बदले-बदले से ‘सरदार’ नजर आते हैं

Bhagwant Mann
ANI
राकेश सैन । Mar 7 2025 2:06PM

आम आदमी पार्टी की दृष्टि से पंजाब में तो स्थितियां और भी विकराल हैं क्योंकि यहां उसकी सरकार के कार्यकाल में नशा अपनी तमाम सीमाएं तोड़ता दिख रहा है, जबकि पार्टी नशामुक्ति के हिमालयी वायदे करके सत्ता में आई थी।

हिन्दी का एक बहुत मशहूर शेयर है ...

बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं,

अपने ही संगी के साथी नहीं अब,

अपनों से अब बेजार नजर आते हैं।

इस शेयर में अगर ‘सरकार’ की जगह ‘सरदार’ लिख दिया जाए तो यह पंक्तियां पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार भगवंत सिंह मान पर बिल्कुल स्टीक बैठती हैं। कुछ दिन पहले तक अपने चुटकलों से लोगों को हंसा हंसा कर लोटपोट कर देने वाले भगवंत मान अब उत्तर प्रदेश के योगी के अंदाज में दिखने लगे हैं। नशा तस्करों के घरों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, दिन में हड़ताली राजस्व अधिकारियों को सीधा-सीधा धमकाते हैं कि ‘आपको छुट्टी मुबारक’ और शाम होते-होते उन्हें निलम्बित कर देते हैं। और तो और किसान नेताओं को यहां तक कहने लगे हैं कि ‘बहुत हो चुका अब आपकी ब्लैकमेलिंग और नहीं चलेगी। आप लोगों ने पंजाब को धरना प्रदेश बना कर रख दिया है।’ पंजाब में इन दिनों मुख्यमंत्री के व्यवहार में आए बदलाव के कारण खोजे जा रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हुई पराजय के बाद पंजाब का नेतृत्व दबाव में है और कुछ कर दिखाने की कोशिश कर रहा है। चूंकि राज्य में ‘आप’ की क्रान्तिकारी सरकार अपना आधे से अधिक कार्यकाल पूरा कर चुकी है परन्तु उपलब्धि के नाम पर सरकार के हाथ खाली-खाली से लगते हैं। क्रान्ति अब भ्रान्ति लगने लगी है। पंजाब सरकार की कार्यप्रणाली दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकार की छायाप्रति ही रही है। पंजाब में भी दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक की तर्ज पर आम आदमी क्लीनिक खोले गए, मनीष सिसोदिया के आदर्श स्कूलों की कॉपी करते हुए स्कूल आफ एमिनेंस खोले गए। पंजाब के मंत्री दिल्ली वालों की तरह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनवाते नहीं अघाते परन्तु दिल्ली के विकास मॉडल के धड़ाम होने के बाद पंजाब का नेतृत्व भी सन्न है। आम आदमी पार्टी की दृष्टि से पंजाब में तो स्थितियां और भी विकराल हैं क्योंकि यहां उसकी सरकार के कार्यकाल में नशा अपनी तमाम सीमाएं तोड़ता दिख रहा है, जबकि पार्टी नशामुक्ति के हिमालयी वायदे करके सत्ता में आई थी। पर आज राज्य में आए दिन कहीं न कहीं नशे की ओवरडोज मौत होने की खबरें मिलती रहती हैं। कुछ जगह पर तो आठ-दस साल के बच्चों के भी नशे करने की खबरें प्रकाशित हो चुकी हैं। राज्य में आटे की तरह चिट्टा (हेरोइन) बिक रहा है। नशा महिषासुर राक्षस बन चुका है जिसको जितना मारो उसके रक्त की हर बून्द से नए-नए महिषासुर पैदा हो रहे हैं। पुलिस आए दिन  भारी मात्रा में नशा पकडऩे का दावा करती है परन्तु इसके बावजूद पंचनद की धरती पर नशे का छठा दरिया बहता दिखाई देता है। राज्य का सरकारी कर्ज निरंतर बढ़ रहा है तो महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने का चुनावी वायदा विपक्षी दल भूलने नहीं दे रहे।

