मन की बात ने दोतरफा संवाद की जो व्यवस्था कायम की उससे लोकतंत्र और मजबूत हुआ

Mann Ki Baat
ANI

प्रधानमंत्री के 'मन की बात' को जनता कितना पसंद करती है इसका अंदाजा हाल के कुछ सर्वेक्षण परिणामों से लग जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 23 करोड़ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को हर महीने के आखिरी रविवार को सुनते हैं।

राजनेता तमाम परियोजनाएं और कार्यक्रम शुरू करते हैं लेकिन उन्हें इस बात की फिक्र नहीं होती कि उसमें से कितनी परियोजनाएं पूरी होती हैं या कितने कार्यक्रम बिना किसी बाधा के निरंतर चलते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अंदाज सबसे अलग है। वह जो परियोजनाएं शुरू करते हैं उसका शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक वह करते हैं। जो कार्यक्रम वह शुरू करते हैं वह निरंतर चलते भी हैं और रिकॉर्ड भी बनाते हैं। अब 'मन की बात' को ही लीजिये। प्रधानमंत्री बनने के बाद देश से सीधा संवाद कायम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन अक्टूबर 2014 को रेडियो पर 'मन की बात' कार्यक्रम शुरू किया था जिसकी सौंवी कड़ी 30 अप्रैल 2023 को प्रसारित हो रही है।

मासिक आधार पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम की सौ कड़ियां पूरी होना एक अनोखा रिकॉर्ड तो है ही साथ ही इससे यह भी प्रदर्शित होता है कि प्रधानमंत्री देश की जनता से सीधे जुड़ने के लिए कितना आतुर रहते हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 'मन की बात' में मुद्दे उठाने के लिए प्रधानमंत्री देशवासियों से उनके सुझाव आमंत्रित करते हैं, जितने भी सुझाव आते हैं उन्हें वह देखते हैं, इससे उन्हें पता चलता है कि देश में क्या-क्या चल रहा है, क्या नई चुनौतियां और समस्याएं हैं या देश की जनता सरकार के बारे में क्या सोचती है। प्राप्त सुझावों में से बेहतरीन सुझावों का वह अपने कार्यक्रम में जिक्र करते हैं जिससे देशवासी भी खुशी से फूले नहीं समाते।

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आज के इस आधुनिक युग में जहां हर पल घटनाएं तीव्रता से बदलती हैं और हर कोई तमाम मीडिया या सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से हर विषय पर समाचारों से अवगत रहता है उसके बावजूद लोग यदि सामूहिक रूप से बैठ कर प्रधानमंत्री के 'मन की बात' कार्यक्रम को सुनने के लिए हर महीने के आखिरी रविवार का इंतजार करते हैं तो यह दर्शाता है कि प्रधानमंत्री के 'मन की बात' ही 'जनता के मन की बात' है क्योंकि देश-दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता होने के बावजूद मोदी ने इस कार्यक्रम को राजनीति से दूर ही रखा है। इस कार्यक्रम में वह देश की प्रगति, चुनौतियों और लक्ष्यों की चर्चा तो करते ही हैं साथ ही आम भारतीयों की उपलब्धियों और उनकी प्रेरक कहानियों से भी देश को रूबरू करवाते हैं। यही नहीं, प्रधानमंत्री की बदौलत रेडियो सुनने वालों की संख्या बढ़ी है और इस माध्यम में उनकी रुचि फिर से जगी है। इस रेडियो कार्यक्रम ने सामुदायिक बंधन को प्रगाढ़ करने में भी मदद की है।

प्रधानमंत्री के 'मन की बात' को जनता कितना पसंद करती है इसका अंदाजा हाल के कुछ सर्वेक्षण परिणामों से लग जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 23 करोड़ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को हर महीने के आखिरी रविवार को सुनते हैं, जिसमें 65 प्रतिशत श्रोता हिंदी में उनकी बात सुनना पसंद करते हैं। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम मोबाइल फोन के बाद टेलीविजन चैनलों पर अधिक सुना जाता है। सर्वेक्षण के मुताबिक कुल श्रोताओं में से 44.7 प्रतिशत टेलीविजन सेट पर कार्यक्रम सुनते हैं, जबकि 37.6 प्रतिशत मोबाइल फोन पर इसे सुनते हैं। रेडियो श्रोताओं की संख्या कुल श्रोताओं का 17.6 प्रतिशत है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 100 करोड़ से अधिक लोगों ने कम से कम एक बार कार्यक्रम को सुना है, जबकि लगभग 41 करोड़ सामयिक श्रोता थे।

