफ को भूगोल और संस्कृति की जानकारी नहीं थी। विभाजन करते वक्त उन्होंने भारतीय वास्तविकताओं का ध्यान नहीं रखा। संस्कृतियों की भी समझ नहीं थी। इसका असर विभाजन पर भी दिखा। रेडक्लिफ रेखा एक तरह से उनकी मूर्खताओं का प्रतीक बन गई। उनकी संस्कृतिहीन सोच की वजह से भारत को विभाजन के वक्त भयानक विभीषिका को झेलना पड़ा। कई जगह पर विभाजन अगर कृत्रिम लगता है तो उसकी वजह रेडक्लिफ की संस्कृति, भूगोल और जमीनी हालात की नासमझी है।

इसी वजह से सिंध से भी भारत में विलय के लिए क्षीण ही सही, आवाजें उठती रहीं है। भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को भी सम्मान नहीं मिला. उन्हें बिहारी और मुहाजिर कहा जाता रहा। एक दौर में सिंध में मुहाजिर कौमी मूवमेंट चलता रहा, जिसके प्रमुख अल्ताफ हुसैन रहे। हालांकि उनके आंदोलन का मकसद पाकिस्तान में भारत से गए उर्दू भाषी मुसलमानों के अधिकारो की रक्षा रहा। लेकिन पाकिस्तान सरकार उसे भारत समर्थक और विभाजनकारी मानती रही।

बाल्टिस्तान, बलूचिस्तान और पाकिस्तान के अधिकार वाले कश्मीर से तो भारत के साथ जुड़ने की मांग उठती रही है। हाल के दिनों में इस मांग ने तेजी पकड़ी है। वहां से आने वाले वीडियो में ’मोदी-मोदी ’ के नारे भी सुनाई देने लगे हैं। हालांकि सिंध प्रांत से ऐसी आवाजें कम उठती रहीं। यहां याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान के एक प्रमुख राजनीतिक दल ‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ का सबसे ज्यादा असर सिंध प्रांत में ही है। जिसकी प्रमुख एक दौर में बेनजीर भुट्टो रही हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भुट्टो परिवार की जागीर मानी जाती है।

इन संदर्भों में देखें तो राजनाथ सिंह के बयान इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि सिंध में विभाजन को लेकर मांग बढ़ रही है। पाकिस्तान की बदहाली, उर्दू भाषी मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार की वजह से सिंध प्रांत में रह से मुहाजिर लोगों में भी भारत के प्रति अनुराग बढ़ रहा है। बेशक भारत से सीधी जुड़ी रही पीढ़ी अब नहीं रही, लेकिन उसने अपना दर्द, अपने सुहाने सपने और गौरवशाली अतीत को नई पीढ़ी के साथ साझा किया है। नई पीढ़ी के पास सूचना तकनीक है, सूचना के तमाम साधन है। इसलिए वह देख पा रही है कि सीमा के उस पार की हालत कैसी है। उसके लिए भारत का नजारा दर्द और क्षोभ का कारण बन जाता है। क्योंकि आजादी के पहले संयुक्त भारत में सिंध की गिनती समृद्ध राज्यों में होती थी। सिंध कभी हिंदू बहुल राज्य था। कराची शहर हिंदू प्रधान था। पाकिस्तान की जनसंख्या में सिर्फ 2.17 फीसद हिंदू  हैं।  जो करीब 52 लाख हैं। इनमें से करीब 49 लाख सिंध में ही रहते हैं। 2023 की जनगणना से अनुसार सिंध की आबादी करीब 5.57 करोड़ है। इस लिहाज से देखें तो यहां की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी करीब 8.8 प्रतिशत है। ग्रामीण आबादी में करीब 13.3 प्रतिशत हिंदू हैं. ये लोग ज्यादातर सिंध के थारपारकर और उमरकोट जिले में रहते हैं। विभाजन से पहले सिंध के कई जिलों में हिंदुओं की आबादी करीब 90 फीसद थी। 1941 की जनगणना के अनुसार, कराची में ही हिंदुओं की बड़ी संख्या में हिंदू आबादी थी। इसके अलावा शिकारपुर, खैरपुर, लरकाना, सुक्कुर में भारी संख्या में हिंदू रहते थे। आज भी उमरकोट जिले में मुस्लिम समुदाय की तुलना में हिंदुओं की संख्या ज्यादा है। इसकी दूरी भारतीय सीमा से सिर्फ 60 किलोमीटर है। कह सकते हैं कि राजनाथ सिंह के बयान ने वहां के हिंदू समुदाय के लोगों की उम्मीदें जगा दी होंगी। उन्हें लगता होगा कि एक न दिन वे भारत का उसी तरह हिस्सा होंगे, जैसे उनके पुरखे विभाजन के पहले थे। इस बयान ने एक अतीत और इतिहास की धारणा को जिंदा तो कर दिया है, एक भूगोल की उम्मीदें भी जगा दी हैं। एक भूगोल कब हकीकत बन पाएगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। 

-उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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