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कहते हैं कि एक बार मुल्ला जी ने नदी में बहते हुए रीछ को कम्बल समझ कर पकड़ लिया, पर कुछ ही देर बाद हालत यह हो गई कि मीयां जी तो कम्बल को छोडऩा चाहें पर अब कम्बल मीयां जी को ना छोड़े। यही हालत किसान संगठनों को लेकर भगवंत मान सरकार की होती दिख रही है। दिल्ली में चले किसान आन्दोलन के दौरान आम आदमी पार्टी ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए आंदोलनकारी किसानों को केवल समर्थन ही नहीं दिया बल्कि लंगर-पानी तक पहुंचाने का काम भी किया। समय बदला, अब वही किसान संगठन आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए सिरदर्द बनते दिख रहे हैं। साल पहले किसानों के नए आंदोलन के तहत दिल्ली कूच करते हुए हरियाणा पुलिस ने आंदोलनकारियों को पंजाब-हरियाणा की सीमा शम्भू बार्डर पर ही रोक दिया था। आन्दोलनकारी किसान तब से वहां पक्का मोर्चा लगाए बैठे हैं। यह आंदोलन अब राज्य के विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बन रहा है। पंजाब की औद्योगिक नगरियां अमृतसर, जालन्धर, लुधियाना इसी मार्ग से दिल्ली के साथ जुड़ी हैं परन्तु रास्ता बंद होन के कारण न तो कारखानों को कच्चा माल आसानी से सप्लाई हो रहा है और न ही तैयार माल ठिकानों पर पहुंचाया जा सकता है। वैकल्पि मार्ग अपनाने से माल की लागत बढ़ रही है जिससे पंजाब के उद्योगपति पिछड़ रहे हैं। दिल्ली जाने के लिए आम लोगों को भी गांवों के कच्चे मार्गों से हो कर गुजरना पड़ता है। इससे पंजाब का उद्योग चरमराता जा रहा है, मुख्यमंत्री कई बार देश के बड़े धनपतियों से मिल कर राज्य में नये निवेश का आमंत्रण दे चुके हैं परन्तु जब पहले से स्थापित उद्योग किसान आंदोलनकारियों के कारण त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हों तो भला नया उद्योग कैसे राज्य में आए। पंजाब के उद्योगपति व व्यवसाई कई बार मुख्यमंत्री से भेंट कर इसका स्थाई हल निकालने की मांग कर चुके हैं पर कोई रास्ता निकलता नजर नहीं आ रहा, तो ऐसे में सरदार जी का बदलना समझ आता है।

कुछ विश्लेषक सरदार जी के बदलाव के पीछे पार्टी की आंतरिक राजनीतिक को भी कारण मान रहे हैं। सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि दिल्ली में कमरतोड़ पराजय के बाद राजनीतिक रूप से बेरोजगार हो चुके अरविंद केजरीवाल अब पंजाब में अपनी सम्भावनाएं खोज रहे हैं। लुधियाना में आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत गोगी के देहांत के बाद वहां रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव होने हैं। आम आदमी पार्टी ने वहां के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार घोषित किया है। इससे राज्य में इस चर्चा को बल मिला है कि खुद अरविंद केजरीवाल यहां से राज्यसभा जाने की इच्छा रखते हैं। भगवंत मान शायद अधिक अच्छे से जानते हैं कि राज्यसभा व लोकसभा की टिकटें बांटने वाले केजरीवाल पंजाब में केवल सांसद बनने के लिए नहीं आरहे, वे कुछ और चाहते हैं। अगर सरदार जी की सरकार यूं ही ढचक-ढचक शैली में चलती रही तो उनकी कुर्सी को खतरा हो सकता है। शायद यही कारण है कि भगवंत मान आज ‘कमेडियन’ से ‘कर्मयोगी’ बनने की कोशिश में सख्ती दिखा रहे हैं। अंत में यही कहा जा सकता है कि ...

देख उनकी सादगी पर मिट गए थे कभी,

अब पैंतरे बदलते सरकार नजर आते हैं।

बदले-बदले से ‘सरदार’ नजर आते हैं। 

- राकेश सैन

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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