सर्वेक्षण में पाया गया कि मन की बात सुनने वाले लोगों में से 73 प्रतिशत ने सरकार के कामकाज और देश की प्रगति के बारे में आशावादी महसूस किया, जबकि 58 प्रतिशत ने कहा कि उनके जीवनस्तर में सुधार हुआ है। 59 प्रतिशत लोगों ने इस कार्यक्रम की बदौलत सरकार में भरोसा बढ़ने की बात भी कही है। सर्वेक्षण के अनुसार, सरकार के प्रति आम धारणा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 63 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि सरकार के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक हो गया है और 60 प्रतिशत ने राष्ट्र निर्माण के लिए काम करने में रुचि दिखाई। सर्वेक्षण में पाया गया कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम के सबसे लोकप्रिय विषय भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियां, आम नागरिकों की कहानियां, सशस्त्र बलों की वीरता, युवाओं, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन से जुड़े मुद्दे थे।

हम आपको यह भी बता दें कि 'मन की बात' का स्वरूप इतना व्यापक है कि इसे 22 भारतीय भाषाओं और 29 बोलियों के अलावा, फ्रेंच, चीनी, इंडोनेशियाई, तिब्बती, बर्मी, बलूची, अरबी, पश्तू, फारसी, दारी और स्वाहिली जैसी 11 विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित किया जाता है। साथ ही इस कार्यक्रम का प्रसारण आकाशवाणी के 500 से अधिक केंद्रों द्वारा किया जाता है।

इसके अलावा एक और अध्ययन सामने आया है। उसके मुताबिक, आकाशवाणी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को प्रेरणा का एक विश्वसनीय स्रोत तथा कृषि और उद्यमिता विकास के लिए व्यापक जागरूकता के माध्यम के रूप में पहचान हासिल हो चुकी है। अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, प्राकृतिक खेती, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, और एकीकृत कृषि प्रणाली (विविधीकरण) को अपनाने की इच्छा मन की बात के एपिसोड में शामिल छोटे किसानों का सबसे पसंदीदा विषय थे। इसके अलावा, मोटे अनाज के किसानों के साथ एक अन्य आकलन से पता चला है कि कृषि विज्ञान केंद्र के पेशेवरों द्वारा मन की बात और अनुवर्ती कार्रवाई के माध्यम से दिए गए संदेश ने मोटे अनाज की उन्नत किस्मों को अपनाने की प्रक्रिया और उत्पादन प्रणाली पर किसानों की धारणा को मजबूत किया है। इसके अलावा, मन की बात कार्यक्रम ने कृषि-स्टार्टअप को किसानों को लाभान्वित करने वाले नवीन समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी प्रेरित किया है।

दूसरी ओर, मन की बात की सौंवी कड़ी का प्रसारण देशभर में होने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय से होना भी बड़े गर्व की बात है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन ने प्रधानमंत्री मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम की 100वीं कड़ी का संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के ‘ट्रस्टीशिप काउंसिल चैंबर’ में सीधा प्रसारण करने के बंदोबस्त किये। इसके अलावा, भाजपा ने भी 'मन की बात' की 100वीं कड़ी को 'अभूतपूर्व' जनसंपर्क कार्यक्रम बनाने के लिए हर संभव प्रयास किये और इसके तहत उसने देश भर के हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 100 स्थानों पर सुविधाएं आयोजित कीं ताकि लोग कार्यक्रम को सुन सकें। भाजपा ने विदेशों में भी 'मन की बात' के सीधे प्रसारण के प्रबंध किये। बताया जा रहा है कि पार्टी ने एक साथ चार लाख स्थानों पर 'मन की बात' कार्यक्रम को सुनने की व्यवस्था करवाई है। इसके साथ ही तमाम सरकारी विभागों की ओर से भी 'मन की बात' कार्यक्रम को सुनवाने के लिए प्रबंध किये गये।

बहरहाल, 'मन की बात' के असर पर तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी अध्ययन करवा रहे हैं क्योंकि इस कार्यक्रम के जरिये प्रधानमंत्री ने भारत में दोतरफा संवाद की जो व्यवस्था कायम की है उसने लोकतंत्र की मजबूती में अहम योगदान दिया है।

-नीरज कुमार दुबे

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